आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार में मचे अंदरूनी घमासान के कारण दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। दिल्ली मेट्रो के किराए में हुई बढ़ोतरी भी आप के झगड़े के कारण ही मुद्दा नहीं बन पाई। लगातार घाटे में रहने वाली दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) की बसों की संख्या लगातार कम हो रही है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू की गई क्लस्टर बस योजना में 4500 के बजाए अब तक महज 1700 बसें ही आ पाई हैं। दिल्ली की सड़कों पर 11000 बसें लाने के लिए हाई कोर्ट में हलफनामा देने वाली दिल्ली सरकार के पास कुल 4300 बसें रह गई हैं जिनमें 600 वे बसें हैं जिन्हें नियमों के हिसाब से सालों पहले ही सड़क से हटा देना चाहिए था। पहले दिल्ली के 65 फीसद यात्री बसों में सवारी करते थे, अब यह संख्या घटकर 30 के आसपास पहुंच गई है। सीएसई (विज्ञान और पर्यावरण केंद्र) की रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें सुधार नहीं किया गया तो 2020 में यह औसत 20 फीसद तक रह जाएगा। निजी बस मालिकों के संगठन एसटीए आॅपरेटर एकता मंच के राजबीर सिंह और श्यामलाल गोला बताते हैं कि वे सरकार को हर तरह का प्रस्ताव दे चुके हैं। इतना ही नहीं वे क्लस्टर सेवा के लिए तय की गई दर पर काम करने को भी तैयार हैं। उन्हें न तो डिपो चाहिए और न ही कोई सरकारी सुविधा। वे सरकार के नियमों के हिसाब से भी अपनी सेवा देने को तैयार हैं लेकिन सरकार तय ही नहीं कर पा रही है।
2008 में ब्लूलाइन बसों को हटाने के बाद सरकार ने क्लस्टर योजना के तहत एक आॅपरेटर को एक क्लस्टर देकर निजी बस चलवाने का फैसला किया। 17 क्लस्टर बने, लेकिन आज तक सिर्फ नौ क्लस्टरों में 1700 बसें ही चल पार्इं। डीटीसी इस कदर घाटे में है कि उसे अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए दिल्ली सरकार से पैसे लेने पड़ते हैं। दिल्ली में केजरीवाल की सरकार बने दो साल से अधिक हो गए, लेकिन एक भी नई बस नहीं खरीदी जा सकी। क्लस्टर योजना में भी गिनती की बसें शामिल हो पाई हैं। दिल्ली की आबादी करीब दो करोड़ हो चुकी है और एनसीआर से भी रोजाना हजारों लोग कामकाज के लिए यहां आते हैं। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था ठीक न होने से ही दिल्ली में पंजीकृत गाड़ियों की तादाद एक करोड़ से ज्यादा हो गई है। यहां का कोई इलाका ऐसा नहीं है, जहां हर रोज जाम न लगता हो। हालांकि मेट्रो बनने से राजधानी की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में काफी सुधार हुआ है, लेकिन मेट्रो का निर्माण काफी महंगा है और उससे भी महंगा उसका रखरखाव है। दूसरा उसे बस की तरह हर गली-मोहल्ले तक नहीं ले जाया जा सकता है। 2009 के बाद हाल ही में मेट्रो का किराया बढ़ने से भी लोग परेशान हैं। अगर यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में मेट्रो की सवारी आम जन के लिए नहीं रह पाएगी। वहीं दिल्ली में मुंबई जैसा लोकल रेल नेटवर्क बनाने पर अभी तक प्रयोग ही हो रहा है।
निजी बसों के लिए क्लस्टर योजना शुरू होने के बाद एक-दो बसों के परमिट लेने की हैसियत रखने वाले बस मालिक एसटीए आॅपरेटर एकता मंच बना कर 2008 से ही दिल्ली सरकार के चक्कर लगा रहे हैं। मंच के अध्यक्ष सुरेंद्र्र पाल सिंह कहते हैं कि एक तरफ तो लोगों को बसें नहीं मिल रही हैं, वे मजबूरी में निजी वाहनों का सहारा ले रहे हैं। दूसरी तरफ मेट्रो का किराया बढ़ा कर उन्हें और परेशान किया जा रहा है। वहीं हम लोग सरकार की शर्तों पर डीटीसी के खर्च से आधे में बस चलाने को तैयार हैं, तो हमें मौका नहीं दिया जा रहा है। गोला ने बताया कि उन्हें बार-बार मिलने के लिए बुलाया जाता है, परमिट देने का आश्वासन दिया जाता है और कोई फैसला नहीं हो पाता है। आप सरकार ने बिजली-पानी के साथ-साथ मेट्रो व डीटीसी का किराया न बढ़ने देने की घोषणा की थी, लेकिन अब किराया बढ़ने के समय वे आपसी लड़ाई में व्यस्त हैं और आम लोग परेशान हैं।
