हिमालयी राज्यों के समन्वित और सतत विकास के लिए उत्तराखंड समेत हिमालय क्षेत्र के 12 राज्यों को मिलाकर हिमालयी राज्य क्षेत्रीय परिषद का गठन किया गया है। उत्तराखंड में कई सालों से हिमालयी राज्य क्षेत्रीय परिषद का गठन किए जाने की केंद्र सरकार से विभिन्न राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन मांग कर रहे थे। 18 साल बाद उत्तराखंड राज्य के लोगों की मांग अब जाकर पूरी हुई। हिमालयी राज्य क्षेत्रीय परिषद में जिन राज्यों को शामिल किया है, उनमें उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, असम के दो जिले दीमा हसाओ और करबी आंग्लोंग तथा पश्चिम बंगाल के दो जिले दार्जीलिंग और कलिंपोंग हैं। हिमालयी क्षेत्रीय परिषद की कमान नीति आयोग के सदस्य के पास रहेगी।
9 नवंबर 2000 में उत्तराखंड राज्य बनने के बाद यहां के सामाजिक संगठनों और विभिन्न राजनीतिक दलों ने मजबूती के साथ हिमालयी राज्य क्षेत्रीय परिषद के गठन की मांग की थी। इसके बाद हिमालयी क्षेत्र के अन्य राज्यों से भी परिषद के गठन की मांग उठने लगी और इसने इतना जोर पकड़ा कि केंद्र सरकार को हिमालयी राज्यों को हिमालयी राज्य क्षेत्रीय परिषद का मंच प्रदान करना पड़ा। हिमालयी राज्यों के विकास के लिए अलग परिषद बनाने के अलावा अलग मंत्रालय का मुद्दा संसद से लेकर राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक तक में प्रधानमंत्री के सामने कई बार उठा। परिषद बनने से अब उत्तराखंड जैसे नवोदित पर्वतीय राज्य अपनी समस्याओं को इस मंच पर प्रभावी ढंग से रख सकेंगे।
2009 में उत्तराखंड में डॉ रमेश पोखरियाल निशंक की सरकार ने हिमालयी राज्य क्षेत्रीय परिषद के गठन तथा उत्तराखंड को राज्य के 70 फीसद भू-भाग में स्थित वन सम्पदा के संरक्षण के बदले ग्रीन बोनस देने की मांग जोर-शोर से उठाई थी। परंतु तब अन्य राजनीतिक दलों के साथ-साथ भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं ने निशंक सरकार की इस मांग को हल्के में लिया था। 2013 में उत्तराखंड में आई केदारनाथ आपदा के बाद राज्य में ग्रीन बोनस की मांग तेजी से उठी।
बाद में इस मांग को विजय बहुगुणा और हरीश रावत की सरकार ने जोरशोर से उठाया। डॉ निशंक का कहना है कि हमारा पर्वतीय राज्य पूरे देश और दुनिया को स्वच्छ पर्यावरण और हवा-पानी देने के लिए अपने राज्य के 70 फीसद भू-भाग में वन सम्पदा की रक्षा करता है। इसके एवज में उत्तराखंड को ग्रीन बोनस दिया जाना चाहिए। उत्तराखंड के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह का कहना है कि काफी लंबे समय से प्रदेश स्तर पर हिमालयी राज्य क्षेत्रीय परिषद के गठन के प्रयास हो रहे थे। हिमालय राज्यों के सरोकारों से जुड़े मामलों को अलग ढंग से देखा जाना चाहिए और उन्हें रखने के लिए हिमालयी राज्यों को केंद्रीय स्तर पर एक फोरम अवश्य मिलना चाहिए।
हिमालयी राज्य क्षेत्रीय परिषद हिमालयी क्षेत्र में सतत विकास के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगी। यह परिषद विकास के लिए प्रमुख पांच बिंदुओं पर खासा गौर करेगी। पहला, हिमालय में जल स्रोतों की सूची बनाना और उनका पुनरुद्धार करना। दूसरा, हिमालयी राज्यों में सतत पर्यटन का विकास करना और पर्यटन नीति हिमालयी राज्यों की भौगोलिक, सामाजिक और पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुसार बनाना। तीसरा, पवर्तीय क्षेत्रों में खेती की तकनीक में आमूल-चूल सुधार करना। चौथा, हिमालयी राज्यों में कौशल विकास और उद्यमिता का माहौल तैयार करना और उसे स्थायित्व प्रदान करना। पांचवां, विकास से संबंधित कठोर एवं व्यावहारिक निर्णय लेना और इसके लिए सूचनाओं के आंकड़े तैयार करना।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की जानकारी रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर अवनीत कुमार घिल्डियाल का कहना है कि उत्तराखंड सहित हिमालय राज्यों की भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियां मैदानी राज्यों की तुलना में बिल्कुल अलग हैं। हिमालयी राज्यों का जनसंख्या घनत्व मैदानी राज्यों के मुकाबले बिल्कुल अलग है। इसीलिए हिमालय राज्यों के ढांचागत विकास के लिए योजना बननी चाहिए।
हिमालयी राज्य क्षेत्रीय परिषद के गठन से हिमालय राज्यों को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी बात कहने के लिए अलग से अब एक मंच मिलेगा और इन राज्यों के मुख्यमंत्री, प्रशासनिक अधिकारी तथा विशेषज्ञ अब एक साथ बैठकर अपने-अपने राज्यों की समस्याओं को साझा कर सकेंगे। इससे सभी हिमालयी राज्यों की आपसी समझ और ज्यादा बढ़ेगी तथा हिमालयी राज्यों के लिए विकास का एक नया रास्ता खुलेगा।