राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को कहा कि असहमति दूर करने का एक सभ्य तरीका संवाद है जो सही तरह से कायम रहना चाहिए। हम गोलियों की बौछार के बीच शांति पर चर्चा नहीं कर सकते। उन्होंने आतंकवाद को ऐसा कैंसर बताया, जिसका इलाज तीखी छुरी से करना होगा। पठानकोट वायुसेना स्टेशन पर हाल में हुए आतंकी हमले की पृष्ठभूमि में राष्ट्रपति की इस टिप्पणी को अहम माना जा रहा है। 67वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने आतंकवाद का उल्लेख करते हुए कहा कि आतंकवाद उन्मादी उद्देश्यों से प्रेरित है। नफरत की अथाह गहराइयों से संचालित है। इसे वे कठपुतलीबाज भड़काते हैं जो निर्दोष लोगों के सामूहिक संहार कर विध्वंस में लगे हैं। यह बिना किसी सिद्धांत की लड़ाई है। यह ऐसा कैंसर है, जिसका इलाज तीखी छुरी से करना होगा। आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं होता है, यह केवल बुराई है।
आतंकवाद के सिलसिले में राष्ट्रपति ने कहा कि देश हर बात से कभी सहमत नहीं होंगे। लेकिन वर्तमान चुनौतियां अस्तित्व से जुड़ी हैं। आतंकवादी महत्त्वपूर्ण स्थायित्व की बुनियाद व मान्यताप्राप्त सीमाओं को नकारते हुए व्यवस्था को कमजोर करना चाहते हैं। ये सीमाओं को तोड़ने में सफल हो जाते हैं तो हम अराजकता के युग की ओर बढ़ जाएंगे। उन्होंने कहा- देशों के बीच विवाद हो सकते हैं। सभी जानते हैं कि जितना हम पड़ोसी के निकट होंगे, विवाद की संभावना उतनी अधिक होगी। असहमति दूर करने का एक सभ्य तरीका संवाद है। लेकिन हम गोलियों की बौछार के बीच शांति पर चर्चा नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा कि भयानक खतरे के दौरान हमें अपने उपमहाद्वीप में विश्व के लिए एक पथ प्रदर्शक बनने का ऐतिहासिक अवसर प्राप्त हुआ है। हमें अपने पड़ोसियों के साथ शांतिपूर्ण वार्ता से अपनी भावनात्मक और भूराजनीतिक धरोहर के जटिल मुद्दों को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए और यह जानते हुए एक-दूसरे की समृद्धि में विश्वास जताना चाहिए कि मानव की सर्वोत्तम परिभाषा दुर्भावनाओं से नहीं बल्कि सद्भावना से दी जाती है। उन्होंने कहा कि मैत्री की बेहद जरूरत वाले विश्व के लिए हमारा उदाहरण एक संदेश का काम कर सकता है।