ईद-उल-अजहा के मौके पर दिल्ली में कुर्बानी के लिए बकरे पांच हजार से लेकर करीब एक लाख रुपए तक में बिक रहे हैं। बकरीद के करीब आने पर राजधानी में मवेशियों की खरीद-फरोख्त में तेजी आ गई है। सिर्फ जामा मस्जिद इलाके में लगे मवेशी बाजार की मंडी में अब तक लाखों रुपए के मवेशी बिक चुके हैं। आगामी मंगलवार को पड़ने वाली ईद को लेकर इन दिनों जामा मस्जिद, जाफराबाद, कसाबपुरा और ओखला में पिछले एक पखवाड़े से बकरा मंडियां लगी हुई हैं। इन मंडियों में बकरा, ऊंट, भेड़, मेंडा, दुंबा, और बैल बिक रहे हैं। वैसे मवेशी बाजार में सबसे ज्यादा बिक्री बकरों की हो रही है।

राजधानी में लगी मंडियों में औसतन 30 हजार मवेशी रोजाना बिक रहे हैं। पिछले एक पखवाड़े से चलने वाली इन मंडियों में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़, मुरादाबाद, बुलंदशहर, मुजफ्फरपुर, खुर्जा, संभल, रामपुर, मेवात और राजस्थान से मवेशियों के रेवड़ आए हुए हैं। इन मंडियों में मवेशियों की लगातार खरीद-फरोख्त चल रही है। मवेशी मंडी में बकरोें की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। करीब पांच साल पहले जिस बकरे की कीमत डेढ़ हजार रुपए होती थी, वह अब मौजूदा में पांच हजार रुपए से कहीं भी कम नहीं है। बकरों की कीमतों में लगातार हो रहे इजाफे की वजह उसकी ज्यादातर आपूर्ति मुंबई में होना है। बकरों की आपूर्ति के एक व्यापारी मोहम्मद साजिद ने बताया कि मुंबई में बकरों की कीमतें ज्यादा मिल जाती हैं। उन्होंने बताया कि जो बकरा यहां पर पांच हजार रुपए में बिकता है, वही मुंबई में सात से आठ हजार रुपए में बिक जाता है। उसने बताया कि बकरों के ज्यादातर व्यापारी अपने मवेशी दिल्ली के बजाए मुंबई ले जा रहे हैं। जामा मस्जिद के मवेशी बाजार में इन दिनों काबुल की नस्ल के दुंबा काफी चर्चा में हैं। बाजार में दुंबे के दो बड़े व्यापारी दरियागंज के मोहम्मद रफी और लालकुआं के आकिल हैं। ये दोनों बरसों से दुंबे की बिक्री कर रहे हैं। दुंबे की न्यूनतम कीमत करीब 51 हजार रुपए मानी जाती है। दुंबे का वजन सौ किलो से ज्यादा ही होता है। कई दुंबों का वजन तो 300 किलो के आसपास होता है।

अभी मवेशी बाजार में जगह-जगह घुंघरू बंधे और रंग-बिरंगे सजे बकरों को देखा जा सकता है। मंगलवार को ईद के दिन सुबह की नमाज के बाद मुसलिम परिवारों में बकरों की कुर्बानियां शुरू हो जाएंगी। ये कुर्बानियां ईद और फिर उसके बाद के दो दिन बासी और तेवासी तक चलती रहेंगी। कुर्बानी के बकरों के तीन हिस्से किए जाते हैं। इनमें एक हिस्सा घर का, दूसरा रिश्तेदारों का और तीसरा गरीबों के नाम का होता है। आमतौर पर परिवार में जितनें सदस्य होते हैं, उतनों के नाम से कुर्बानियां दी जाती हैं। ऊंट की कुर्बानी इस मामले में अपवाद है। परिवार में यदि सात सदस्य हैं तो सिर्फ एक ऊंट की कुर्बानी दे सकते हैं। लेकिन बकरों में ऐसा नहीं होता है।