वाकया 2019 के आम चुनाव का है। पुलवामा हमले के बाद मोदी सरकार ने बालाकोट में एयर स्ट्राइक की तो सारा देश पीएम मोदी का मुरीद बन गया। विपक्ष इस बात को समझ रहा था कि अब लोकसभा चुनाव में बीजेपी से मुकाबला आसान नहीं होगा। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के लिए सबसे बड़ी उलझन दिल्ली की सात लोकसभा सीटें थीं। वो जानते थे कि एयर स्ट्राइक के बाद बीजेपी से पार पाना आसान नहीं होगा। वो राहुल गांधी से गठबंधन का आग्रह करते रहे। कांग्रेस ने उन्हें तवज्जो नहीं दी, लेकिन 2022 आते-आते सारा सीन ही चेंज हो गया। पंजाब में फतह हासिल करके केजरी ने दिखा दिया कि गैर बीजेपी मंच के लिए अब वो एक नायाब चेहरा हैं। ऐसा चेहरा जो कांग्रेस को उसके सपने में भी शायद रास नहीं आएगा।
अन्ना आंदोलन से निकले केजरी वैसे शुरू से ही कांग्रेस के लिए सिरदर्द रहे हैं। वो भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम ही थी जिसने मनमोहन सरकार की चूलें हिला दीं और एक बड़ा वैक्यूम राष्ट्रीय राजनीति में बन गया। आंदोलन का चेहरा बेशक अन्ना हजारे थे, लेकिन उसे धार देने का काम केजरीवाल ने ही किया। हालांकि अन्ना वापस रालेगण सिद्धी लौट गए। उनका राजनीति में आने का इरादा नहीं था। केजरीवाल ने उनसे इतर रास्ता अपनाया। 2015 के दिल्ली चुनाव में वो उतरे। बहुमत हासिल नहीं कर सके तो कांग्रेस का सहारा लेकर सरकार बनाई। फिर दोस्ती तोड़कर दोबारा चुनाव का सामना किया। बीजेपी मुगालते में थी कि केजरीवाल अपनी टीम में शामिल रहीं किरण बेदी से पार नहीं पा पाएंगे। लेकिन केजरीवाल ने कमाल कर दिया। बीजेपी और कांग्रेस का पूरी तरह से सूपड़ा साफ हो गया था। 67 सीटें जीतकर केजरीवाल ने राजनीति में धमाल मचा दिया था।
अलबत्ता जीत के बाद भी केजरीवाल कभी कांग्रेस को चुनौती की तरह से नहीं लगे। वजह थी उनका दिल्ली में सिमटना। बाहर के सूबों में केवल पंजाब ही था जहां उनके चार नेता जीतकर संसद पहुंचे। 2017 के चुनाव में माना जा रहा था कि वो कांग्रेस के लिए पंजाब में कड़ी चुनौती बनेंगे। लेकिन तब कैप्टन अमरिंदर के करिश्मे के सहारे कांग्रेस ने 77 सीटें जीतकर आप के सपनों को पनपने से रोक दिया। केजरीवाल ने 20 सीटें जीतीं। उन्हें तब 17.1 फीसदी वोट मिले। लेकिन सबसे बड़ी उलझन ये थी कि दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद भी केजरीवाल के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं था जो लोकल हो। वो पंजाब में दायरा बढ़ाते रहे और दूसरे सूबों में भी सेंधमारी की कोशिश करते रहे। गुजरात के निकाय चुनाव में उतरे और गांधी नगर में बेहतरीन प्रदर्शन कर कांग्रेस को तमाचा मारा।
फिलहाल 2022 में पंजाब में प्रचंड़ जीत हासिल करके केजरीवाल ने कांग्रेस के होश उड़ा दिए हैं। अब वो राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ा चेहरा बनने की तरफ अग्रसर हैं। हालांकि ममता बनर्जी और शरद पवार भी इस खांचे में फिट होने की कोशिश लगातार कर रहे हैं। पवार शिवसेना के मार्फत अपनी दावेदारी पेश करते रहते हैं तो ममता जगह-जगह घूमकर बीजेपी को उखाड़ फेंकने की बात कर रही हैं। लेकिन केजरीवाल इन दोनों से अलग हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह उनका हिंदी भाषी होना है। ममता यहीं पर उनसे मात खा जाती हैं। यहीं पर स्टालिन दम तोड़ देते हैं तो शरद पवार के रास्ते में भी ये चीज बड़ी बाधा बन जाती है। कहने की जरूरत नहीं कि यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर की जीत की खुशी में मदमस्त बीजेपी को भी केजरीवाल की चिंता सालने लगी है।
लेकिन उनके बड़ा बनने से बीजेपी से भी ज्यादा दिक्कत कांग्रेस को है। कांग्रेस ने पांचों सूबों में मुंह की खाई है। एक के बाद एक करके तीन सीएम बदलने के बाद भी वो उत्तराखंड की जनता को भरोसे में नहीं ले सके तो गोवा में चिदंबरम की सारी रणनीति धरी की धरी रह गईं। पंजाब में नवजोत सिद्धू को मेन स्ट्रीम में लाने से नुकसान ही हुआ। वहीं यूपी में प्रियंका लड़कियों को तमाम सब्जबाग दिखाने के बाद भी हाशिए पर दिख रही हैं। कांग्रेस विशेषतौर पर गांधी परिवार को अपना वजूद बचाने के लिए जीत की बेहद जरूरत थी।
यूपी में उन्हें पता था कि जीत बहुत दूर है लेकिन कुछ सीटें मिल जाती तो उनके लिए चेहरा दिखाना थोड़ा आसान हो जाता। सहयोगी दलों के सहारे लगातार दस साल तक देश की सत्ता को चलाने वाली कांग्रेस फिलहाल खुद को बचाने की कोशिश में है। जो हालात हैं उनमें साथी तो दूर की बात अपने नेता भी मुंह मोड़ने लगे हैं। दूसरी तरफ गैर बीजेपी व गैर कांग्रेसी खेमे के लिए केजरीवाल मुफीद बनकर उभरे हैं। जानकार कहते हैं कि शुरुआत हो गई है। आने वाले दिनों में कांग्रेस के कई और बीजेपी के कुछ नेता आप में दिखें तो बड़ा अचरज नहीं होगा।