बिहार के ऐतिहासिक नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचीन अवशेषों को यूनेस्को के विश्व धरोहर की सूची में शामिल किए जाने से पहले इसकी राह में कुछ अड़चनें आई। हालांकि एएसआई ने कहा कि वह इस बात को लेकर आश्वस्त था कि विश्वविद्यालय को यह प्रतिष्ठित दर्जा हासिल होगा। शुक्रवार (15 जुलाई) को को प्राचीन विश्वविद्यालय के पुरातात्विक स्थल को विश्व धरोहर घोषित किया गया लेकिन सूत्रों ने बताया कि इसके लिए केन्द्र और बिहार सरकार की तरफ से सभी तरह के प्रयास किए जाने की आवश्यकता थी क्योंकि आईसीओएमओएस ने 200 पृष्ठ के नामांकन डोजियर में ‘कमजोरी’ की तरफ इशारा किया था।
तुर्की के इस्तांबुल में विश्व धरोहर समिति की 40वीं बैठक में नालंदा के अलावा चीन, ईरान और माइक्रोनेशिया के तीन अन्य स्थलों को भी विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया। सूत्रों ने बताया कि आईसीओएमओएस ने अपनी अनुशंसाओं में भारत से नामांकित संपत्ति के बारे में गहरा अध्ययन करने के लिए कहा था। उन्होंने बताया कि उसने साथ ही नामांकन की शब्दावली को ‘एक्सकेवेटेड रिमेन्स ऑफ नालंदा महाविहार’ से बदलकर ‘आर्कियोलॉजिकल साइट ऑफ नालंदा महाविहार’ करने का सुझाव दिया था।
हालांकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने कहा है कि वह इस बात को लेकर आश्वस्त था कि नालंदा को यूनेस्को की सूची में शामिल किया जाएगा। एएसआई महानिदेशक राकेश तिवारी ने बताया, ‘पहले दिन से हम इसे हासिल करने को लेकर आश्वस्त थे। हम लोगों का विश्वास था कि हमारा पक्ष मजबूत था और हमारे डोजियर ने इसे हमारे पक्ष में कर दिया। आईसीओएमओएस के सुझाव को लेकर हम लोग बहुत अधिक चिंतित नहीं थे।’
बिहार की राजधानी पटना से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में उसके उत्कर्ष के दिनों में कई अध्ययन केन्द्र, मठ और समृद्ध पुस्तकालय थे जिसमें सुदूर स्थानों से विभिन्न विषयों की पढ़ायी करने के लिए छात्र आया करते थे। यह प्राचीन विश्वविद्यालय 12वीं शताब्दी में उस समय बंद हो गया जब बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में तुर्क सेना ने वर्ष 1193 में इसमें तोड़फोड़ और लूटपाट की और साथ ही इसमें आग लगा दी। एएसआई ने नामांकन डोजियर तैयार किया था और इसे जनवरी 2015 में विश्व धरोहर समिति के पास भेजा था।

