‘इनमें से कोई पसंद नहीं’ के विकल्प को लेकर राज्यसभा और राज्य विधान परिषदों के चुनावों में भ्रम की स्थिति को समाप्त करने के लिए चुनाव आयोग वोट को अमान्य होने से बचाने के प्रयास में कुछ नए दिशा निर्देश लाया है। आयोग के मुताबिक उसके ध्यान में ऐसे कई मामलों को लाया गया है जहां मतदाताओं ने किसी उम्मीदवार के नाम के आगे अपनी पहली पसंद का निशान तो लगा दिया लेकिन साथ ही ‘नोटा’ (इनमें से कोई पसंद नहीं) के आगे भी निशान लगा दिया। कई ने अपनी वरीयता पसंद को भी 2, 3 या 4 के रूप में दिखाया है।

ऐसा करने से संबंधित मतपत्र अस्वीकृत हो जाता है। ऐसे मामलों को देखते हुए आयोग ने इस मामले पर नए सिरे से गौर किया और कई नए दिशा-निर्देश जारी किए। आयोग ने कहा कि अगर कोई अपनी पहली पसंद में नोटा के आगे ‘1’ का निशान लगाएगा, तो इसे माना जाएगा कि उसने किसी उम्मीदवार के पक्ष में मत नहीं डाला है और ऐसे मतपत्र को अवैध माना जाएगा। भले ही उसने नोटा के साथ ही ‘1’ को अतिरिक्त पसंद के रूप में किसी अन्य उम्मीदवार के नाम के सामने भी निशान लगाया हो।

यदि पहली पसंद के रूप में किसी उम्मीदवार के आगे निशान लगाया जाता है और दूसरी पसंद के रूप में नोटा पर चिह्न लगाया जाता है तो ऐसे में मतपत्र को उस उम्मीदवार के लिए वैध माना जाएगा जिसके नाम के आगे पहली पसंद के रूप में निशान लगाया गया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण उक्त दोनों विकल्पों को 2013 के चुनाव में लागू नहीं किया गया था। शीर्ष अदालत के सितंबर 2013 के आदेश के बाद चुनाव आयोग ने ईवीएम मशीन के वोटिंग पैनल के अंत में आखिरी विकल्प के रूप में नोटा का बटन शामिल किया।

राज्यसभा और विधान परिषदों के चुनावों में इसका मतपत्रों पर अंतिम विकल्प के रूप का प्रयोग किया गया। राज्यसभा के लिए राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों के प्रतिनिधि के रूप में परोक्ष चुनाव से मतदान होता है। हर राज्य और केंद्र शासित क्षेत्र के इन प्रतिनिधियों को राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य और केंद्र शासित क्षेत्रों के निर्वाचन मंडल के सदस्य निर्वाचित करते हैं। ये चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से होते हैं।