लोकसभा चुनाव 2019 से पहले प्रियंका गांधी को देश के सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक क्षेत्र पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान मिलने और राष्ट्रीय महासचिव पद पर नियुक्ति से सियासी गलियारों में हलचल मची हुई है। लेकिन गांधी परिवार में सियासत की टेबल पर प्रियंका गांधी की भूमिका लंबे समय से बेहद महत्वपूर्ण रही है। लगभग तीन दशकों से उनकी भूमिका काफी सक्रिय और रोचक रही है। नौ साल की उम्र में पहली बार चुनाव के समय वे अपने पिता के साथ गई थीं। उन्हें इंदिरा गांधी जैसी कहा जाता है लेकिन वे खुद मानती हैं कि वे अपने पिता के ज्यादा करीब हैं।
पिता राजीव के लिए प्रचारः 1989 में राजीव गांधी तीसरी बार अमेठी से चुनाव लड़े थे। उनके सामने जनता दल से राजमोहन गांधी और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम जैसे दिग्गज मैदान में थे। इस चुनाव में अमेठी सीट पर प्रियंका गांधी ने बेहद सक्रिय भूमिका निभाई थी। यह पहला मौका था जब प्रियंका चुनाव प्रचार में उतरी थीं।
मां सोनिया के लिए पहला भाषणः प्रियंका गांधी को सियासी गलियारों में सोनिया गांधी का निजी राजनीतिक सलाहकार भी माना जाता है। एनडीटीवी को दिए एक पुराने इंटरव्यू में उन्होंने खुद जिक्र किया था कि सोनिया गांधी के पहले कैंपेन का भाषण प्रियंका ने ही लिखा था। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रियंका ने पूरा साथ दिया। 1999 के चुनाव में अटल ने अरुण नेहरू को अमेठी का टिकट दिया था। तब प्रियंका ने प्रचार में कहा था, ‘क्या आप उन्हें वोट दोगे, जिन्होंने मेरे पिता की पीठ में छुरा घोंपा।’ इस लाइन ने अमेठी-रायबरेली की कहानी बदल दी।
कभी पर्दे के पीछे, कभी खुले मंच सेः इसके बाद प्रियंका ने चाहे 2004 और 2009 में राहुल गांधी के लिए मोर्चा संभाला तो 2014 में सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पलटवार किया। उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव हो या मध्य प्रदेश और राजस्थान में मुख्यमंत्री का चयन हर मामले में प्रियंका गांधी की भूमिका महत्वपूर्ण रही। औपचारिक आगाज से पहले प्रियंका पर्दे के पीछे और कई बार खुले मंच पर सियासी भूमिका में नजर आई हैं।