दिल्ली पुलिस में प्रोन्नति की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि 25 से 30 साल के बाद भी कई पुलिसवाले प्रतीक्षा ही करते रह जाते हैं। पूरी तरह उलझन भरे प्रोन्नति की प्रक्रिया के बीच ही बीते साल जिन 27 हजार पुलिसवालों की एक साथ प्रोन्नति हुई उनमें कइयोें को अभी भी पुराने ओहदे की तरह ही व्यवहार किया जा रहा है। लिम्का बुक आफ रिकार्ड्स भले ही एक बार में 27 हजार प्रोन्नति को अपने रिकार्ड में दर्ज करा कर दिल्ली पुलिस अपनी पीठ थपथपा रही हो पर रैंक और आर्थिक फायदे से अछूते रहे कई पुलिस वालों को उनके समकक्ष सिर्फ ‘प्रधानमंत्री के जनधन खाते’ की तरह बिना मेहनत के मान रहे हैं। यही नहीं दिल्ली पुलिस गृह मंत्रालय के स्पष्ट निर्देश के बाद भी एमएसीपी प्रक्रिया का ठीक से पालन नहीं कर रही। जिससे कई लोग प्रोन्नति की बाट जोहते सेवानिवृत्त हो जाते हैं। इस बाबत दिल्ली पुलिस के स्पेशल आयुक्त सह मुख्य प्रवक्ता दीपेंद्र पाठक का कहना है कि सर्विस रिकार्ड में कुछ विसंगतियों के कारण जिन लोगों को प्रोन्नति के बाद भी सुविधाएं नहीं मिली है उन्हें पुलिस मुख्यालय और स्थापना शाखा में अपना आवेदन देना चाहिए। यों पुलिस में प्रोन्नति की पूरी प्रक्रिया संस्थागत व्यवस्था के तहत है। बीते साल दिसंबर में प्रोन्नति की सूची जारी हुई थी। इस साल भी इस दिशा में काम हो रहा है।
दिल्ली पुलिस में प्रोन्नति की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि पूर्व पुलिस आयुक्त आलोक कुमार वर्मा ने एक साथ 27 हजार पुलिसवालों को प्रोन्नति की सूची जारी कि तो महकमे में चर्चा शुरू हो गई। इनमें ऐसे-ऐसे पुलिस वाले शामिल हुए जिन्हें 25 से 30 साल के बाद भी प्रोन्नति नहीं मिली थी। तब के संयुक्त आयुक्त मुख्यालय प्रवीर रंजन ने कहा था कि अभी इसी तरह की कई और सूची निकलेगी। मुख्यालय इस दिशा में काम कर रहा है। पर इसी तरह की दूसरी सूची तो नहीं निकली पर इस 27 हजार की प्रोन्नति ने दिल्ली पुलिस की उलझनें जरूर बढ़ा दी है। उलझनें इस मामले में कि इस सूची में ज्यादातर कर्मी शार्टकट पद्धति से जगह पाने में सफल हो गए थे। कई अपनी सेवा के लंबे समय की दलील देकर तो कई अधिकारियों के घर और दफ्तर पर सेवा का फल पाने में सफल हो गए। सूत्रों का यह भी कहना है कि विशेष आयुक्त और संयुक्त आयुक्त से रिटायर होकर भी कई अधिकारी अभी तक इस प्रकार के प्रोन्नति पाए कर्मियों से सेवा ले रहे हैं। लिहाजा वे नौकरी पूरी करने के लिए खुद को कहीं भी एडजस्ट कर लेते हैं। हालांकि ‘लुक आफ्टर’ के तहत प्रोन्नति पाए ऐसे पुलिसकर्मियों को अभी पूरी सुविधाएं मिलने की प्रक्रिया ही जारी है। उनकी वेतन पर्ची पर पुराने ओहदे लिखे जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि थाने की 24 घंटे की ड्यूटी से दूर भागने वाले इन सभी पुलिस वालों को प्रोन्नति तो मिल गई पर अभी भी वे अपने सहकर्मियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘जन-धन योजना’ की श्रेणी में गिने जा रहे हैं। इन पुलिसवालों को बिना मेहनत और परिश्रम के यह ओहदा मिला हुआ।
प्रोन्नति पाए पुलिसवालों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि जब तत्कालीन पुलिस आयुक्त आलोक कुमार वर्मा ने रातोंरात 27 हजार पुलिस वालों की प्रोन्नति की सूची जारी कि तो ऐसा लगा जैसे बाढ़ आ गई। लोग न्यू पुलिस लाइंस की उस दुकान की तरफ भागे जहां उन्हें बैज और कैप खरीदना था। हालात ऐसे हुए कि न्यू पुलिस लाइंस में दोगुना पैसे देकर भी बैज-कैप मिलना मुश्किल हो गया। अनाप-शनाप कीमतों में किसी ने पड़ोसी राज्यों का रुख किया तो कोई सेना के स्टोर पर पहुंचा गया। चूंकि दो से तीन दशक बाद उन्हें इस प्रकार की प्रोन्नति का तोहफा मिला था लिहाजा वे किसी भी तरह अपने घर-परिवार, रिश्तेदारी में यह दिखाना चाहते थे कि अब वे पुराने ओहदे से ऊपर पहुंच चुके हैं। ऐसे पुलिस वालों का अब एक साल बाद यह कहना है कि प्रोन्नति के साथ वेतन, भत्ते और रैंक यूनिफार्म मिलना चाहिए ताकि उन्हें इस तरह भटकने की जरूरत नहीं पड़े। ऐसे पुलिसवालों का यह भी कहना है कि आयुक्त वर्मा ने एक कदम आगे बढ़ाकर मनोबल ऊंचा किया पर मौजूदा समय में तो हालात यह है कि पुलिस मुख्यालय में आला अधिकारियों की निगरानी में बनी बोर्ड अभी यह तय ही नहीं कर पाई है कि अब कितने लोगों की प्रोन्नति की सूची जारी की जाए।
