राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने माध्यमिक शिक्षा के सिलेबस की किताबों में बदलाव कर दिया है। नई किताबों में सावरकर के चैप्टर में बदलाव करते हुए उन्हें वीर और क्रांतिकारी के स्थान पर अंग्रेजों से दया मांगने वाला बताया गया है।
इससे पहले सत्ता में आने पर भाजपा ने भी सिलेबस में बदलाव करते हुए पंडित जवाहर लाल नेहरू का चैप्टर हटा दिया था। साथ ही सावरकर को सिलेबस में शामिल करते हुए उन्हें महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता संग्राम का योद्धा बताया था। भाजपा ने सिलेबस में सावरकर से जुड़े बदलाव को उनका अपमान बताया है।
राजस्थान में माध्यमिक शिक्षा सिलेबस के अंतर्गत 10 कक्षा की किताबों में महापुरुषों की जीवनी के बारे में पढ़ाया जाता है। इससे पहले कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद ही यह घोषणा की थी कि भाजपा सरकार ने जो सिलेबस में बदलाव किया है उनकी समीक्षा की जाएगी। सरकार ने इसके लिए दो समितियों का गठन किया था।
Rajasthan Education Min, GS Dotasara: People like Veer Savarkar who didn’t have any contribution to independence movement were glorified in books, when our govt came to power, committee was formed that analysed things&now whatever is in books, it’s based on solid evidence. pic.twitter.com/aOSuruzx9I
— ANI (@ANI) May 13, 2019
सरकार का कहना है कि समीक्षा समिति की सिफारिशों के आधार पर ही सिलेबस में बदलाव किया गया है। राजस्थान सरकार के शिक्षामंत्री गोविंद सिंह का कहना है कि सावरकर जैसे लोगों का आजादी के आंदोलन में कोई योगदान नहीं है। इन्हें किताबों में बढ़ाचढ़ाकर प्रचारित किया गया है।
उन्होंने कहा कि सरकार का काम पाठ्यक्रम का निर्धारण करना नहीं है। पाठ्यक्रम को तैयार करने के लिए शिक्षाविद् लोगों की एक समिति है। समिति ही यह तय करती है कि क्या पढ़ाया जाएगा।
सिंह ने कहा कि राज्य सरकार इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करती है। इस बारे में पूर्व शिक्षामंत्री वासुदेव देवनानी ने कहा कि वीर सावरकर के हिंदुत्व से जुड़े होने के कारण कांग्रेस उनसे घृणा करती है। कांग्रेस ने सावरकर का कद छोटा करने का प्रयास किया है।
ये किया बदलावः सावरकर से जुड़े पाठ में कुछ नए तथ्य जोड़े गए हैं। इसमें लिखा गया है कि सावरकर ने 1906 ई. में अभिनव भारत की स्थापना की। सावरकर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1857 के संघर्ष को गदर न कहकर भारत का प्रथम स्वतंत्रता युद्ध बताया था। सावरकर का लंबा समय अंडमान की सेलूलर जेल में बीता।
उन्हें जेल में कठोर यातनाएं दी गईं। जेल के कष्टों से परेशान होकर सावरकर ने ब्रिटिश सरकार के समक्ष दया याचिकाएं भेजीं। पहली दया याचिका अगस्त 1910 दूसरी 14 नवंबर 1911 को भेजी। इसमें उन्होंने स्वंय को पुर्तगाल का पुत्र कहा।