देश ने टीबी (तपेदिक) उन्मूलन को प्राथमिकता के तौर पर लिया गया है। इसका उद्देश्य टीबी के नए मामलों में 95 प्रतिशत की कमी करना और टीबी से मृत्यु में 95 प्रतिशत की कमी लाना है। कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी देते हुए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की महानिदेशक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि उपचार दरों में सुधार और नए मामलों में तेजी से कमी लाने के लिए अनुसंधान कार्य में तेजी लाई जाएगी। उन्होंने कहा कि सभी हितधारकों को शामिल करके टीबी मरीज के इलाज के लिए रणनीति तय करने पर अनुसंधान कार्य में बल दिया जाएगा। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी मरीजों को गुणवत्तासंपन्न निदान और उपचार सुविधा उपलब्ध हो। विभिन्न सरकारी, गैर-सरकारी तथा अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान संगठनों की सहमति के बाद यह लक्ष्य तय किया गया है। फरवरी 2016 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, डीबीटी, सीएसआईआर, डीएसटी, टीडीबी, डब्ल्यूएचओ तथा गेट्स फाउंडेशन के अधिकारियों की बैठक में सहमति बनी थी।

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नई दिल्ली में 9 और 10 नवंबर को आयोजित पहले अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक परामर्श समूह की बैठक में प्रख्यात अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय विशेषज्ञ शामिल हुए। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की अग्रणी पहल भारत टीबी अनुसंधान और विकास निगम (आईटीआरडीसी) का उद्देश्य टीबी उपचार के लिए नए साधन (औषधि, निदान और टीके) विकसित करने के लिए प्रमुख राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हितधारकों को एक साथ लाना है। निगम का विजन नए साधनों (औषधि, निदान और टीके) के विकास में निवेश करके भारत से टीबी का उन्मूलन करने के साथ-साथ विश्व को समाधान प्रदान करना है।

तपेदिक भारत की एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। इस बीमारी से प्रत्येक तीन मिनट में दो भारतीय और रोजाना 1,000 लोगों की जान चली जाती है। विश्व में भारत पर टीबी का बोझ सबसे अधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा अक्टूबर में जारी वैश्विक तपेदिक रिपोर्ट में टीबी बीमारी की घटनाओं का आकलन किया गया। 2015 में टीबी के 28 लाख नए मामले सामने आए और टीबी से मरने वाले मरीजों की संख्या एचआईवी पॉजिटिव लोगों की मृत्यु को छोड़कर 2015 में 478,000 तथा 2014 में 483,000 रही।