सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (9 मई) को संकेत दिया कि वह दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 2000 सीसी से ऊपर के इंजन की क्षमता वाली नई डीजल लक्जरी कारों के पंजीकरण पर प्रतिबंध लगाने के अपने आदेश में राहत देने पर विचार कर सकता है। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर की मौजूदगी वाली पीठ ने कहा, ‘बुनियादी तौर पर हमारा मानना है कि डीजल वाहन दूसरे वाहनों की तुलना में अधिक प्रदूषण करते हैं। हम सही हो सकते हैं, हम गलत हो सकते हैं। हम इसमें संशोधन करने के लिए तैयार हैं।’
देश की सबसे बड़ी अदालत ने दिल्ली सरकार, पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण और टैक्सी मालिक संघ से कहा कि एनसीआर से डीजल वाहनों को हटाने की ठोस रूपरेखा दें। न्यायालय ने यह भी संकेत दिया कि मूल्य और इंजन क्षमता के मुताबिक सभी डीजल कारों को एक बार में पर्यावरण उप कर अदा करना चाहिए। इस पीठ में न्यायमूर्ति आर भानुमती और न्यायमूर्ति एएस सीकरी भी थे।
पीठ ने कहा, ‘हम उस व्यक्ति पर एक प्रतीकात्मक उप कर लगाना शुरू कर सकते हैं जो डीजल वाहन खरीद रहा है। यह एक बार का उपकर होगा। इसका पैमाना, मूल्य, इंजन क्षमता क्या होनी चाहिए, इस पर चर्चा होनी चाहिए। इस पर फैसला करने के लिए तर्कसंगत आधार होना चाहिए।’
न्यायालय की टिप्पणी उस वक्त आई जब सॉलिसीटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा कि प्रदूषण के लिए एकमात्र डीजल जिम्मेदार नहीं है। सीएनजी और पेट्रोल जैसे दूसरे र्इंधन भी पर्यावरण को दूषित करते हैं। उन्होंने कहा कि पेट्रोल भी कार्बन मोनोआक्साइड का उत्सर्जन करता है, जबकि सीएनजी के वाहन भी नाइट्रोजन आक्साइड छोड़ते हैं। ये सभी प्रदूषण फैलाने वाले हैं। कुमार ने कहा कि केंद्र ने ‘मेक इन इंडिया’ नीति की शुरुआत की है और ऑटोमोबाइल क्षेत्र को प्रदूषण के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।