जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 के सभी खंड निष्प्रभावी कर दिए गए हैं। मोदी सरकार के इस कड़े कदम के बाद आर्टिकल 370 के इतिहास पर बहस शुरू हो गई है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, देश के पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू को भी अंदेशा था कि एक दिन इसे जरूर हटाया जाएगा। उनकी इस बात की झलक जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन नेता पं. प्रेमनाथ बजाज को लिखे पत्र में दिखती है।
जानें क्या सोचते थे पंडित नेहरू: अनुच्छेद 370 के बारे में पं. प्रेमनाथ बजाज के पत्र का उत्तर देते हुए 21 अगस्त, 1962 को नेहरू ने लिखा था, ‘वास्तविकता यह है कि संविधान में इस धारा के रहते हुए भी, जो कि जम्मू-कश्मीर को एक विशेष दर्जा देती है, बहुत कुछ किया जा चुका है और जो कुछ थोड़ी बहुत बाधा है, वह भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी। सवाल भावुकता का अधिक है, बजाए कुछ और होने के। कभी-कभी भावना महत्वपूर्ण होती है, लेकिन हमें दोनों पक्षों को तौलना चाहिए और मैं सोचता हूं कि वर्तमान में हमें इस संबंध में और कोई परिवर्तन नहीं करना चाहिए।’
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इस किताब में पंडित नेहरू की सोच का जिक्र: पंडित नेहरू और पं. प्रेमनाथ बजाज के बीच हुए इस पत्र व्यवहार का जिक्र जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल जगमोहन ने अपनी किताब ‘दहकते अंगारे’ में किया है। जगमोहन अपनी किताब में लिखते हैं कि इस पत्र से पता चलता है कि नेहरू ने खुद धारा 370 में भविष्य में होने वाले परिवर्तन से इनकार नहीं किया था।
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कैसे कश्मीर से जुड़ गए श्यामा प्रसाद मुखर्जी: जनसंघ के संस्थापक रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी के कारण ही बीजेपी का कश्मीर से भावनात्मक रिश्ता रहा। 23 जून, 1953 को श्रीनगर की एक जेल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत हो गई थी। उस वक्त राज्य में शेख अब्दुल्ला की सरकार थी। राज्य सरकार के आदेशों को तोड़ने के कारण मुखर्जी को जेल में कैद किया गया था। जम्मू में रह रहे हिंदुओं की आवाज बनकर मुखर्जी ने कश्मीर कूच किया था। वह चाहते थे कि हिंदुओं की प्रतिनिधि ‘प्रजा परिषद’ पार्टी से देरी किए बिना बात हो। हालांकि, कैद में ही मुखर्जी की मौत हो गई थी। बीजेपी का मानना है कि मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर को भारतीय संघ में मिलाने के लिए बलिदान दिया था।