नगर निगम सीटों के परिसीमन का काम पूरा होते ही यह साफ हो गया कि एक बार फिर दिल्ली का राजनीतिक भूगोल बदल चुका है। पिछले दिनों नई दिल्ली क्षेत्र से सांसद मीनाक्षी लेखी ने संसद में यह सवाल उठाया था कि नई दिल्ली के लोग सबसे ज्यादा कर देते हैं और परिसीमन के बाद इस इलाके की राजनीतिक भागीदारी सबसे कम हो जाएगी। 2006 में हुए परिसीमन ने ही दिल्ली का भूगोल बदल दिया था। नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली की अनेक विधानसभा सीटें खत्म हुर्इं और बाहरी दिल्ली व पूर्वी दिल्ली में नई सीटें बनीं। लोकसभा की चार सीटों में ही पहले ही दिल्ली को समेट दिया गया। तीन सीटों में ज्यादातर नए इलाके जुड़ गए हैं। अनुमान है कि 15 फरवरी तक सीटों के आरक्षण (आधी महिला और आबादी के अनुपात से अनुसूचित जाति) का काम पूरा हो जाएगा। उसके बाद कभी भी तीनों निगमों के चुनाव की घोषणा हो जाएगी।
अप्रैल तक हो जाएगा काम
माना जा रहा है कि नए वित्त वर्ष यानी अप्रैल के शुरू तक बिना बाधा के तीनों निगमों का गठन पूरा हो जाएगा। बीते दस साल से तीनों निगमों में भाजपा ही सत्ता में है। दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी (आप) की कोशिश निगम चुनाव जीत कर दिल्ली में पूरी तरह अपना दबदबा कायम करने की है, वहीं विधानसभा चुनाव में हाशिए पर चली गई कांग्रेस भी इन चुनावों के माध्यम से वापसी करने के प्रयास में है। मई 2016 में हुए निगम उपचुनाव के नतीजों से ऐसे संकेत भी मिले हैं।
हर सरकार ने घटाए अधिकार
दिल्ली में बहुशासन प्रणाली के कारण विधानसभा और नगर निगम की सत्ता कमोबेश दिल्ली के 85 फीसद इलाकों पर समानांतर चलती है। 15 साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित ने निगम को पूरी तरह दिल्ली सरकार के अधीन करने की कोशिश कई बार की। 2012 के चुनाव से पहले निगम के पुनर्गठन के नाम पर उसे तीन हिस्सों में बांटा गया। दिल्ली में चाहे भाजपा की सरकार रही हो या कांग्रेस की, सभी ने निगमों के अधिकार कम किए और पानी, बिजली, परिवहन, सीवर आदि अपने अधीन किए। अधिकारी दिल्ली सरकार से ही निगमों में जाते हैं और पैसे भी उन्हें दिल्ली सरकार के माध्यम से मिलते हैं लेकिन निगम का गठन भी संसद के कानून से हुआ है और केंद्रीय गृह मंत्रालय दिल्ली में अपने अधिकार कम नहीं करना चाहता है इसलिए निगमों का स्वायत्तता कायम है। निगम चुनाव में भी कमोबेश वही मतदाता होते हैं, जो विधानसभा और लोकसभा के लिए वोट करते हैं इसलिए भी राजनीतिक दलों में मारामारी ज्यादा होती है।
मुश्किल डगर रही परिसीमन की
उपराज्यपाल की 18 सितंबर 2015 की अधिसूचना से परिसीमन का काम शुरू हुआ था और तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त व परिसीमन कमेटी के प्रमुख राकेश मेहता ने इसे जुलाई 2016 में पूरा करने का दावा किया था, लेकिन तमाम परेशानियों और बाधाओं के बावजूद रिटायर होने से पहले नवंबर में उन्होंने अपनी रिपोर्ट दिल्ली सरकार को सौंप दी, जिसे सरकार ने उपराज्यपाल को भेजा और पिछले शुक्रवार को उपराज्यपाल ने इसे मंजूर किया। पहले विवाद परिसीमन में 68 में से 60 विधानसभाओं में सीमा का अतिक्रमण होने का था। आयोग के पहले ड्राफ्ट के खिलाफ कांग्रेस ने चुनाव आयोग के दफ्तर पर प्रदर्शन किया। भाजपा ने भी उसका जमकर विरोध किया। उसके बाद आयोग ने उस पर सांसद, विधायकों और निगम पार्षदों की राय ली और दूसरा ड्राफ्ट जारी किया। शुरू मेंकरीब चार लाख (4,19,744) मतदाताओं का पता न चल पाने से निगम सीटों का परिसीमन (डीलिमिटेशन) का काम काफी समय रुका रहा। बाद में इसे ठीक किया गया तो अन्य कमियां सामने आने लगीं।
2006 में बदली थी सूरत
इससे पहले 2001 की जनगणना के आधार पर 2006 में निगम सीटों का परिसीमन हुआ था। तब दिल्ली की हर निगम सीट को समान बनाकर एक विधानसभा के नीचे चार-चार निगम सीटें और एक लोकसभा सीट के नीचे 40-40 निगम सीटें बनाई गई थीं। देश भर में लोकसभा और विधानसभा सीटों के परिसीमन पर 2026 तक रोक लगी है, लेकिन दिल्ली की निगम सीटों का परिसीमन निगम के विधान के हिसाब से हर दस साल में होता है। इसके कारण 2011 की जनगणना के आधार पर 272 सीटों के परिसीमन की काम चल रहा है। 2011 की जनगणना में दिल्ली की आबादी 1,67,52,894 थी। इसमें से नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) और दिल्ली छावनी इलाके के मतदाताओं को छोड़ने के बाद 1,64,18,663 मतदाताओं को 272 सीटों में बांटा गया है। पूर्वी दिल्ली नगर निगम में औसत 60,363, उत्तरी दिल्ली नगर निगम में 60,142 और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में औसत 59,751 के आधार पर सीटें बनाई गई हैं। ऐसा पूरी तरह से संभव नहीं हो पाया है, तभी तो अलीपुर वार्ड की आबादी 84,378 और जनकपुरी (पश्चिम) की 43,591 बन पाई है।
विधानसभा सीटों पर सतर्कता
राजनीतिक दलों के विरोध के कारण विधानसभा की कम सीटों को लांघा गया है, लेकिन अभी भी नांगलोई, कोंडली, किराड़ी, नरेला और पालम में विधानसभा सीटों से बाहर के इलाके जोड़े गए हैं। लगता नहीं कि उपराज्यपाल की मंजूरी के बाद अब कोई बदलाव हो पाएगा। इसी तरह 2006 में सभी विधानसभाओं के नीचे चार-चार निगम वार्ड बनाए गए थे। पिछली बार 2001 की जनगणना पर परिसीमन हुआ था। इस बार 2011 की जनगणना पर परिसीमन किया गया है। पहले की तरह नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली में आबादी कम हुई है और बाहरी इलाकों में बढ़ी है। आबादी का अनुपात बराबर न होने से मटियाला में सात, विकासपुरी, बवाना और बुराड़ी में चार के बजाए छह, नरेला, बादली, रिठाला, मुंडका, किराड़ी, बदरपुर, उत्तमनगर, नजफगढ़, देवली, बिजवासन, करावल नगर और ओखला में पांच-पांच निगम सीटें बनेंगी। इसी तरह करीब 31 विधानसभा सीटों के नीचे चार-चार और 20 विधानसभा सीटों के नीचे तीन-तीन निगम सीटें बनी हैं। यह तय है कि विधानसभा सीटों के बीच में ही निगम सीटें बनेंगी, इसलिए ज्यादा बदलाव संभव नहीं है। पूर्वी दिल्ली नगर निगम में 64, उत्तरी और दक्षिणी निगम में 104-104 सीटें ही हैं, लेकिन इस परिसीमन में 148 वार्डों की सीमाएं बदल गई हैं।
हर किसी ने बोलने से किया परहेज
परिसीमन के बाद सीटों के आरक्षण का काम होना है। अब निगम की आधी सीटें महिलाओं के लिए और कुल 46 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होंगी। चुनाव आयोग के सूत्रों के मुताबिक, इसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है और 15 दिन में पूरी होने की उम्मीद है। परिसीमन पर कोई भी दल खुलकर बोलना नहीं चाहता है। माना जा रहा है कि दिल्ली सरकार में काबिज आप की इसमें काफी मर्जी चली होगी, इसलिए वह चुप है। यही हाल भाजपा का है। वहीं कांग्रेस चुनाव के लिए बेताब है। वह किसी भी तरह से चुनाव में देरी नहीं चाहती।
