राजधानी दिल्ली कड़ाके की ठंड और शीतलहर की चपेट में है, लेकिन बेघरों का ठिकाना कहे जाने वाले ‘रैन बसेरों’ में इस बार गर्म चाय तक मयस्सर नहीं है। कहा जा रहा है कि चाय एक जनवरी से मिलेगी, जबकि अगले पांच-छह दिन कर शहर को भारी शीतलहर का सामना करना पड़ सकता है। मुसीबतें यहां और भी हैं, चाय तो बस एक बानगी भर है, इन रैन बसेरों की बदहाली का। शहरी बेघरों के लिए बनी मॉनिटरिंग कमिटी ऑन शेल्टर्स के एक सदस्य के 21-22 दिसंबर के दौरे की एक रिपोर्ट से जाहिर होता है कई रैन बसेरे ऐसे भी हैं, जहां छतें और दीवारें तक टूटी हैं और बड़े-बड़े झरोखे बने हैं। कहीं-कहीं लोग रैन बसेरों के बाहर सोने को मजबूर हैं, तो कहीं इनमें रहने के लिए लोगों से आधार कार्ड मांगा जा रहा है। बेघरों के साथ-साथ उनके केयरटेकर भी बदहाली की हालत में ही हैं। ये लोग अपने वाजिब वेतन तक से महरूम हैं जबकि दिल्ली सरकार इन दिनों न्यूनतम वेतन को लेकर अभियान चला रही है।

पूर्वी दिल्ली की गीता कॉलोनी के श्मशान घाट के पास बने रैन बसेरे में पिछले तीन-चार साल से रह रहे सहरसा (बिहार) के रहने वाले हैदर अली की दो शिकायतें हैं। एक तो यह कि इस बार ठंड में चाय नहीं मिल रही। दूसरा यह कि वे पांचवी पास हैं, लेकिन अच्छी हिंदी व अंग्रेजी पढ़, लिख व बोल सकते हैं तो उन्हें केयरटेकर का काम क्यों न दिया जाए। बेघरों के मुद्दों पर काम कर रहे सुनील कुमार आलेडिया का कहना है कि पहले रैन बसेरों में एक दिसंबर से चाय मिलती थी, लेकिन इस बार कहा जा रहा है कि 1 जनवरी से चाय का इंतजाम होगा।

हालांकि, गीता कॉलोनी का यह रैन बसेरा अपेक्षाकृत बेहतर हालत में है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनाई गई मॉनिटरिंग कमिटी के सदस्य इंदू प्रकाश सिंह की रिपोर्ट बताती है कि उन्होंने जिन रैन बसेरों का दौरा किया उनमें से कुछ तो इंसानों के रहने लायक ही नहीं हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, शास्त्री पार्क के दोनों रैन बसेरे और तिलक नगर का पोर्टा केबिन बदतर हाल में है। वहीं बसेरा संख्या 201 और कुछ अन्य में बिजली ही नहीं थी, बसेरे का फर्श खुदा हुआ था, जिसमें गिरकर एक व्यक्ति को चोट भी लग चुकी है। इंदू प्रकाश सिंह ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उस चोटिल व्यक्ति को केयरटेकर ने उनके और डूसिब अधिकारियों के सामने थप्पड़ मारा और बसेरा छोड़ने पर मजबूर कर दिया। इसी तरह तिलक नगर के पोर्टा केबिन बसेरे में कचरा बिखरा मिला और शौचालय भी गंदा मिला।

वहीं शहजादा बाग रैन बसेरे में चूहों का प्रकोप दिखा। इसी बसेरे के निचले तल पर बांग्लादेशी कैदियों के लिए जेल बनी है जिस पर कमिटी सदस्य ने आपत्ति जताई है। वहीं आधार कार्ड की अनिवार्यता न होने पर भी कहीं-कहीं बेघरों से इसकी मांग की जा रही है। सुनील कुमार आलेडिया ने कहा कि प्रति लाख आबादी पर एक पक्का बसेरा होना चाहिए, लेकिन दिल्ली में इस ठंड में फिलहाल 76 स्थायी भवन, 112 पोर्टा केबिन और 15 टेंट हैं, यानी कुल मिलाकर सिर्फ 203 बसेरे हैं और इनमें से कोई भी 1000 वर्ग मीटर में बने होने का मापदंड पूरा नहीं करता है। साल-साल दर साल सरकारें बदली हैं, उनके वादे बदले हैं, लेकिन रैन बसेरों की बदहाली की कहानी नहीं बदली है।