देश ही नहीं दुनिया भर में दिलों को दहला देने वाले निर्भया कांड के बाद कुछ नामी अस्पतालों में पीड़ितों के इलाज व मदद के लिए बुनियादी ढांचा खड़ा तो किया गया लेकिन सभी जगहों पर ठोस रणनीतिक इंतजाम अभी तक नहीं हो पाया है। सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ितों की मदद के लिए अस्पतालों को दिशानिर्देश जारी तो किए हैं, लेकिन ज्यादातर जगहों पर इस पर महज कागजी खानापूरी के तौर पर ही अमल हो पाया है। जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
सफदरजंगअस्पताल में 16 दिसंबर से लेकर निर्भया को सिंगापुर भेजे जाने के बाद भी दिनरात मीडिया का जमावड़ा लगा रहा था। लेकिन आज भी सफदरजंग में पीड़ितों की मदद के लिए दो काउंसलर तक नहीं नियुक्त हो पाए हैं। जबकि सदमे से गुजर रहे पीड़ित क ो इससे उबारने व हिम्मत देने के लिए मनोविज्ञानी या काउंसलर की अहम भूमिका है। सूत्रों के मुताबिक, मनोविज्ञान में उच्च पढ़ाई करने वाले लोग इन पदों के लिए आवेदन नहीं कर रहे हैं क्योंकि सरकार ने इस पद के लिए जो वेतन तय किया है (12000) उतने पर कोई भी आने को तैयार नही हैं। इस काम के लिए उन्हें कभी भी बुलाया जा सकता है। दिन हो या रात कभी भी जरूरत पड़ सकती है।
सफदरजंग अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर एके राय ने बताया कि हमने सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश के मुताबिक एक केंद्रीकृत व्यवस्था बनाई है जहां पर एक ही जगह पर बलात्कार पीड़ित की मदद के लिए सभी विभाग के डॉक्टर व पुलिस आते हैं। हम साक्ष्य सुरक्षित रख इलाज शुरू कर देते हैं। पुलिस के आने तक पीड़ित को इलाज के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता। एम्स के स्त्री रोग विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉक्टर सुनेश कुमार ने बताया कि एम्स मे ऐसी पीड़ितों की तादाद बढ़ गई है। 16 दिसंबर क ी घटना के बाद से लोगो में रिपोर्ट दर्ज कराने व मदद लेने की हिम्मत आई है। उन्होंने बताया कि रोजाना चार से पांच बलात्कार पीड़ित यहां आते हैं। इनके लिए इमरजेंसी में अलग एक कमरे में जांच व परामर्श का केंद्रीकृत इंतजाम है। इसमें मनोचिकित्सक भी यहीं से दिए जाते हैं। हमने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश में दिए प्रावाधानों पर अमल किया है।
राव तुलाराम अस्पताल में हकीकत कुछ और ही है जहां महिला रोग विशेषज्ञ तक नहीं है। 100 बिस्तरों वाले इस अस्पातल में सीनियर रेजीजेंट क ा पद भी लंबे समय से खाली है। हाल ही में साक्षात्कार हुआ है। दिन में तो जूनियर रेजीडेंट होते हैं पर रात आठ बजे के बाद एक भी महिला रोग का डॉक्टर नहीं रहता। ऐसे में बलात्कार पीड़ित की शुरुआती जांच तक नहीं हो पाती। इलाज व परामर्श तो दूर की बात है।
महर्षि वाल्मीकि अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर विजन डे ने कहा कि हमने कोर्ट के निर्देश के तहत जरूरी इंतजाम कर रखे हैं। जबकि हकीकत यह है कि अलग कमरे, जरूरत पर बुलाए जाने वाले डॉक्टर व कुछ जांच मशीनों के आलावा कुछ भी नहीं है। ज्यादातर जगहों पर अदालत के निर्देश थमाने के अलावा कुछ ठोस इंतजाम नहीं हो पाया है। अस्पतालों में काउंसलर की सीटें खाली हैं। मुफ्त इलाज की सरकार की घोषणा पर केवल भर्ती के दौरान अमल होता है। जबकि कई पीड़ितों को लंबे समय तक घर पर रह कर भी इलाज किए जाने की जरूरत पड़ती है। इसके लिए अस्पताल कुछ भी नही बोलते उलटे पीड़ित पर ही इलाज के खर्चे का बोझ पड़ता है।

