Gujrat News: अहमदाबाद नगर निगम के जैन उत्सव के अवसर पर शहर में बूचड़खाने को बंद रखने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर गुजरात हाई कोर्ट ने मंगलवार (30 अगस्त) को याचिकाकर्ता से पूछा कि वह “एक-दो दिन खुद को मीट खाने क्यों नहीं रोक सकता।” दरअसल, कुल हिंद जमीयत-अल कुरेश एक्शन कमेटी गुजरात की तरफ से दानिश कुरैशी रजावाला और एक अन्य शख्स की तरफ से सोमवार को याचिका दायर की गई थी, जिसमें अहमदाबाद की स्थायी समिति के 18 अगस्त के प्रस्ताव को चुनौती दी गई थी। नागरिक निकाय के प्रस्ताव में कहा गया है कि स्थायी समिति ने इसे रखने के लिए अपनी मंजूरी दे दी है। 24 अगस्त से 31 अगस्त के बीच पर्युषण पर्व की वजह से बूचड़खाने बंद रहेंगे.

वहीं, सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति संदीप भट्ट की अदालत ने शुरू में टिप्पणी की, “आप एक या दो दिन मीट खाने से खुद को रोक सकते हैं।” हालांकि, पार्टी-इन-पर्सन के रूप में पेश होने वाले याचिकाकर्ता ने कहा, “ये संयम के बारे में नहीं है, ये मौलिक अधिकारों के बारे में है और हम अपने देश में कल्पना भी नहीं कर सकते हैं कि हमारे मौलिक अधिकारों पर एक मिनट भी रोक लगा दी जाए।” साथ ही याचिकर्ता ने कहा, “अन्य पिछले अवसरों पर बूचड़खानों को बंद कर दिया गया था। इसलिए हम अदालत के सामने आए हैं अगर यह उचित आदेश देती है, तो इस प्रक्रिया को बाकी समय के लिए भी रोका जा सकता है।”

“अहमदाबाद शहर में केवल एक बूचड़खाना है”

कोर्ट ने याचिकाकर्ता से इस मामले में बहस करने को कहा, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने कहा, “अहमदाबाद शहर में केवल एक बूचड़खाना है।” याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि बूचड़खानों के संचालन का किसी भी व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और राष्ट्रीय पोषण संस्थान (एनआईएन) के दिशानिर्देशों के अनुसार, प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा, “दिसंबर 2021 में गुजरात हाई कोर्ट की तरफ से मौखिक टिप्पणी में एएमसी को लोगों की खाने की आदतों को कंट्रोल करने की कोशिश नहीं करने के लिए याद दिलाया गया था।”

मंगलवार (30 अगस्त) को सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति भट्ट ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 2 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दिया, क्योंकि याचिकाकर्ता ने अदालत के रिकॉर्ड पर और सामग्री लाने के लिए कुछ समय मांगा।

दिसंबर 2021 का मामला क्या है जानिए

दरअसल, साल 2021, दिसंबर महीने में गुजरात में नागरिक निकायों ने सड़कों पर मांसाहारी खाद्य पदार्थों को बेचने वाली दुकानों को हटाने का आदेश दिया था। इस मामले पर गुजरात हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सवाल किया था कि लोगों ने क्या खाया, इससे कोई समस्या है। जिसके बाद राज्य सरकार ने कहा था इस तरह के किसी अभियान में राज्य शामिल नहीं है। जिसके बाद हाई कोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया था।