Patna High Court: पटना हाई कोर्ट ने बलात्कार के मामले में एक आरोपी को बरी कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की गवाही भरोसे लायक नहीं है। उसने कोर्ट में कुछ और बयान दिया, जबकि पुलिस में उसने कुछ और कहा है। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के दोनों बयानों में काफी विरोधाभास है और उसका आचरण भी अविश्वसनीय है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, रिकॉर्ड पर रखे साक्ष्यों के देखने के बाद जस्टिस आशुतोष कुमार और जितेंद्र कुमार की पीठ ने कहा, ‘इस तरह की सजा के लिए पीड़िता का भरोसेमंद होना और कोर्ट का भरोसा जीतना बहुत जरूरी है। उसे एक बेहतरीन गवाह होना चाहिए।’

खंडपीठ ने आगे कहा कि लेकिन इस मामले में यह पाया गया है कि पीड़िता सच्ची और विश्वसनीय नहीं लगती। उसने न केवल कोर्ट के समक्ष दिए गए अपने बयान में बहुत सुधार किया है, बल्कि पुलिस को दिए गए अपने लिखित बयान से भी अलग है, बल्कि उसके बयान और आचरण में गंभीर अंतर्निहित विरोधाभास हैं, जो उसे अविश्वसनीय बनाते हैं।

हाई कोर्ट ने यह निर्णय सेशन कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर आया। जिसके तहत एकमात्र अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 376, 342 और 120 (बी) तथा पोक्सो अधिनियम की धारा 4 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था।

कोर्ट ने सबसे पहले इस सवाल पर विचार किया कि क्या कथित घटना के समय पीड़िता बच्ची थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पीड़िता की आयु का निर्धारण मुख्य रूप से स्कूल से प्राप्त जन्म प्रमाण पत्र या मैट्रिकुलेशन प्रमाण पत्र (यदि उपलब्ध हो) के आधार पर किया जाना चाहिए। अगर यह नहीं हैं तो नगर निगम अधिकारियों या पंचायतों द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र पर विचार किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि उपर्युक्त प्रमाण-पत्रों के अभाव में, पीड़ित की आयु का निर्धारण अस्थिभंग परीक्षण या किसी अन्य नवीनतम चिकित्सा परीक्षण द्वारा किया जाना आवश्यक है। मौखिक साक्ष्य जैसे किसी अन्य प्रमाण को पीड़िता की आयु निर्धारित करने के लिए विचार से बाहर रखा गया है।

कोर्ट ने कहा कि पीड़िता एक स्कूली छात्रा थी, लेकिन कानूनी आवश्यकता के बावजूद अभियोजन पक्ष ने न तो स्कूल प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया और न ही पंचायत या नगर निगम अधिकारियों से जन्म प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया। इसके अतिरिक्त, उसकी उम्र निर्धारित करने के लिए कोई अस्थिभंग परीक्षण या चिकित्सा जांच नहीं की गई।

इन सभी तथ्यों को मद्देनजर रखते हुए कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 94 के तहत निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार पीड़िता की उम्र साबित करने में विफल रहा। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि घटना के समय पीड़िता बच्ची नहीं थी और इसलिए, पोक्सो अधिनियम के प्रावधान उस पर लागू नहीं होते, और इस प्रकार उसने अपीलकर्ता को पोक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत आरोप से बरी कर दिया।

‘चूहों ने कुतर दी…’, पटना के अस्पताल में गायब मिली मृतक की एक आंख तो डॉक्टरों ने बताई अजीब वजह

इसके बाद कोर्ट ने जांच की कि क्या अभियोजन पक्ष ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत आरोपों को उचित संदेह से परे साबित कर दिया है। कोर्ट ने बताया कि पीड़िता कथित घटना की एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी थी, जबकि अन्य गवाहों ने केवल घटना से पूर्व और बाद की परिस्थितियों के बारे में साक्ष्य उपलब्ध कराए थे।

कोर्ट ने पाया कि इस बात को लेकर उचित संदेह था कि पीड़िता पर बल या दबाव डाला गया था या नहीं। इसके अतिरिक्त, चिकित्सा साक्ष्य अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं करते।

इस प्रकार कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष भारतीय दंड संहिता के तहत अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों को सभी उचित संदेहों से परे साबित करने में बुरी तरह विफल रहा है। अपीलकर्ता के खिलाफ दोषसिद्धि के फैसले को बरकरार रखना बहुत असुरक्षित है। इसलिए, अपीलकर्ता को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जाना चाहिए। तदनुसार, अपीलकर्ता के खिलाफ दोषसिद्धि का विवादित फैसला और सजा का आदेश कानून की नजर में टिकने योग्य नहीं है। अपील स्वीकार कर ली गई और अपीलकर्ता को उसके विरुद्ध लगाए गए आरोपों से बरी कर दिया गया।