‘भगवान किसी धर्म में बंटे नहीं होते। वे राम रहीम और अल्लाह के रूप में सभी के लिए एक समान होते हैं।’ यह कहना है नवश्री धार्मिक लीला कमेटी, लाल किला में कुंभकरण और मेघनाद के अभिनय के लिए चुने गए मुजीबुर रहमान का। रहमान कई साल से इस नवश्री धार्मिक लीला कमेटी के मुरीद हैं और इन 11 दिनों तक सात्विक भोजन लेना पसंद करते हैं। दिल्ली की लगभग सभी रामलीलाओं में मुसलिमों का बढ़-चढ़कर भाग लेना दोनों समुदायों के बीच मधुर रिश्तों को दर्शाता है। यहां रावण, कुंभकरण, मेघनाद के पात्र निभाने और पुतले बनाने से लेकर लंका दहन व ताड़का वध और फिर रामलीला मंचन में मुसलिम कलाकारों ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका सिद्ध कर हिंदू-मुसलिम एकता का पैगाम दिया है।

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंगमंडल से प्रशिक्षित और श्रीराम सेंटर से दो साल का अभिनय का प्रशिक्षण ले चुके मुजीबुर का कहना है कि दुर्गापूजा हो या दीपावली या ईद और रमजान हर पर्व में उसकी भूमिका एक समान होती है। वे सभी पर्व समान रूप से हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। समिति के प्रचार सचिव राहुल शर्मा ने बताया कि यहां मुजीबुर के अलावा तकनीक का जिम्मा भी मुसलिम भाइयों पर ही है। द्वारका सेक्टर-10 श्री रामलीला सोसायटी में 15 मुसलिम कलाकार एक महीने से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इरफान खान इस टीम के प्रधान हैं। वे रावण भी बनाते हैं और लीलाओं में भाग भी लेते हैं। कमेटी के प्रधान पूर्व विधायक राजेश गहलोत कहते हैं कि पश्चिमी दिल्ली में सबसे बड़ी रामलीलाओं में एक द्वारका में नेपाल के जनकपुर में स्थित माता जानकी के मंदिर की तरह यहां का महल बनाया गया है। वे कहते हैं कि मुरादाबाद के मुसलिम कलाकारों का विशेष योगदान है और हमारे लिए वे दुर्गापूजा में विशेष महत्त्व रखते हैं।

आदर्श रामलीला कमेटी में तबला वादक की भूमिका में समीर खान अपनी भूमिका निभाते हैं। खान लक्ष्मीनगर के हैं और कई साल से यहां अपनी सेवाएं दे रहे हैं। मेला कमेटी के प्रचार सचिव प्रवीण कुमार सिंह ने बताया कि समीर खान तबला ही नहीं बजाते बल्कि वे पूरी संगीत मंडली का एक तरह से नेतृत्व करते हैं। पूरे दुर्गा पूजा में वे यहां के वातावरण में इस तरह ढल जाते हैं कि हमें उनके धर्म के बारे में पता ही नहीं चलता। दिल्ली की रामलीलाओं में आलम अली का नाम नहीं लिया जाए तो ऐसा लगता है कि कुछ छूट गया है। आलम अली की तीन पीढ़ियां दिल्ली की रामलीलाओं में सक्रिय रही हैं। आलम ने बताया कि वे रावण, कुंभकरण, मेघनाद के पुतले बनाने से लेकर लंका नगरी, ताड़का वध का दृश्य बनाना उनके लिए गौरवान्वित करने जैसा है। वे महीने भर कई रामलीलाओं में व्यस्त रहते हैं। उनके साथ नौशाद, उस्मान, रज्जाक खान, नईम, शादाबा और मोहम्मद जौनी जैसे सौ से ज्यादा कारीगर हैं जो हरे लीला समिति में 10-15 की टोली में काम करते हैं। आलम कहते हैं कि उनके पिता इलियास मोहम्मद और बड़े भाई आजम अली भी इस दौरान दिल्ली में डेरा डाले रहते थे। मेहनताना के बारे में वे कहते हैं कि तीन लाख से छह लाख के बीच हर कमेटी से उन्हें मेहनताना मिलता है लेकिन इसके लिए कोई बाध्यता नहीं होती।