नगर निगम चुनाव की तारीखें घोषित होने के साथ ही एक बार फि र नेताओं की ओर से वादे और दावे करने का दौर शुरू हो गया है। हालांकि दावों के बावजूद निगम कालकाजी स्थित अस्पताल अभी भी पूरी तरह शुरू नहीं हो पाया है। निगम इसे अब तक चालू नहीं कर सका क्योंकि उसके पास इसे चलाने के लिए पैसे नहीं हैं। लिहाजा इसे चलाने की जिम्मेदारी सफदरजंग अस्पताल को दे दी गई, जो खुद मरीजों के बोझ व कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है। ऐसे में यह अस्पताल चलाना सफदरजंग प्रशासन की प्राथमिकता नहीं है।
दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के पहले मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल पूर्णिमा सेठी के आइपीडी (इनडोर पेशेंट डिपार्टमेंट) शुरू होने की दिशा में कोई ठोस पहल होती दिखाई नहीं दे रही है। बहु विशेषज्ञता वाले इस अस्पताल की सेवाओं का इलाके के लोग शिद्दत से इंतजार कर रहे हैं, लेकिन फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता कि ये सेवाएं कब तक शुरू हो पाएंगी।
नगर निगम क ी स्टैंडिंग कमेटी ने साल 2005 में पहली बार इस अस्पताल की परियोजना का प्रस्ताव पारित किया। 100 बिस्तरों वाले इस अस्पताल को अगले तीन साल में बन कर तैयार होना था, लेकिन शुरू से ही लेटलतीफ होने की वजह से इस अस्पताल की प्रस्तावित लागत 31 करोड़ से बढ़ कर 52 करोड़ रुपए तक पहुंच गई। इतना ही नहीं, तीन साल में बन कर तैयार होना तो दूर, इसका तीन साल में निर्माण भी शुरू नहीं हो पाया। इसके बजाए यह साल 2010 में बनना शुरू हुआ।

कुल 8,450 वर्ग मीटर के प्लॉट में खास सुविधाओं से युक्त इमारत बन कर तैयार हुई। इसमें 20 कर्मचारियों के आवासीय परिसर के अलावा बेसमेंट में 104 कारों की क्षमता वाली पार्किंग भी है, लेकिन अभी तक यहां मरीजों की भर्ती और इलाज शुरू नहीं हुआ है। यहां बाल रोग, नाक, कान, गला रोग विभाग, महिला रोग व प्रसूति विभाग, काय चिकित्सा विभाग और आंखों के अलावा दांतों के इलाज की सुविधा शुरू होनी थी, लेकिन अभी तक इसमें ओपीडी के अलावा कुछ और शुरू नहीं हो पाया है। करीब डेढ़ साल पहले इसकी ओपीडी सेवाओं का वित्तमंत्री अरुण जेटली ने उद्घाटन तो कर दिया, लेकिन जिन मरीजों को भर्ती किए जाने की जरूरत होती है, उनके पास अभी भी दूसरे अस्पताल जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं होता।

दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के मेयर श्याम शर्मा का कहना है कि इस अस्पताल को चलाने के लिए प्रतिमाह 6 से 8 करोड़ रुपए की जरूरत है, जिसका इंतजाम फिलहाल नहीं हो पाया है। हालांकि दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में कोष बढ़ाने की दिशा में कई स्तर पर प्रयास किए गए। धन के अभाव में इसे पूरी तरह चला पाने में निगम की असमर्थता के बाद प्रस्ताव रखा गया कि इसे केंद्र के अधीन चलने वाले सफदरजंग अस्पताल के हवाले कर दिया जाए और सफदरजंग प्रशासन ही इसे चलाएगा।

सफदरजंग अस्पताल प्रशासन ने साफ कहा कि वह इस अस्पताल में सेवाएं देने में तो मदद कर सकता है, लेकिन कर्मचारियों का वेतन व दूसरे खर्च वहन करने में उसने असमर्थता जताई। लिहाजा आपसी सहमति पत्र तैयार होने व उन पर दस्तखत के समय तय हुआ कि सफदरजंग अस्पताल की ओर से इसमें सेवाएं दी जाएंगी, लेकिन अस्पताल के कर्मचारियों का वेतन वगैरह नगर निगम से ही आएगा। हालांकि सफदरजंग अस्पताल के साथ सहमति बनने के बाद भी अभी तक इस दिशा में कोई ठोस पहल होती नहीं दिख रही है।
सूत्रों की मानें तो सफदरजंग अस्पताल प्रशासन की प्राथमिकता सूची में यह अस्पताल अभी दूर-दूर तक कहीं नहीं है। सूत्रों के मुताबिक सफदरजंग अस्पताल में करीब 40 फीसद कर्मचारियों की कमी है। यहां अकेले नर्सिंग स्टाफ की ही भारी कमी है। वहीं अस्पताल पर मरीजों की संख्या का भी भारी दबाव है। हालांकि चिकित्सा अधीक्षक डॉ एके राय का कहना है कि इस अस्पताल को हमें चलाना है। इस दिशा में सहमति बन चुकी है , कर्मचारियों का इंतजाम हो जाए तो सेवाएं शुरू हों।