प्रयागराज में कोल्विन अस्पताल के बाहर पुलिस कस्टडी में माफिया डॉन अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को सरेआम गोली मार दी गई।अस्पताल और उसके प्रवेश द्वार के बीच की छोटी सी दूरी में हुई यह घटना सुरक्षा चूक की कहानी कहती है जो लंबे समय तक यूपी पुलिस को परेशान करेगी।

पुलिस सूत्रों और चश्मदीदों के मुताबिक, अतीक और अशरफ को रात करीब 10 बजे नियमित मेडिकल जांच के लिए धूमलगंज थाने से कॉल्विन अस्पताल ले जाया गया। दोनों की पुलिस हिरासत सोमवार को खत्म होने वाली थी। 20 पुलिसकर्मियों के साथ दो पुलिस वाहन दोनों के साथ थे। पुलिस थाने से अस्पताल के बीच की 7 किमी की दूरी करीब 20 मिनट में पूरी की गई। अस्पताल के परिसर में पार्किंग की जगह होने के बावजूद पुलिस की गाड़ियों को गेट के ठीक बाहर रोक दिया गया। हथकड़ी लगाए अतीक और अशरफ को बाहर निकाला गया और अंदर पैदल ले जाया गया। मीडिया को इस बात की जानकारी थी कि अतीक और अशरफ को मेडिकल चेकअप के लिए ले जाया जाएगा। इस वजह से कुछ माडियाकर्मी थाने से ही पुलिस की गाड़ी का पीछा कर रहे थे। जब अतीक और अशरफ अस्तपताल पहुंचे तो मीडिया ने साउंडबाइट लेने के लिए उन्हें घेर लिया। इस दौरान उन्हें रोका भी नहीं गया।

दो कदम अंदर रखते ही मीडिया ने उन्हें घेर लिया और फिर थोड़ी धक्का-मुक्की के बाद वे आगे बढ़े। पांच कदम आगे बढ़ने के बाद मीडिया ने फिर से उन्हें घेर लिया और बेटे असद अहमद के जनाजे में शामिल नहीं होने को लेकर सवाल करने लगे। तभी एक शूटर ने अतीक के सिर पर पिस्टल रखकर फायरिंग कर दी और फिर उसके धड़ में कई राउंड फायर किए। इससे पहले कि अशरफ कुछ समझ पाता कि क्या हो रहा है, उसे भी गोली मार दी गई। अतीक और अशरफ को सबसे पहले लवलेश तिवारी ने गोली मारी, जो बांदा का रहने वाला है। इसके बाद हमीरपुर के सनी पुरने और कासगंज के अरुण मौर्य ने ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं।

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, इसके बाद पत्रकार इधर-उधर भागने लगे और शूटर गोलियां चलाते रहे। उन्होंने तकरीबन एक मिनट तक फायरिंग की। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि शूटरों ने अपनी बंदूकें फेंक दीं और जय श्री राम के नारे लगाते हुए आत्मसमर्पण के लिए हाथ खड़े कर दिए। एक मीडियाकर्मी ने बताया, जो उस वक्त वहां मौजूद था, ने बताया, “पूरा एपिसोड एक मिनट से भी कम समय में खत्म हो गया था। शूटरों को पुलिस ने तुरंत पकड़ लिया और अतीक और अशरफ को कुछ देर बाद ही मृत घोषित कर दिया गया।” एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि अतीक डाबिटीज और उच्च रक्तचाप से पीड़ित था। सूत्रों ने कहा कि अतीक और अशरफ को शुक्रवार शाम को भी मेडिकल जांच के लिए कॉल्विन अस्पताल ले जाया गया था। अधिकारी ने कहा, “शनिवार की सुबह, जब उसने कुछ बेचैनी की शिकायत की, तो हमने उसके लिए लॉक-अप में एक डॉक्टर को भी बुलाया गया था।”

अस्पताल के डॉक्टरों ने कहा कि आरोपियों का मेडिकल चेकअप लिखित आदेश मिलने के बाद ही किया जाता है। यूपी पुलिस के सूत्रों ने कहा कि आरोपी को अस्पताल ले जाना हमेशा जरूरी नहीं होता है और संवेदनशील मामलों में डॉक्टरों को आवश्यक उपकरणों के साथ लॉक-अप में ही जाना पड़ता है। एक अधिकारी ने कहा, कई मामलों में आरोपी को चुपके से अस्पताल ले जाया जाता है ताकि किसी को आरोपी की हरकत के बारे में पता न चले।

यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह, जिन्हें कानून और व्यवस्था प्रबंधन के दिग्गज माना जाता है, ने कहा कि धूमलगंज पुलिस स्टेशन में सुरक्षा पुख्ता थी, लेकिन जब अतीक को अस्पताल ले जाया गया, तो खामियों के बारे में बताया गया। उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “पहली गलती ये थी कि अभियुक्त को कभी भी प्रेस से मिलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए थी। अस्पताल में एक्सेस कंट्रोल नहीं था। अगर वे फर्जी रिपोर्टर फर्जी आईडी और कैमरे के साथ आए तो उनकी पहचान करना पुलिस का काम था। अगर आप फ्री-फॉर-ऑल देते हैं तो ऐसी घटनाएं होती हैं।” सिंह ने आगे कहा, “हमलावर गरीब पृष्ठभूमि के हैं, लेकिन वे तुर्की वंशावली की बंदूकों का इस्तेमाल कर रहे थे, जिनमें से प्रत्येक की कीमत 7 लाख रुपये थी और प्रत्येक राउंड की कीमत 250 रुपये। उनकी फायरिंग से पता चलता है कि उन्हें बहुत अभ्यास था … मुझे उम्मीद है कि पुलिस इसकी तह तक जाएगी।”