लंबे जद्दोजहद के बाद 2011 में एक के बदले तीन नगर निगम बनाने के फैसले पर अब हाई कोर्ट ने भी सवालिया निशान लगाकर उस फैसले पर फिर से बहस शुरू करवा दी। अनधिकृत निर्माण पर अनेक जनहित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए अदालत ने तीनों निगमों को एक बार फिर से एक करने की जरूरत बताई। इस पर अगली सुनवाई मंगलवार को होनी है। इस मुद्दे पर दिल्ली में सक्रिय तीनों दलों-भाजपा, आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस में एक राय नहीं है। दिल्ली की लगातार 15 साल मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित ने कांग्रेस हाई कमान को दिल्ली नगर निगम को तीन हिस्सों में बांटने पर राजी कर लिया था। तब भी निगम की राजनीति करने वाले नेता राम बाबू शर्मा, जय प्रकाश अग्रवाल आदि ने इसका विरोध किया था। भाजपा शुरू से ही निगम को बांटने के मुद्दे पर एक राय नहीं रख पा रही है। कभी निगम के घोषणा पत्र में छोटे निगम बनाने का वादा किया और कई कमेटी बनाई गई। अब प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी से लेकर पूर्वी दिल्ली के सांसद महेश गिरी निगमों को एक करने की मांग कर रहे हैं। निगम चुनाव तक विभाजन का विरोध कर रही आप चुनाव के बाद इस मुद्दे पर चुप्पी लगा ली है।
दिल्ली सरकार को रास नहीं आती समानांतर सत्ता कहने के लिए शीला दीक्षित चाहे जो दावा करें लेकिन उनके और दिल्ली सरकार में काम करने वाले नेताओं को निगम की समानांतर सत्ता कभी भी रास नहीं आई। पहली कोशिश तो उसके अधिकार कम करने की थी। होमगार्ड, फायर सर्विस, बिजली, पानी, परिवहन, बड़ी सड़कें आदि दिल्ली सरकार ने निगम से ले ली लेकिन उसके बावजूद उसकी सत्ता कमजोर नहीं दिखी। इसके बाद विभाजन का प्रयास किया गया। विधानसभा की राजनीति करने वाले नेता निगम को कमजोर देखना चाहते हैं जबकि निगम की राजनीति करने वाले उसे दिल्ली में विधानसभा बनने से पहले वाले दिनों की निगम बनवाना चाहते हैं। सबसे अजीब तो यह हुआ कि निगम का विभाजन होने के बावजूद केंद्र सरकार ने अपने अधिकार निगम को देने को तैयार नहीं हुआ। यही लड़ाई दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच चलती रहती है।

