बिहार की सियासत फिर उबाल मार रही है, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कई कदमों ने इंडिया गठबंधन की धड़कने तेज कर दी हैं। सभी की जुबान पर सिर्फ एक सवाल चल रहा है- क्या सुशासन बाबू फिर पलटी मारेंगे? इस सवाल का जवाब तो अभी तक नहीं मिला है, लेकिन सियासत में असल बयानों या फैसलों से ज्यादा उन संकेतों को समझना जरूरी है जो किसी भी बड़ी घटना की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं। बिहार के साथ भी ऐसा ही हो रहा है, अगर सवाल उठा है तो उसकी भूमिका भी तैयार दिख रही है।
पिछले कुछ दिनों में बिहार में काफी कुछ बदल गया है। अचानक से नीतीश-लालू की दोस्ती में दरार दिख रही है, जेडीयू-आरजेडी के दिल नहीं मिल रहे हैं, इंडिया गठबंधन में भी खींचतान बढ़ सा गया है। यानी कि हर डिपार्टमेंट से एक ही संकेत मिलता दिख रहा है- पलटी का समय आ गया है! नीतीश कुमार ने पहले भी ऐसी पलटियां मारी हैं, सभी को चौकाते हुए कई बार गठबंधन बदले हैं। इस बार भी कई ऐसे फैक्टर दिखाई दे रहे हैं जिससे अटकलें तेज हैं कि नीतीश क्या फिर एनडीए से हाथ मिला लेंगे?
अब नीतीश, मोदी सरकार के कदमों पर बात करेंगे, लेकिन सबसे पहले आरजेडी की बयानबाजी से शुरू करते हैं। लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी यादव ने गुरुवार सुबह को एक्स प्लेटफॉर्म पर दो पोस्ट शेयर कीं। दोनों पोस्ट्स से एक ही संदेश निकला- बिना नाम लिए नीतीश कुमार को आईना दिखाना है। पहली पोस्ट में रोहिणी ने लिखा- समाजवादी पुरोधा होने का करता वही दावा है,हवाओं की तरह बदलती जिनकी विचारधारा है। दूसरी पोस्ट में एक और सियासी चौका मारते हुए उन्होंने कहा कि खीज जताए क्या होगा, जब हुआ न कोई अपना योग्य विधि का विधान कौन टाले, जब खुद की नीयत में ही हो खोट।
अब लालू की बेटी के बयान जेडीयू और नीतीश कुमार पर तंज माने जा रहे हैं। सामने से आकर किसी ने कुछ नहीं बोला है, लेकिन संकेत साफ दिए गए हैं। इससे पहले सीएम नीतीश कुमार ने भी कर्पूरी ठाकुर का जिक्र कर कह दिया था कि कुर्पूरी ठाकुर ने कभी भी अपने परिवार को आगे नहीं बढ़ाया, आज कल लोग अपने परिवार को बढ़ाते हैं। अब यहां पर नीतीश का निशाना किस तरफ था, इसका अंदाजा लगाना ज्यादा मुश्किल नहीं।
अब परिवारवाद के जरिए अगर लालू पार्टी को नीतीश ने घेरा है तो कर्पूरी ठाकुर के जरिए फिर एनडीए से उनकी नजदीकियां भी बढ़ी हैं। कुछ दिन पहले ही केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान किया। लंबे समय से सीएम नीतीश कुमार की ये मांग थी, उन्होंने यूपीए सरकार के दौरान भी इस मुद्दे को उठाया था। लेकिन जो सम्मान तब नहीं दिया गया, मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वो देने का काम किया।
जानकार मानते हैं कि पिछड़ों के बीच में इस कदम से बीजेपी और मजबूत हो जाएगी। लेकिन इसका एक पहलू ये भी है कि एक भारत रत्न ने फिर बीजेपी और जेडीयू को एक दूसरे के करीब ला दिया है। नीतीश की डिमांड क्योंकि केंद्र ने पूरी की है, ऐसे में पीएम मोदी से लेकर बीजेपी को लेकर सीएम का मिजाज कुछ बदला है। उसके ऊपर जिस तरह से नीतीश कुमार ने कर्पूरी ठाकुर पर दो बधाई संदेश दिए, उसने भी काफी कुछ साफ कर दिया। पहले संदेश में बिना पीएम मोदी का नाम लिखे बधाई, दूसरे में पीएम मोदी को जोड़कर बधाई, यानी कि किसके गुडबुक्स में आने का प्रयास है, उसकी झलक मिल जाती है।
अब अगर कुछ बयानबाजी ने सियासी माहौल को गर्म किया है, इसके साथ-साथ नीतीश के इतिहास ने भी काफी कुछ बताने का काम किया है। नीतीश का इतिहास ही पलटने वाला रहा है, जिनसे उनका नाता टूटता है, कुछ सालों बाद उनके साथ ही उनका गठबंधन बन जाता है। उनका सिर्फ एक उदेश्य रहा है, हर कीमत पर सत्ता में बने रहना, फिर चाहे वो लालू के साथ समझौते से हो या फिर बीजेपी के साथ गठबंधन से। इस बार माहौल ऐसा बन रहा है कि नीतीश फिर एनडीए के साथ जा सकते हैं।
अगर सिर्फ कुछ साल पहले तक की बात करें तो नीतीश ने सबसे पहले एनडीए का साथ तब छोड़ा था जब नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने अपना पीएम उम्मीदवार बनाया। इसके बाद जब महागठबंधन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, उन्होंने लालू का साथ भी छोड़ दिया। इसके बाद जब बीजेपी ने अपनी तरफ से प्रेशर पॉलिटिक्स खेली, नीतीश ने फिर पाला बदल दिया। अब दोबारा से उनकी सुई परिवारवाद पर आ टिकी है और बात हो रही है आरजेडी का साथ छोड़ने की।
लेकिन इस बार ये पलटी नीतीश के लिए इतनी आसान नहीं रहने वाली है। लालू प्रसाद यादव तैयार बताए जा रहे हैं, उन्होंने चुपचाप अपने सारे दांव सेट कर दिए हैं, स्पीकर भी क्योंकि उन्हीं की पार्टी का है, ऐसे में वहां से भी मदद मिलने की पूरी गुंजाइश दिखाई दे रही है। अभी तो महागठबंधन बहुमत के आंकड़े से सिर्फ आठ सीटें दूर है, ऐसे में अगर बीजेपी मॉडल पर चलकर लालू ने कोई बड़ा खेल किया तो इस बार नीतीश कहीं के भी नहीं रह जाएंगे। उसके ऊपर तेजस्वी यादव की ताजपोशी होगी, वो अलग।