बहुत पुरानी कहावत है कि लोहा लोहे को काटता है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी अब शायद इस कहावत पर यकीन करने लगी हैं। यही वजह है कि इस साल होने वाले पंचायत चुनावों से पहले राज्य में भाजपा के बढ़ते असर की काट के लिए उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस भी अब हिंदुत्व को भुनाने की कोशिशों में जुट गई है। इसी कवायद के तहत पार्टी ने अपने गठन के दो दशकों में पहली बार इस सप्ताह बीरभूम जिले में पुरोहितों और ब्राह्मणों के सम्मेलन का आयोजन किया। दूसरी ओर, भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस पर नरम हिंदुत्व की राह पर चलने का आरोप लगाया है। पार्टी का दावा है कि हाल में हुए तमाम उपचुनावों में भाजपा के लगातार बढ़ते वोटों को ध्यान में रखते हुए तृणमूल कांग्रेस ने हिंदू वोटरों को लुभाने के लिए यह कवायद शुरू की है।
दरअसल, तृणमूल कांग्रेस के मुकाबले काफी पीछे रहने के बावजूद भाजपा तमाम उपचुनावों में नंबर दो बन कर उभरी है। मिसाल के तौर पर पश्चिम मेदिनीपुर जिले में सबंग विधानसभा सीट पर हाल में हुए उपचुनाव में उसके वोटों में भारी बढ़ोतरी हुई है। इससे तृणमूल कांग्रेस ही नहीं, कांग्रेस खेमा भी भारी चिंता में है। कांग्रेस की इस पारंपरिक सीट पर वर्ष 2016 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को महज 5,610 वोट मिले थे लेकिन उपचुनाव में उसे 37 हजार 476 वोट मिले हैं। इस साल अप्रैल-मई में राज्य में पंचायत चुनाव होने हैं। बंगाल का राजनीतिक इतिहास गवाह है कि पंचायत चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करने वाले राजनीतिक दल ही आगे चल कर विधानसभा व लोकसभा चुनावों में कामयाब रहते हैं। ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल ने भी वर्ष 2008 के पंचायत चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर तीन साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में जीत की राह तैयार की थी। अब भाजपा भी उसी के नक्शेकदम पर चलने का प्रयास कर रही है।
बीरभूम जिला भाजपा के बढ़ते असर और इसकी वजह से होने वाले राजनीतिक संघर्षों के लिए सुखिर्यों में रहा है। अब वहां भाजपा की ओर से हिंदू वोटरों के कथित धुव्रीकरण की काट के लिए तृणमूल कांग्रेस के ताकतवर जिला अध्यक्ष अणुब्रत मंडल की अगुवाई में ब्राह्मण व पुरोहित सम्मेलन का आयोजन किया गया। मंडल कहते हैं कि इस सम्मेलन का मकसद भाजपा की ओर से हिंदू धर्म की गलत व्याख्या की ओर ध्यान आकर्षित करना और हिंदी धर्म की सही व्याख्या करना था। उनका दावा है कि इस सम्मेलन का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। सम्मेलन में लगभग 15 हजार लोग जुटे थे। तृणमूल कांग्रेस की ओर से इस सम्मेलन में आए तमाम पुजारियों को रामनामी चादर के अलावा गीता और स्वामी विवेकानंद व रामकृष्ण की पुस्तकें व तस्वीरें भेंट की गर्इं।
इससे पहले बीते साल अप्रैल में रामनवमी व हनुमान जयंती पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व उससे जुड़े संगठनों की ओर से आयोजित कार्यक्रमों की काट के लिए मंडल ने जिले में एक विशाल यज्ञ आयोजित किया था। उसके लिए असम के कामाख्या मंदिर से 11 पुजारी बुलवाए गए थे। मंडल कहते हैं कि बंगाल में हिंदुत्व कार्ड के लिए कोई जगह नहीं है। हमारी सरकार सबके लिए समान रूप से काम करती है। इस ब्राह्मण सम्मेलन को हिंदू पुजारियों का तृणमूल कांग्रेस समर्थित संगठन बनाने की दिशा में एक पहल माना जा रहा है। इससे इमामों की तर्ज पर इन पुजारियों को भी सरकारी सुविधाओं का लाभ मिल सकता है। मंडल ने इस सम्मेलन को अपनी नाक का सवाल बनाते हुए इसे कामयाब बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। इस बीच, कांग्रेस भी बहती गंगा में हाथ धोने की तर्ज पर पुरोहितों को भी इमामों की तर्ज पर सरकारी भत्ता देने की मांग उठा कर उनको लुभाने की कवायद में जुट गई है। पार्टी ने इस मुद्दे पर बीरभूम जिले के तारापीठ से आंदोलन शुरू करने का भी एलान किया है। कांग्रेस की दलील है कि लगातार बढ़ती महंगाई में पुरोहितों-पुजारियों के लिए आजीविका चलाना मुश्किल हो रहा है। इसलिए इमामों की तर्ज पर उनको भी सरकारी खजाने से भत्ता मिलना चाहिए।
दूसरी ओर, तृणमूल की प्रस्तावित रैली को भाजपा हताशा भरा फैसला मानती है। प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष का दावा है कि पार्टी के झंडे तले हिंदुओं के एकजुट होने की कवायद तेज होने की वजह से तृणमूल कांग्रेस समेत तमाम पार्टियां डर गई हैं। इसलिए तृणमूल कांग्रेस अब हताशा में उसी राह पर चल रही है जिसकी आलोचना करते नहीं थकती थी। उधर, पुरोहितों के संगठन निखिल बंग संस्कृत प्रेमी समिति की राज्य समिति के सदस्य सोमनाथ चटर्जी ने कहा है कि समिति तमाम राजनीतिक दलों की गतिविधियों पर निगाह रख रही है। जो भी हमारे हित में आवाज उठाएगा, समिति उसी को समर्थन देगी।
