राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस बात पर जोर दिया है कि प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) योजना से दक्षता बढ़ती है। इसके साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार और अधिक कल्याण योजनाआें को भविष्य में ई-भुगतान के तहत लाएगी। राष्ट्रपति ने मंगलवार को भारतीय प्रशासनिक लेखा सेवा की 40वीं वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम में कहा, ‘सरकार आबादी के वित्तीय रूप से कमजोर और वंचित तबके तक पहुंचने के लिए डीबीटी भुगतान के तरीके को सबसे अधिक महत्त्व देती है।’

उन्होंने कहा, ‘लाभार्थियों के बैंक खातों में कोष के प्रत्यक्ष हस्तांतरण के इस तरीके से पारदर्शिता सुनिश्चित होती है। इससे भ्रष्टाचार कम होता है। मुझे भरोसा है कि सरकार भविष्य में अधिक से अधिक कल्याण योजनाआें को सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (पीएफएमएस) पोर्टल पर लाएगी।’ फिलहाल रसोईं गैस पर सबसिडी और छात्रवृत्ति सीधे लाभार्थियों के खाते में डाली जाती है।

मुखर्जी ने कहा, ‘गरीबों और जरूरतमंदों का जीवनस्तर को सुधारने के लिए ई-संचालन क्षमता का इस्तेमाल किए जाने की जरूरत है। इससे भारत को अधिक समानता वाले वित्तीय रूप से समावेशी समाज में बदला जा सकेगा।’

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत क्रय शक्ति समानता (पीपीपी) के मामले में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार, स्तर और जटिलता हर दिन के साथ बढ़ रही है, क्योंकि इसका वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण हो रहा है।

मुखर्जी ने कहा कि इस तरह के तेज घटनाक्रमों से कई मोर्चे पर नीतिगत और प्रशासनिक चुनौतियां खड़ी होती हैं। इसमें अर्थव्यवस्था के विभिन्न अंशधारकों की जरूरतों को पूरा करने में हमारी वित्तीय प्रबंधन और लेखा प्रणाली की क्षमता की भूमिका है। इसी परिप्रेक्ष्य में मुखर्जी ने कहा कि लेखा महानियंत्रक कार्यालय के समक्ष प्रमुख चुनौती सार्वजनिक वित्त की विश्वसनीय और समय पर रिपोर्टिंग है। यह एक दक्ष और मजबूत वित्तीय प्रबंधन प्रणाली की रीढ़ होता है।

केंद्र सरकार की 2014-15 की आडिट रिपोर्ट के साथ उसी कैलेंडर साल में सालाना वित्तीय लेखे को जमा कराना सुनिश्चित करने के लिए कैग और लेखा महानियंत्रक को बधाई देते हुए मुखर्जी ने कहा कि आजादी के बाद से सिर्फ दूसरी बार ऐसा हो पाया है। इसकी वजह यह है कि दोनों इकाइयों ने साथ काम किया।

उन्होंने कहा कि यह अपवाद के बजाय अब नियम होना चाहिए है। इसी के साथ वित्तीय आंकड़े सुगम और इस्तेमाल के अनुकूल तरीके से पेश किए जाने चाहिए, जिससे सांसदों के अलावा आम जनता भी इन्हें आसानी से समझ सके। ‘मुझे विश्वास है कि आप इस दिशा में काम करेंगे।’

मुखर्जी ने परियोजनाओं के क्रियान्वयन में निगरानी तंत्र को मजबूत किए जाने की भी जरूरत बताई। राष्ट्रपति ने कहा कि आंतरिक आडिट कामकाज आज अनुपालन आडिट तक सीमित है। इसे बदलने की जरूरत है। आंतरिक आडिट को कार्यक्रमों के प्रभावी क्रियान्वयन में मददगार होना चाहिए। यह लागत को घटाने और विलंब को कम करने में सहायक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अब जोर अनुपालन से हटकर जोखिम प्रबंधन पर होना चाहिए। मुखर्जी ने कहा कि लेखा महानियंत्रक ने इस दिशा में कई कदम उठाए हैं और यह प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए।