प्रयोग बना परेशानी
पिछले कई चुनावों में यह देखने को मिला है कि दिल्ली भाजपा के स्थानीय नेताओं को दरकिनार कर चुनाव की बागडोर केंद्रीय नेताओं को सौंप दी जाती है। भले ही भाजपा का यह प्रयोग अब तक सफल नहीं हुआ हो, लेकिन इस बार भी यही दोहराया जा रहा है। दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार के कामकाज की जांच के लिए बनी शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता ने संवाददाता सम्मेलन की घोषणा की। पहले इसका समय 11 बजे रखा और जगह प्रदेश कार्यालय बताई गई। फिर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन के 12 बजे के संवाददाता सम्मेलन के बाद इसे करने की जानकारी दी गई। पता चला कि कांग्रेस अपने केंद्रीय कार्यालय में संवाददाता सम्मेलन कर रही है तो भाजपा ने भी जगह बदलकर केंद्रीय दफ्तर कर दी और फिर समय बदल दिया। इतने में उन्हें लगा कि कहीं उनका संवाददाता सम्मेलन हल्का न पड़ जाए तो उन्होंने केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण को बुलाना तय करके फिर समय बदल दिया। इस पर पत्रकारों में चर्चा थी कि अब तो उन्हें इस तरह के प्रयोग में सफल होने के लिए पैराशूट ही उपलब्ध कराना चाहिए। यह अलग बात है कि इस प्रयोग के बावजूद मीडिया में कांग्रेस को ज्यादा तवज्जो मिली।
पस्त होते हौसले
दिल्ली में अपने बूते बहुमत पाने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अब कमजोर पड़ते दिख रहे हैं। विधानसभा चुनाव में जिस तरह से उन्होंने मुफ्त बिजली-पानी को मुद्दा बनाकर चुनाव जीता, उसी तरह अब वे दिल्ली को गृह कर से मुक्त करने के वायदे के साथ नगर निगम चुनाव जीतने में लगे हुए हैं। शायद उन्हें मालूम नहीं कि दिल्ली के गांवों और अनधिकृत कालोनियों के लोग गृह कर देते ही नहीं हैं और जो अमीर लोग गृह कर देते हैं वे या तो वोट डालने जाते नहीं और अगर जाते भी हैं तो आप को वोट नहीं देते। इस मुद्दे के बीच शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक होने से भी आप नेताओं के हौसले कमजोर पड़ गए हैं। भले ही चुनावी मुद्दे खोजने में माहिर केजरीवाल लगातार चुनाव प्रचार कर रहे हैं, लेकिन अखिर वो भी तो इंसान ही हैं। ऐसे में लगता नहीं कि वे आप के लिए पहले जैसा माहौल बना पाएंगे।
हाशिए पर राजनीति
कांग्रेस के निगम चुनाव के टिकटों का एलान होते ही हंगामा मच गया। पंजाब विधानसभा चुनाव में जीत से उत्साहित कांग्रेस नेता पार्टी को संभालने के बजाए आपस में ही लड़ने लगे। इस लड़ाई में बड़े-बड़े नेता सक्रिय हो गए। कोई पार्टी छोड़ गया तो किसी ने पार्टी छोड़ने की चेतावनी दे डाली। ऐेसे में 2013 के विधानसभा चुनाव में हार कर दिल्ली की राजनीति में हाशिए पर पहुंचीं पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी मौजूदा दिल्ली कांग्रेस नेतृत्व पर हमला करने का मौका मिल गया। उन्होंने आनन-फानन में निगम चुनाव में प्रचार नहीं करने का फैसला सुना दिया। वैसे यह अलग मामला है कि अब तक किसी भी उम्मीदवार ने उन्हें चुनाव प्रचार करने का न्योता भी नहीं दिया। यह हाल तो तब है कि जब वे हाशिए पर हैं। 2007 के निगम चुनाव में तो तब के प्रदेश अध्यक्ष रामबाबू शर्मा ने उन्हें न तो टिकटों के बंटवारे में और न ही चुनाव प्रचार में शामिल करवाया था।
पुलिस का डंडा
नौकरी किसी और की, डंडा किसी और का! जी हां, कुछ ऐसा ही माजरा था बीते दिनों दिल्ली पुलिस के एक कार्यक्रम का। हुआ यंू कि अपनी ‘प्रहरी’ स्कीम के तहत गोविंदपुरी मेट्रो स्टेशन से लगे एनएसआइसी ग्राउंड में दिल्ली पुलिस ने सैकड़ों निजी गार्डों को बुला रखा था। इसमें कई निजी महिला चौकीदार भी पहुंची थीं। उन्हें बताया गया था कि पुलिस आयुक्त आ रहे हैं और वे सुरक्षा के कुछ गुर सिखाएंगें। सब जमा थे, कार्यक्रम भी ठीक-ठाक निपट गया। पता चला कि कार्यक्रम में आए गार्डों को पुलिस की ओर से एक किट के साथ ‘प्रहरी’ लिखा डंडा भी थमाया गया। साथ ही उन्हें कड़ी चौकसी के टिप्स भी दिए गए। कार्यक्रम निपटा तो चर्चा शुरू हो गई। किसी ने तफरी ली, कहा-अजीब दास्तां है, नौकरी सिक्योरिटी एजंसी की और डंडा दिल्ली पुलिस का!
-बेदिल