दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2012 की एक गोलीबारी कांड में हत्या की सुनवाई का सामना कर रहे एक आरोपी को यह कहते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया कि उसके खिलाफ गंभीर आरोप हैं। इस गोलीबारी में शराब व्यापारी पोंटी चड्ढा और उनके भाई हरदीप की मौत हो गई। न्यायमूर्ति पी एस तेजी ने मेडिकल आधार पर चड्ढ़ा के प्रबंधक नरेंद्र अहलावत की राहत के लिए दायर याचिका भी खारिज कर दी और कहा कि उन्हें न्यायिक हिरासत में इलाज मिल सकता है जैसा कि एम्स की मेडिकल बोर्ड की राय है और बाहर इलाज कराने के लिए जमानत पर उन्हें रिहा करने की जरूरत नहीं है।

अदालत ने कहा, ‘मामले के गुण-दोष पर टिप्पणी करने का यह वक्त नहीं है क्योंकि अभियोजन पक्ष के गवाहों का परीक्षण अभी चल ही रहा है और यह अबतक पूरा नहीं हुआ है। इस पहलू पर भी टिप्पणी नहीं की जा सकती कि इस कथित घटना में याचिकाकर्ता की भूमिका थी या नहीं।’ अदालत ने कहा, ‘उसके खिलाफ अन्य अपराधों के अलावा आपराधिक साजिश रचने और हत्या करने को लेकर आरोपपत्र दायर किया जा चुका है। उसके खिलाफ गंभीर आरोप हैं और अभियोजन पक्ष के गवाहों को प्रभावित करने की आशंका है।’

अहलावत ने इस आधार पर जेल से रिहा करने की मांग की है कि जांच के लिए अब उनकी जरूरत नहीं रही है क्योंकि उसके खिलाफ आरोपपत्र दायर किया जा चुका है और आरोप तय किए जा चुके हैं। वह अप्रैल, 2013 से अंतरिम जमानत पर था और समय समय पर उनकी जमानत बढ़ाई गई थी। पुलिस ने अहलावत की जमानत की मांग का विरोध किया और कहा कि वह पोंटी चड्ढा के प्रबंधकों में एक और पूरी साजिश का हिस्सा था।

इससे पहले अदालत ने उत्तराखंड अल्पसंख्यक आयोग के बर्खास्त प्रमुख सुखदेव सिंह नामधारी को जमानत देने से इनकार कर दिया था जिसके बाद निचली अदालत ने पांच अप्रैल को उनकी अंतरिम जमानत रद्द कर दी और उन्हें वापस तिहाड़ जेल भेज दिया। उच्चतम न्यायालय ने भी नामधारी की जमानत अर्जी पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था। अब सभी 20 आरोपी न्यायिक हिरासत में हैं। पोंटी चड्ढा और हरदीप के बीच संपत्ति विवाद चल रहा था और वे 17 नवंबर, 2012 को यहां छत्तरपुर के एक फार्म हाउस पर गोलीबारी में मारे गए थे। उसके बाद 23 नवंबर, 2012 को नामधारी को गिरफ्तार किया गया था । बाद में बाकी आरोपी पकड़े गए थे।