जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में पहली बार वामपंथी संगठनों में हड़कंप मचा है। जहां नौ फरवरी की घटना ने वाम का गढ़ माने जाने वाले जेएनयू में वामधड़े को एकजुट होकर चुनाव लड़ने को विवश किया है वहीं इस घटना के केंद्र कन्हैया जैसे चर्चित नेता व उसके संगठन ने चुनाव से बाहर रहने का फैसला किया है। जहां सबसे मजबूत पकड़ वाले वामपंथी संगठन एआइएसएफ मैदान में है वहीं आपस में धुर विरोधी माने जाने वाले संगठनों आइसा व एसएफआइ ने एक जुट होकर साझे उम्मदवारों को मैदान में उतारा है। इनका नारा है कि दक्षिणपथियों की जीत रोकनी है। जेएनयू के वामदलों ने पहले भी कई बार एक जुट होने की असफल कोशिशें की थीं पर अबकी बार तो नौ फरवरी ने सभी को एकजुट कर दिया था।
साझे मंच का आह्वान एसएफआइ ने किया था। लेकिन महासंघ बनाने के इस फैसले को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। जब आइसा (आल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन) और एआइएसएफ (आल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन) के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर विवाद हो गया और डीएसएफ(डेमोक्रेटिक स्टूडेंट फ्रंट) को शामिल करने पर भी आपस में सहमति नहीं बन सकी। जब यह बात नहीं बनी तो कट्टर वाममंथी आइसा व नरम रुख वाले वाम संगठन एसएफआइ ने एक दूसरे का हाथ थाम लिया और दोनों ने आपसी सहमति से चार पदों पर दो दो उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं।
आइसा ने एआइएसएफ के साथ गठबंधन करने से मना कर दिया और उनकी कोई भी शर्त मानने से इंकार कर दिया। आइसा के इस रुख से एआइएसएफ को गहरा झटका लगा। गौरतलब है कि फरवरी के विविदित कार्यक्रम में जेएनयू छात्र संघ के पदाधिकारी एआइएसएफ से कन्हैया कुमार ही थे जो केंद्र में थे। वे गिरफ्तार भी किए गए थे। हालांकि एआईएसएफ व आइसा आपस में सहमति न बनने को लेकर एक दूसरे पर आरोप मढ़ रहे हैं। असल में विवाद की जड़ें व असली वजहें यह रहीं कि एआइएसएफ, डीएसएफ को भी साथ करने के पक्ष में था, लेकिन यह एसएफआइ इस बात को लेकर तैयार नहीं था। क्योंकि डीएसएफ एसएफआइ से टूटकर ही बना है। एआइएसएफ का यह भी आरोप है की अध्यक्ष की कुर्सी आइसा चाहती थी। इस झटके के बाद एआइएसएफ ने चुनाव न लड़ने लेकिन वाम संगठनोें के साथ खड़ा होने का फैसला किया है। सगठन का कहना है कि वो इस बार चुनाव नहीं लड़ेगी क्योंकि वो चाहते हैं की परिषद किसी भी सूरत में चुनाव ना जीते। भले ही इसके लिए कुछ भी करना पड़े।

