आपराधिक वारदातों में कमी का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस भी भ्रष्टचार में कहीं पीछे नहीं। पुलिस अधिकारियों की पर वर्दी पर दाग लगाने वाले आरोपों में जबरन वसूली, जमीन और संपत्ति विवाद में मिलीभगत, अवैध धंधों में संलिप्ता, मामला दर्ज करने में आनाकानी और जांच में कोताही बरतने जैसे आरोप बहुतायत में लगे। साल 2016 में इसी प्रकार के आरोप में दिल्ली पुलिस के 12 सौ से ज्यादा कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई और विभागीय जांच बैठाई गई। इनमें कई को बर्खास्त कुछ ससपेंड भी किए गए। कुछ को हल्की सजा देकर हिदायत पर छोड़ दिया गया और कुछ कर्मियों की निंदा की गई और फिर उन्हें विभागीय कार्रवाई के लिए तैयार रहने कहा गया। इसमें इंसपेक्टर से लेकर सब-इंसपेक्टर, सहायक सब इंसपेक्टर, हेड कांस्टेबल और कांस्टेबल शामिल हैं।
पुलिस के अांकड़े मानें तो इस प्रकार के मामले और आरोपों में निरंतर गिरावट आ रही है। बावजूद ‘दिल है कि मानता नहीं’ के तर्ज पर अभी भी कुछ लोग अपनी कारगुजारियों से बाज नहीं आ रहे। बीते साल भ्रष्टाचार, रंगदारी में 528 पुलिस वालों को लिप्त पाया गया। 31 पुलिसवालों को जमीन और संपत्ति विवाद और इतने ही पुलिसवालों को गैरकानूनी कार्यों में संलिप्त पाया गया। तीन पुलिसवाले वित्तीय लेनदेन में, अपराधियों और समाजविरोधी तत्वों से मिलीभगत में 12 पुलिस वाले और केस दर्ज नहीं करने के आरोप में 109 शामिल पाए गए। इसके अलावा गलत तरीके से जांच करने में 31 और अशोभनीय बर्ताव के आरोप में 433 पुलिस वाले के खिलाफ शिकायत दर्ज हुई। नहीं है सजा का भय
दिल्ली पुलिस के साल 2016 के आंकडेÞ यह बताने के लिए काफी है कि तमाम उपायों और कार्रवाईयों के बाद भी पुलिस विभाग में काम करने वालों लोगों की मंशा साफ नहीं है। वे थाने में शिकायतियों को घंटोें बैठाए रखने में खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं और वर्दी का रौब दिखाते हुए शिकायत दर्ज कराने वाले पर ही दबाब बनाकर दूसरी पार्टियों से मिलीभगत कर मामले को हल्का बनाने की कोशिश में रहते हैं। पूरी तरह संगठित होकर अवैध कार्यों में उसकी संलिप्तता कम नहीं हो रही है। भ्रष्टाचार में लिप्त इस तरह के पुलिस वालों से दिल्ली पुलिस की छवि खराब होती बावजूद इसके वे अपनी कारगुजारियों से बाज आने को तैयार नहीं है।

