Patna High Court: पटना हाई कोर्ट ने बिहार सचिवालय का आदेश पलटते हुए अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना कर रहे एक रिटायर कर्मचारी को पेंशन का हकदार माना है। दरअसल, योजना एवं विकास विभाग के एक कर्मचारी के खिलाफ चल रही विभागीय जांच को खत्म किए बिना ही उसकी पूरी पेंशन रोक दी गई थी। इसके बाद शख्स ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इस पर सुनवाई कर रहे हाईकोर्ट के जज पीबी बजंथरी ने कहा कि बिहार पेंशन नियमों का पालन करने में चूक हुई है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को रिटायरमेंट के दिन से ही पेंशन का हकदार माना है, विभाग को कर्मचारी को 1 लाख रुपए का भुगतान करने के निर्देश दिए गए हैं।
याचिकाकर्ता राज्य के योजना एवं विकास विभाग में उप सचिव के पद पर तैनात थे। नौकरी पर रहने के दौरान उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई थी। इसके तहत याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था और उनकी तरफ से भी जवाब प्रस्तुत किया जा चुका था, लेकिन कार्रवाई अंतिम निर्णय तक नहीं पहुंची थी।
इस दौरान याचिकाकर्ता रिटायर हो गए और अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने महालेखाकार को पत्र लिखकर याचिकाकर्ता की पेंशन रुकवा दी। इसके बाद याचिकाकर्ता ने उचित रिट जारी करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया।
कोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई कि बिहार सरकार के सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 2005 के नियम 43 (बी) के तहत बिहार सरकार के नियम 18 के अनुसार अनुशासनात्मक कार्रवाई में आज तक कोई अंतिम आदेश पारित नहीं किया गया था। वहीं, उक्त प्रावधानों के विपरीत याचिकाकर्ता की शत-प्रतिशत पेंशन रोक दी गई।
अदालत का कहना है कि याचिकाकर्ता सभी सेवानिवृत्ति लाभों का हकदार है। इसके अलावा, उन्हें रिटायरमेंट की तारीख से ही पेंशन का हकदार माना गया है। कोर्ट ने कहा कि अनुशासनात्मक/नियुक्ति प्राधिकारी ने महालेखाकार को पत्र लिखते समय याचिकाकर्ता की पूरी पेंशन काटने की शॉर्ट सर्किट पद्धति अपनाई है। इसके अलावा, याचिकाकर्ता को नोटिस भेजकर यह भी जानकारी नहीं दी गई कि उसकी पेंशन रोकी जा रही है।