Kanwar Yatra 2025: सावन का पावन महीना चल रहा है और कांवड़ यात्रा एक विशेष धार्मिक यात्रा होती है। इसमें भक्तजन गंगा जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं और यह पूरा सफर पैदल, नियमों और संयम के साथ किया जाता है। हर साल लाखों श्रद्धालु कांवड़ लेकर निकलते हैं, जिनमें महिलाएं भी बढ़-चढ़कर भाग लेती हैं। इस बार भी महिलाओं की भागीदारी काफी अच्छी देखने को मिल रही है। कांवड़ यात्रा कर रही 15 साल की दीपा ने बताया कि मैं अपने चाचा के साथ में यात्रा कर रही हूं।

दीपा ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘टॉयलेट तो हैं, लेकिन वे क्लीन नहीं हैं और कपड़े बदलने की कोई जगह नहीं है। इसलिए हम महिलाएं और लड़कियां, सुबह-सुबह, पुरुषों के उठने से पहले, तंबुओं के पीछे जाकर नहाती हैं।’ महिला कांवड़ियों के लिए सिक्योरिटी और साफ-सफाई भी एक बहुत बड़ी चिंता है। इस साल गाजियाबाद प्रशासन ने मोदीनगर में महिलाओं के लिए पहला कांवड़ शिविर लगाया है। इसमें लगभग 20 महिलाएं रह सकती हैं।

गाजियाबाद की एक सड़क पर चल रही कांवड़िया मनीषा इंडियन एक्सप्रेस से कहती हैं, ‘बाकी शिविरों का क्या? हम पूरी रात जागते रहे हैं। बच्चों और महिलाओं के लिए कोई तय जगह नहीं है।’ मनीषा ने महिलपालपुर से अपनी यात्रा शुरू की है। मनीषा भी अपनी शिकायत करते हुए कहती हैं कि सभी शिविर में टॉयलेट नहीं है, लेकिन वे बेहद गंदे हैं। हम ढाबों और पेट्रोल पंपों पर टॉयलेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन रास्तों में ज्यादातर ढाबे और पेट्रोल पंप बंद हैं।

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सागर अपनी बहनों के साथ कर रहे कांवड़ यात्रा

20 साल के सागर अपनी बहन अंजली और सिमरन के साथ में कांवड़ यात्रा कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं अपनी दो 16 साल की बहनों, अंजलि और सिमरन के साथ जा रहा हूं। वे दिखने में एक जैसी नहीं हैं, लेकिन जुड़वां हैं। मैं झूठ नहीं बोलूंगा, यह मुश्किल है। वे यह यात्रा अकेले नहीं कर सकते। टॉयलेट गंदे हैं, महिलाओं के आराम करने के लिए कोई अलग जगह नहीं है। अगर मैं वहां न होता, तो वे ऐसा नहीं कर पातीं।’ दोनों बहनें स्कूल नहीं जा रही हैं और सिमरन कहती हैं, ‘स्कूल हो या न हो, यह हमारे भगवान के प्रति हमारी भक्ति के लिए है।’

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हर कदम पर उन्हें सावधान रहना पड़ता हैं। हरिद्वार में एक समय ऐसा आया जब भाई-बहनों को शिविर में रहने का विचार छोड़ना पड़ा। अंजलि ने याद करते हुए कहा, ‘हमने कैंप देखा, पुरुषों से भरा हुआ, बैठने तक की जगह नहीं। कोई पर्दा नहीं, खाना फ्री नहीं मिलता था।’ अंजलि ने आगे कहा कि हमें सड़क पर रात बितानी पड़ी, जहां से ट्रक गुजर रहे थे। हमने झाड़ियों के पास चादर बिछा दी। पूरी रात मच्छरों ने हमें काटा।

लड़कियां नहीं जाती – चांदनी

पूर्वी दिल्ली की 13 साल की स्टूडेंट चांदनी के लिए सबसे बड़ी बाधा सड़क नहीं बल्कि उसका परिवार था। उसने याद करते हुए इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘पापा ने साफ मना कर दिया था कि लड़कियां नहीं जातीं। लेकिन फिर मैंने जिद की। मेरे चचेरे भाई-बहन जा रहे थे, तो मैं क्यों नहीं जाऊंगी।’ उसने आगे कहा कि यह मुश्किल हैं, लेकिन मैं बहुत खुश हूं। उसका बड़ा भाई अनीश कहता है, ‘पहले यह लड़कियों के लिए नहीं था। अब बदलाव आया है। लेकिन इतना नहीं कि वे अकेले जा सकें। मैं अब भी उन्हें अपनी नजरों से ओझल नहीं होने देता।’ आखिर फिर क्यों हो रहा जगह-जगह बवाल?