दिल्ली सरकार के पिछले दिनों के वादों को आजकल विपक्षी पार्टियां अपना हथियार बनाकर विज्ञापन के माध्यम से दिखा रही हैं। फिर चाहे उनका बिजली का वादा हो या फिर यमुना नदी को साफ करने का। सरकार ने वादा किया था कि आते ही यमुना को साफ कर देंगे लेकिन हालत सबको पता है, जानवर भी यमुना का पानी पीने नहीं जा रहे। वो सफेद झाग देखकर डर रहे हैं। प्रदूषण का झाग ऐसा कि साबुन कंपनियां भी शरमा जाएं। हाल ही में सोशल मीडिया पर भाजपा नेता ने यमुना की एक फोटो जारी कर दी। फोटो में झाग के बीच मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री को दिखाया गया है। फोटो पर लिखा गया है कि स्वच्छ यमुना में डुबकी लगाने जाते मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्री।

प्लास्टिक की पाबंदी

कोरोना काल ने कई चीजों पर पानी फेरा उसमें एकल उपयोग प्लास्टिक के इस्तेमाल भी शामिल है। जहां पहले लोग इसको लेकर सख्त थे वहीं महामारी के समय प्लास्टिक का उपयोग और तेजी से बढ़ा। औद्योगिक नगर में तो लोग बकायदा थैला बैंक बनाए हुए थे कि लोगों की मदद करेंगे लेकिन ये बैंक भी बीमारी के डर से बंद हो गए। नतीजा यह हुआ है कि प्लास्टिक की थैलियों, थर्माकोल की प्लेट, चम्मचों आदि की खपत पहले से कई गुना अधिक बढ़ गई हैं।

जिम्मेदारी का बोझ
दिल्ली पुलिस के मुखिया का काम जितना जिम्मेदारी भरा है उनकी कुर्सी की चमक स्थायी मुखिया न मिलने से कम होती जा रही है। अब तो कानाफूसी भी शुरू हो गई है। बेदिल ने सुना कि जूनियर को सीनियर के तौर पर बिठाने के बाद कहीं विरोध न शुरू हो जाए इसलिए कार्यकारी से काम चला रहे हैं। बाद में उन्हें स्थायी करके विदा कर दिया जाएगा। जैसा कि पहले किरण बेदी के समय हुआ। उनसे जूनियर को जैसे ही पुलिस आयुक्त बनाया गया उन्होंने पुलिस सेवा से अवकाश ले लिया। हालांकि पुलिस में कोई अधिकारी विरोध की हिम्मत नहीं दिखा पाता वरना ऐसे वाकये तो सामने आते रहे हैं। एसएन श्रीवास्तव भी ऐसे ही रहे। बड़े-बड़े विवादित मामले कार्यकारी बनकर संभाल लिया और शांति के समय स्थायी आयुक्त बने। अब देखिए नए मुखिया कब स्थायी होते हैं।

सत्ता का रास्ता
राजनीति में आने वालों को मालूम होता है कि सत्ता का रास्ता किन गलियों से होकर गुजरता है। अगर थोड़े अनुभवी हैं तो यह रास्ता खोजना उनके लिए और आसान हो जाता है। अब दिल्ली नगर निगम के एक पूर्व महापौर को लीजिए। वे मौजूदा महापौर से ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं। बेदिल ने जब तहकीकात की तो पता चला कि दरअसल उन्हें महापौर के पद से हटने के बाद कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई। कहते सुना गया कि उनको संगठन में बड़ा पद चाहने के लिए आलाकमान की नजर में आना है तो सक्रिय दिखना होगा। तो बस उनकी समाजसेवा जारी है।

हाल-ए-रेलवे
उत्तर रेलवे की ट्रेन अब नाम की स्पेशल रह गई हैं। कोरोना दिशानिर्देश ताक पर हैं। केवल कंफर्म सीट पर ही यात्रा के दावे खोखले हैं। खासकर बिहार से दिल्ली आने वाली ट्रेनों का। बीते दिनों बिहार संपर्क क्रांति का नजारा कुछ ऐसा ही था। जितनी सीट उससे दोगुने लोग। अब भला सामाजिक दूरी का पालन कैसे हो? यात्रियों के सामने बड़ी समस्या! एक यात्री ने ठीक ही कहा- रेलवे, केवल कागजों पर ही कर रहा है कोरोना दिशानिर्देशों का पालन। नहीं तो टीटी प्रतीक्षा सूची वालों का स्वागत क्यों करते। दरअसल रेलवे को पैसा आ रहा है, लिहाजा सब क्षम्य है। ऐसे भी कोरोना काल ने कई लोगों को जो अवसर प्रदान किए उसे भुनाने में रेलवे चुके क्यों भला!
-बेदिल