कलाकार कला को अपना जीवन समर्पित करता है। वह सोते-जागते और उठते-बैठते जब दिन-रात उसमें डूबता है, तब उसकी कला में वह निखार आता है, जो दर्शक या श्रोता को भीतर तक छू जाता है। फिर, उसकी अनूठी छवि लोगों के मन में बस जाती है। युवा कथक नृत्यांगना गौरी दिवाकर के नृत्य को देखना और उसे महसूस करना कुछ ऐसा ही है। कथक नृत्यांगना गौरी दिवाकर ने लेडी इरविन कॉलेज में आयोजित नृत्य उत्सव में शिरकत की। यह कार्यक्रम स्पिक मैके की ओर से विरासत-2018 के तहत था। गौरी दिवाकर ने गणेश वंदना से नृत्य आरंभ किया। रचना ‘गणपति विघ्नहरण गजानन’ पर आधारित थी। वंदना में गौरी ने गणेश के विविध रूपों को हस्तकों और मुद्राओं से दर्शाया। विशेषतौर पर चारी भेद के जरिए मूषक वाहन को दिखाने का उनका अंदाज मोहक था। उन्होंने अगले अंश में तीन ताल में शुद्ध नृत्य पेश किया।
उन्होंने विलंबित लय में उठान में पैर के काम से शुरुआत की। नृत्यांगना गौरी ने एक से आठ अंकों की तिहाई, थाट, आमद, परण आमद को पेश किया। आमद की प्रस्तुति में फूल व भौंरे की गति को हस्तकों से दर्शाया। वहीं दूसरी प्रस्तुति में राधा-कृष्ण के भावों को पेश किया। परण आमद ‘धांग-धिकिट-धा’ के बोल पर शिव के रूप को सुंदर अंदाज में चित्रित किया। तीन ताल व मध्य लय में नटवरी और तेज आमद की पेशकश काफी आकर्षक थी। एक से तेरह अंकों की तिहाई में अवरोह के अंदाज तो पैर के काम के जरिए दिखाए। वहीं दु्रत लय में 22 चक्कर और गत निकास में घूंघट, मृग, सादी व नजर की गत का प्रयोग मनोरम था। पैर का जानदार काम गौरी ने जुगलबंदी में पेश किया।
कथक नृत्यांगना गौरी ने इसके लिए पंडित बिंदादीन महाराज की ठुमरी और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचना का चुनाव किया था। ठुमरी ‘सब बन ठन आए श्यामाप्यारी रे’ में वासकसज्जा और अभिसारिका नायिका के भावों की प्रस्तुति बढ़िया थी। वहीं कविता ‘नयनों के डोरे लाल, गुलाल भरे’ में राधा-कृष्ण के होली खेलने के अंदाज में चित्ताकर्षण था। गौरी के नृत्य की हर गति, अंग, प्रत्यांग, उपांगों की गति में ठहराव के साथ सौंदर्य और नजाकत थी।
कसक-मसक, कलाइयों के घुमाव के साथ, आंखों के जरिए भी भावों को दर्शाने में परिपक्वता-ाहजता थी, जो कम देखने को मिलती है।

