पंजाब में सतलुज नदी का पानी कम होने के साथ, विस्थापित परिवार अपने घरों की ओर लौट रहे हैं। घर लौटने पर उन्हें एक नए संकट का सामना करना पड़ रहा है वो है दीवारों पर दरारें, खराब हो चुके फर्श, गायब हो चुकी कृषि भूमि और अनिश्चित भविष्य। फिरोजपुर से लेकर फाजिल्का तक, हर जिले में, कहानी एक जैसी है जहां लोग नए सिरे से ज़िंदगी शुरू करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
फिरोजपुर जिले के कालूवाला गांव में, 55 वर्षीय जोगिंदर सिंह बुधवार को लगभग 8 किलोमीटर दूर दुलचीके बाढ़ राहत शिविर से घर लौटे। उनका परिवार अपने मवेशियों के साथ वहां गया था लेकिन एक स्थानीय मेले के चलते उन्हें वहां से निकाल दिया गया। किसान ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हम शिविर में ज़्यादा देर तक नहीं रुक सके क्योंकि गांववालों को उस जगह पर मेला लगाना था जहां हमने अपने जानवर बांधे थे। हम वापस लौट आए लेकिन हमारे घर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए हैं। हमारे जानवरों को निहालेवाला में किसी के घर में रखा जा रहा है जबकि हमें खाली हाथ ज़िंदगी फिर से शुरू करनी पड़ रही है।”
तंबुओं और छतों पर रहने को मजबूर किसान
जोगिंदर ने कहा, “ऐसा लगता है कि हमारे पास तंबुओं या छतों पर रहने के अलावा कोई चारा नहीं है। घर की मरम्मत के लिए तुरंत मदद समय की मांग है। अगर सरकार हमें नदी से दूर ज़मीन दे दे तो हम हमेशा के लिए गांव छोड़ने को तैयार हैं। हम बाढ़ या युद्ध जैसी परिस्थितियों में घर खाली करते-करते थक चुके हैं।”
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यह ज़िला पाकिस्तान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है। कालूवाला सिर्फ़ 35-40 घरों वाला एक छोटा सा गांव है, जिसकी आबादी लगभग 350 है। सतलुज नदी के किनारे बसे इस गांव में बार-बार विस्थापन हुआ है, न सिर्फ़ 2023 की बाढ़ के दौरान बल्कि इस साल मई में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी।
35 वर्षीय जगदीश सिंह का घर भी क्षतिग्रस्त हो गया है, उन्होंने कहा, “सरकार हमें सुरक्षित जगहों पर क्यों नहीं भेज सकती? हम सिर्फ़ 40 घर हैं, फिर भी जब भी बाढ़ आती है या सीमा पर तनाव होता है, हम सबसे पहले घर खाली कर देते हैं। यह जीने का कोई तरीक़ा नहीं है।” वह अस्थायी रूप से निहालेवाला में रह रहे हैं।
खेतिहर जमीन को सतलुज ने निगला
45 वर्षीय मलकियत सिंह ने सितंबर की शुरुआत में कालूवाला गांव में अपना घर खाली कर दिया और एक राहत शिविर में रहने चले गए। उन्होंने कहा, “अब मुझे गाँव में अपना घर नहीं मिल रहा है। सतलुज नदी ने मेरा पूरा घर निगल लिया है।” मलकियत ने आगे बताया कि सतलुज नदी उस इलाके से होकर बह रही है जहाँ कभी उनका घर हुआ करता था। सतलुज नदी ने यहाँ की अधिकांश कृषि भूमि को भी निगल लिया है। कालूवाला में नदी तल के लगभग 1,000 एकड़ क्षेत्र में से लगभग 150 एकड़ ज़मीन दिखाई देती है; बाकी ज़मीन नदी के बहाव के कारण बह गई है।
किसान बोले- 2019 से हमें नदी की ज़मीन का मुआवज़ा मिलना बंद
सतलुज नदी के किनारे और पाकिस्तान की सीमा के उस पार बसे पड़ोसी तेंदीवालामें भी गांव कहानी कुछ अलग नहीं है। प्रकाश सिंह याद करते हैं कि बाढ़ के दौरान किसी भी घर को पूरी तरह से खाली नहीं कराया गया था। पूर्व सरपंच जीत सिंह ने सीमावर्ती किसानों की एक और पुरानी शिकायत की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा, “2019 से हमें नदी की ज़मीन का मुआवज़ा मिलना बंद हो गया है क्योंकि वह हमारे नाम पर नहीं है। जिनके खेत गाद से भर गए, उनके लिए रेत वाली नीति यहां लागू नहीं होती क्योंकि जो लोग नदी के किनारे खेती करते थे, वे पूरी तरह से निगल लिए गए हैं। हम रेत कहां से लाएँगे? सिर्फ़ नदी के किनारे की ज़मीन ही साफ़ की जा सकती है और वह भी तब जब मिट्टी पूरी तरह सूख जाए।”
तेंदीवाला में, परिवार क्षतिग्रस्त घरों में जा रहे हैं। महिलाएं दीवारें साफ़ कर रही हैं जबकि पुरुष मलबा हटा रहे हैं फिर भी कई लोग अभी भी छतों पर सोते हैं। कुलदीप सिंह ने कहा, “हमारे घरों की मरम्मत सबसे ज़रूरी काम है। अन्य राहत उपाय बाद में किए जा सकते हैं। हम भाग्यशाली थे कि बच गए लेकिन हम नए सिरे से ज़िंदगी शुरू नहीं कर पा रहे हैं।” किसानों के लिए, सबसे बड़ी चिंता आजीविका का नुकसान है। मलकीत सिंह ने पूछा, “एक राशन किट या बर्तन हमें महीने भर के लिए मदद दे सकते हैं लेकिन खेती ही हमारी ज़िंदगी है। मेरे पास नदी के किनारे तीन एकड़ ज़मीन थी जो अब सतलुज ले चुकी है। कल मैं क्या करूँगा?”