दिल्ली को जाम से मुक्त करने के लिए ट्रैफिक में एक विशेष आयुक्त, तीन संयुक्त आयुक्त, तीन अतिरिक्त आयुक्त और करीब दर्जन भर उपायुक्तों, सहायक पुलिस आयुक्तों की तैनाती के बाद भी दिल्ली जाम से बेहाल है। दिल्ली पुलिस में सबसे ज्यादा इसी यूनिट में पुलिस अधिकारियों और जवानों की तैनाती है। ट्रैफिक इंस्पेक्टरों का तो यह हाल है कि कौन-किस क्षेत्र में तैनात हैं और किस क्षेत्र की गाड़ी को कौन पकड़ने के लिए अधिकृत हैं इसे लेकर हमेशा असमंजस बना रहता है।

दिल्ली में जाम से मुक्ति पाना आसान नहीं है। कारण यहां सबसे ज्यादा कमाई वाला यूनिट ट्रैफिक है और इस यूनिट में जाने के लिए दिल्ली पुलिस में इंस्पेक्टर हमेशा प्रयासरत और लालायित रहते हैं। दिल्ली की सड़कों पर जाम से मुक्ति तभी मिलेगी जब ट्रैफिक इंस्पेक्टर इमानदारी से काम करने लगें। लेकिन यह हो कैसे हो सकता है। जब पब्लिक स्कूलों के सामने ट्रैफिक इंस्पेक्टर गाड़ियां खड़ी कराने का जिम्मा लेते हों तो फिर दिल्ली में ट्रैफिक दुरुस्त होना मुश्किल ही नहीं असंभव माना जाना चाहिए। दिल्ली के हर इलाके में पब्लिक स्कूल के सामने दोपहर में जाम लगता है।

वह चाहे दिल्ली का दिल कनाट प्लेस हो या फिर पूर्वी दिल्ली का घनी बस्ती मंडावली और विनोदनगर। यहां स्कूल प्रशासन अगर ट्रैफिक पुलिस इंस्पेक्टर से दोस्ती न करें तो इनकी कमाई का आधा नहीं बल्कि पूरा पैसा ट्रैफिक चालान में चला जाएगा। यही कारण है कि जब पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार फेस एक एक्सटेंशन स्थित अमेटी पब्लिक स्कूल, एएसएन सीनियर सेंकेंडरी स्कूल, मदर मेरी स्कूल, अलकान पब्लिक स्कूल सरीखे अन्य स्कूलों के सामने दोपहर में ट्रैफिक जाम का मुद्दा पूर्वी दिल्ली नगर निगम की एक बैठक में निगम पार्षद निक्की सिंह ने उठाया तो सारा सदन एक बारगी चौंका तो जरूर पर दबी जुबान से यही आवाज आई कि ऐसे मामले में कौन हाथ रखेगा। दिल्ली पुलिस भीड़भाड़ इलाके में ट्रैफिक व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए हेलिकॉप्टर भी किराए पर लिया पर नतीजा वही ढाक के तीन पात वाली।

सूत्रों के मुताबिक दिल्ली मेट्रो, मोनो रेल, निजी बसों को हटाकर दिल्ली परिवहन निगम की बसों को चुस्त-दुरुस्त करने के तमाम कवायदों के बावजूद दिल्ली की सड़कों से जाम नहीं हटने का सबसे प्रमुख कारण है कि सौ से कुछ कम संख्या बल के ट्रैफिक इंस्पेक्टर हमेशा इसी ताक में रहते हैं कि उन्हें ऐसा कौन सा क्षेत्र मिले जिससे उनकी चांदी होती रहे। यही कारण है कि मेट्रो स्टेशनों के आसपास चलने वाली छोटी गाड़ियां धड़ल्ले से सड़कों पर घूमती दिख जाती हैं और उसकी धरपकड़ का मतलब मुश्किल से एक या दो दिन तक ही रह पाता है। कहा तो यहां तक जाता है कि ट्रैफिक पुलिस के कई आला अधिकारियों की गाड़ी बिना रोक-टोक सड़कों पर चलती है और उसके अगले हिस्से में दिए निशान से कोई उसे पकड़ने का दुस्साहस नहीं करता है। बीते दिन पूर्वी दिल्ली में कई ऐसी गाड़ियों की धड़पकड़ हुई तो ऐसे कई किस्से सामने आए।
बताया जा रहा है कि जब आलोक कुमार वर्मा दिल्ली के नए पुलिस आयुक्त बने तो उनके सामने भी सबसे ज्यादा समस्या कानून व्यवस्था सुधारने के बाद जाम से दिल्लीवालों को मुक्ति दिलाने की थी।

तब आयुक्त ने आनन-फानन में पहले विशेष आयुक्त डॉक्टर मुक्तेश चंद्र का तबादला किया गया। फिर संयुक्त आयुक्त शरद अग्रवाल को साथ देने के लिए दो अन्य संयुक्त आयुक्तों गरिमा भटनागर और एके ओझा को लाया गया। इसके अलावा तेजतर्रार उपायुक्तों और पीटीसी, जिले में अतिरिक्त के बाद के अतिरिक्त और मिजोरम से आए एन गनासंबंधन, किम केमिंग और अमरेंद्र कुमार सिंह की तैनाती की गई। कहा जा रहा है कि जब तक ट्रैफिक इंस्पेक्टर छुपकर चालान काटने का ढोंग नहीं छोड़कर सीधे तौर पर स्कूलों के सामने लगने वाली भारी बसों, मेट्रो स्टेशनों के सामने खड़ी टाटा 407 और ग्रामीण सेवा का चालान नहीं काटने का अभियान चलाएंगे तब तक अधिकारियों की लंबी फौज क्यों न खड़ी कर दी जाए, दिल्ली को जाम से कोई मुक्त नहीं कर सकता।