समलैंगिक संबंधों के बारे में धारा 377 को लेकर सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश का सेना अध्ययन कर रही है। सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत और शीर्ष सात कमांडरों की मंगलवार को बैठक में लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की एक कमेटी गठित की गई, जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। यह कमेटी कोर्ट मार्शल से जुड़े सैन्य कानून में संशोधन सुझाएगी। यह कमेटी सेना में सामने आए समलैंगिकता से जुड़े मामलों का अध्ययन कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के सैनिकों पर असर के बारे में भी विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगी।
यह कमेटी अमेरिका, इंग्लैंड और फिलिप्पींस के सैन्य कानूनों का अध्ययन करेगी, जहां समलैंगिक सैनिकों की स्वीकारोक्ति है। फिलहाल तो सेना, नौसेना और वायुसेना के मौजूदा कानून समलैंगिक संबंधों के मामलों में कोर्ट मार्शल के तहत कठोरतम सजा का प्रावधान सुझाते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण इसे बदलने की कवायद शुरू की गई। सेना के अधिकारियों के मुताबिक समलैंगिक संबंधों से जुड़े मामले सामने आने पर क्या करना उचित रहेगा, उस सैन्यकर्मी की नियुक्ति के क्षेत्र आदि के बारे में यह कमेटी उपाय सुझाएगी। संविधान की धारा 33 के तहत सेना के सुझाव पर सैन्य कर्मियों से जुड़े कानून में संसद बदलाव कर सकती है।
सेना की ताजा कवायद को लेकर लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर) एचएस पनाग ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट का निर्देश सहमति से समलैंगिक संबंधों के बारे में है। सेना में अधिकतर शिकायतें असहमति वाली होती हैं। हालांकि, सहमति से संबंधों को लेकर कोर्ट मार्शल के प्रावधानों में बदलाव की जरूरत होगी। सेना के विधि विभाग में रहे ब्रिगेडियर (रिटायर) संदीप थापर के मुताबिक, कोर्ट मार्शल कानून बदलने के साथ ही सेना को कई और काम करने होंगे। अगर सेना में कोई समलैंगिक सैनिक होता भी है तो वह खुलकर सामने नहीं आता। अब अगर वैसे सैनिक खुलकर सामने आते हैं तो उनके बारे में सेना को सोचना होगा।