दिल्ली नगर निगम की सीटों के परिसीमन के बाद सीटों के आरक्षण की अधिसूचना जारी होते ही असंतोष का उबाल उठ गया है। तीनों नगर निगमों में आधी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित किए जाने के प्रावधान हैं और आबादी के हिसाब से उत्तरी नगर निगम में 20, दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में 15 और पूर्वी दिल्ली नगर निगम में 11 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किए गए हैं। इन सीटों में भी आधी सीटें अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए आरक्षित की गई हैं। राजनीतिक दलों ने आपत्ति इस बात पर उठाई है कि पहले ही आबादी के हिसाब से परिसीमन में सभी विधानसभा सीटों के नीचे चार-चार सीटें बनने के बजाए कहीं सात तो कहीं तीन सीटें बनाई गर्इं। आरक्षण में तो दो विधानसभा गोकुलपुर और सुल्तानपुर माजरा की सारी सीटें आरक्षित कर दी गर्इं। इसी तरह से मंगोलपुरी और त्रिलोकपुरी में चार में तीन-तीन सीटें आरक्षित की गई हैं। तीन सीटों वाली विधानसभा आंबेडकर नगर और तुगलकाबाद में तीन में से दो-दो सीटें आरक्षित की गई हैं।

एकीकृत नगर निगम की निर्माण समिति के पूर्व अध्यक्ष जगदीश ममगांई ने राज्य चुनाव आयुक्त एसके श्रीवास्तव को लिखे पत्र में आपत्ति की कि विधानसभा सुल्तानपुर माजरा व विधानसभा गोकुलपुर के चारों वार्ड अनुसूचित जाति के लिए, विधानसभा मंगोलपुरी के चार वार्ड में से तीन अनुसूचित जाति व एक महिला के लिए यानी चारों वार्ड आरक्षित, विधानसभा करोलबाग के तीन वार्ड में से दो अनुसूचित जाति व एक महिला के लिए याीन तीनों वार्ड आरक्षित, विधानसभा तुगलकाबाग के तीन वार्ड में से दो अनुसूचित जाति व एक महिला के लिए यानी तीनों वार्ड आरक्षित, विधानसभा त्रिलोकपुरी के चार वार्ड में से तीन अनुसूचित जाति व एक महिला के लिए यानि चारों वार्ड आरक्षित कर दिए गए हैं । इन विधानसभाओं में सामान्य श्रेणी के व्यक्ति के चुनाव लड़ने का कोई मौका नहीं है। साल 2012 की तरह इस बार भी पहले वार्ड 1 को महिला यानी विषम संख्या 1, 3, 5, 7, 9 महिलाओं के लिए आरक्षित व सम संख्या 2, 4, 6, 8 सामान्य श्रेणी के लिए रखी गई है। साल 2012 में राज्य चुनाव आयोग ने एक विधानसभा में एक वार्ड अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित का पैमाना बनाया, चुनौती दिए जाने पर हाई कोर्ट में भी इस प्रणाली को तर्कसंगत बता भविष्य में रोटेशन का वादा किया गया। रमेश दत्ता के केस में भी रोटेशन का एक खाका जमा कराया गया था। लेकिन अदालत में दिए अपने ही आश्वासन से राज्य चुनाव आयोग पलटी मार गया है।

कांग्रेस नेता और परिसीमन के जानकार चतर सिंह का कहना है कि सीटों के परिसीमन में ज्यादा काम करना होता है और उसमें गड़बड़ी की संभावना बनी रहती है। इस बार भी कई गड़बड़ी रही और बार-बार संशोधन से उसमें काफी सुधार हुआ। यह अलग बात है कि उसमें भी तमाम कमी रह गई है। उसमें सुधार करने के बजाए आयोग ने आरक्षण में भारी गड़बड़ी कर दी। इससे लोगों में असंतोष होना स्वाभाविक है। निगमों का परिसीमन तो 18 सितंबर 2015 के उपराज्यपाल के आदेश से शुरू हुआ था। तब के मुख्य चुनाव आयुक्त राकेश मेहता ने दावा किया था कि परिसीमन का काम जुलाई 2016 में पूरा हो जाएगा। आरोप है कि आप के हस्तक्षेप से परिसीमन के काफी काम दोबारा किए गए और मेहता सेवानिवृत्त होने से पहले नवंबर में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप गए।  पंजाब विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद दिल्ली सरकार ने जनवरी में रिपोर्ट उपराज्यपाल को भेजी उसके बाद सीटों के आरक्षण का काम हुआ। उसकी बुधवार को अधिसूचना होने से पहले ही मंगलवार से ही आरक्षण पर हंगामा शुरू हो गया है। नए मुख्य चुनाव आयुक्त संजय श्रीवास्तव ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई सफाई नहीं दी है।