गर्मी के चरम पर पहुंचते ही दिल्ली और हरियाणा में तकरार शुरू हो गई है। दोनों यमुना के पानी पर अपने हिसाब से दावे करते हैं। केवल पानी की लीकेज कम करके और पानी का बंटवारा करके पानी के संकट का स्थाई समाधान संभव नहीं है। भू-जल में हर साल हो रही करीब डेढ़ मीटर की गिरावट को रोकना युद्ध स्तर पर जरूरी है। दक्षिणी दिल्ली और पश्चिमी दिल्ली के ज्यादातर इलाकों में पानी का स्तर 20 से 30 मीटर तक नीचे चला गया है। सरकार बड़े पैमाने पर पेड़ लगाने से लेकर बरसाती पानी को संग्रह करने का अभियान चला रही है लेकिन बढ़ती आबादी का दबाव और जलवायु परिवर्तन के चलते पानी के संकट का स्थाई समाधान नहीं हो पा रही है।
हालात इतने बदतर हैं कि कुछ इलाकों में पानी संकट साल की समस्या है। दिल्ली में लंबे समय तक दिल्ली जल बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) रहे रमेश नेगी कहते हैं कि बिजली तो कहीं से भी आ सकती है लेकिन पानी की हर जगह कमी है और उसमें सुधार जमीन के भीतर पाइप डालकर ही होगा। इसलिए ज्यादा दूर से पानी लाया भी नहीं सकता है। दिल्ली में तमाम प्रयासों के बावजूद पानी की लीकेज 30 फीसद रह गई है। जबकि अंतरराष्ट्रीय मानक 15 फीसद का है। दूसरी समस्या ये है कि जमीन के अंदर पाइप लाइन होने के कारण लीकेज पता चलने में काफी समय लग जाता है। दिल्ली के पास पानी तो जरूरत के हिसाब से दस फीसद ही है। बाकी पानी तो गंगा और यमुना नदी से आता है। दिल्ली के महज 70 फीसद इलाके में पानी की लाइन डाली है और उसके हिसाब से भी 1100 एमजीडी (मिलियन गैलन डेली) की जरूरत है और पानी 865 एमजीडी ही उपलब्ध है। दिल्ली जल बोर्ड ने जो 2021 का अपना मास्टर प्लान बनाया है उसके हिसाब से 2021 में 1840 एमजीडी पानी दिल्ली की मांग होगी।
30 फीसद दिल्ली में नहीं डाली जा सकती पाइप लाइन
जल बोर्ड के अधिकारी भी मानते हैं कि अनधिकृत कब्जे और अनधिकृत कॉलोनियों के चलते करीब तीस फीसद दिल्ली में पानी की लाइन डाली ही नहीं जा सकती है। समस्या भयावह इसलिए है कि यहां बेहिसीब अनधिकृत निर्माण कराए गए और आबादी भी बेहिसाब बढ़ाई गई। एक अनुमान के मुताबिक हर साल करीब पांच लाख अतिरिक्त आबादी दिल्ली में बस जाती है (सामान्य आबादी बढ़ोतरी के अलावा)। पहली भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना ने आंदोलन कर यमुना के पानी में दिल्ली को हिस्सा दिलवाया था। विधिवत हिस्सा मिलने से दिल्ली की दावेदारी तो बढ़ी लेकिन तकरार भी बढ़ता ही गया क्योंकि पानी की कमी तो हरियाणा में भी है।
करीब बीस साल पहले दिल्ली में छह हजार निजी और सरकारी ट्यूबवैल थे। सरकारी आंकड़े के हिसाब से मार्च 2012 में 65 री-बोरिंग समेत जल बोर्ड के 2636 ट्यूबवेल और 21 बरसाती कुएं थे। नजफगढ़, महरौली इलाकों में रहट (कुंओं से ऊंटों और बैल आदि के माध्यम से पानी खींचने वाले), चरस (आदमी खींचते थे) और ढेकी से सींचाई होती थी। उसके साथ हरियाणा से लगे गांवों की सिंचाई करने के लिए भूटानी और छुटानी नाला बनाया गया। बवाना और कंझावला इलाके में के लिए मूंगेशपुर नाला और पालम इलाके के लिए पालम नाला बना।
दस साल पहले इन नालों को पुनर्जीवित करने की कोशिश तब के विकास मंत्री योगानंद शास्त्री ने करवाई थी लेकिन वह सफल नहीं हो पाई। इसी तरह हर गांव के जोहड़ (तालाब) और झील को पुनर्जीवित करने के प्रयास भी किए गए थे। गांव के पुराने तालाबों पर लोगों के कब्जे हो गए हैं। कई तो अब इतिहास की चीज बन गए हैं। जो तालाब बचे हैं उनकी संख्या भी 70 के करीब है। भलस्वा झील, संजय झील और नजफगढ़ नाले आदि को और चौड़ा और गहरा करके उसे स्थाई जलाशय बनाने की जरूरत है।
