दिल्ली की एक अदालत ने कहा है कि कोई पति गुजारे भत्ते का मामला लंबित होने के दौरान लिए गए एकतरफा तलाक के आधार पर अलग रह रही पत्नी के प्रति अपनी जवाबदेही से पल्ला नहीं झाड़ सकता। एक महिला की अपील मंजूर करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) पुलस्त्य प्रमाचला ने कहा कि अपीलकर्ता को तलाक देने का दावा करने वाले उसके पति का व्यवहार आर्थिक उत्पीड़न माना जाएगा, अगर उसने अदालत के आदेश के मुताबिक अपनी पत्नी को अंतरिम गुजारे की राशि का भुगतान नहीं किया।

न्यायाधीश ने कहा, ‘मैंने पाया है कि यह आवेदन दाखिल करते वक्त दोनों के बीच पति-पत्नी का रिश्ता होने के कारण घरेलू संबंध कायम थे।’ उन्होंने कहा, ‘गुजारे भत्ते का मामला लंबित होने के दौरान लिए गए एकतरफा तलाक के आधार पर कोई पति अलग रह रही पत्नी के प्रति अपनी जवाबदेही से पल्ला नहीं झाड़ सकता।’

निचली अदालत के आदेश के खिलाफ महिला की अपील पर यह अदालत सुनवाई कर रही थी। निचली अदालत ने महिला को पति की ओर से गुजारे की रकम दिए जाने से यह कहकर इनकार कर दिया था कि वह घरेलू हिंसा के अपने आरोप साबित करने में नाकाम रही है। बहरहाल, एएसजे ने निचली अदालत के आदेश को दरकिनार कर दिया और कहा कि पति का बर्ताव अपीलकर्ता (पत्नी) के मामले को घरेलू हिंसा कानून के दायरे में लाने के लिए पर्याप्त है ‘जिससे वह कम से कम मौद्रिक राहत की हकदार है’।

अदालत ने कहा, ‘यह भी स्पष्ट है कि बार-बार अर्जियां दाखिल कर पति साफ तौर पर अपीलकर्ता को गुजारे की रकम भीख की तरह मांगने के लिए मजबूर कर रहा था।’ अपनी याचिका में पत्नी ने कहा था कि उसने 2006 में शादी की थी और कुछ ही दिनों के भीतर उसके ससुराल वालों ने पर्याप्त दहेज न लाने पर उससे बदसलूकी शुरू कर दी। महिला ने आरोप लगाया था कि उसके पति ने उसे छोड़ दिया और उसे एवं उसके बच्चे को एक पैसा तक नहीं दिया।

बहरहाल, पति ने यातना एवं दहेज की मांग के आरोपों को नकारा और दावा किया कि उसने 2009 में उसे तब तलाक दिया जब उसकी पत्नी ने उसके माता-पिता को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।