पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से भारत रत्न वापस लेने के दिल्ली विधानसभा के प्रस्ताव पर उपमुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष की सफाई आने के बावजूद कांग्रेस के नेताओं की नाराजगी कम नहीं हो रही है। दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने की हिमायती रहीं पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी इस प्रकरण के बाद अपने बयान से पलट गई हैं। उनका कहना है कि गठबंधन का फैसला पार्टी नेतृत्व को करना है, लेकिन राजीव गांधी के नाम पर विधानसभा में जो कुछ हुआ, वह निंदनीय है। दीक्षित ने कहा कि ‘आप’ सरकार ने किस हैसियत से इस विषय पर चर्चा की। सालों पहले केंद्र सरकार ने देश की राजनीति में अमूल्य योगदान के लिए राजीव गांधी को भारत रत्न से सम्मानित किया था। दीक्षित का कहना है कि अपना नाकारापन छुपाने के लिए ‘आप’ के नेता जान-बूझकर विवाद पैदा करते हैं। शीला दीक्षित ने कहा कि राजनीति का उद्देश्य चुनाव जीतना तो होता है, लेकिन जिस भरोसे से लोग किसी पार्टी को सत्ता में लाते हैं, उसको बनाए रखना नेताओं की पहली जिम्मेदारी होती है। झूठे वादों से जनता को एक बार धोखा दिया जा सकता है बार-बार नहीं। उन्होने ‘आप’ नेताओं को सलाह दी कि वे बेकार के विवाद पैदा करने के बजाय जनता से किए वादे पूरा करने की कोशिश करें।
बताते चलें विधानसभा में 1984 के सिख विरोधी दंगा मामले पर चर्चा के दौरान तिलक नगर के विधायक जरनैल सिंह ने राजीव गांधी से भारत रत्न वापस लेने का प्रस्ताव पेश किया था, जिसे विधानसभा में स्वीकार कर लिया गया था। ‘आप’ विधायक अलका लांबा के विरोध के बाद हंगामा बढ़ने पर उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सफाई दी कि ऐसा कोई प्रस्ताव पारित नहीं हुआ है और न ही अलका लांबा ने इस्तीफा दिया है। विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने भी ऐसी सफाई दी, लेकिन सदन में बैठे भाजपा और ‘आप’ के बागी विधायकों ने एक वीडियो जारी कर दिया जिसमें वह प्रस्ताव पास होते दिखाया जा रहा है।
वहीं कांग्रेस इस मुद्दे को तूल देने में लगी है और इस मामले को लेकर युवा कांग्रेस ने प्रदर्शन भी किया था। इन सबके बीच ‘आप’ के साथ गठबंधन की वकालत करने वाले कांग्रेस के नेता चुप्पी साधे बैठे हैं। पिछले दिनों शीला दीक्षित ने ‘आप’ से तालमेल की वकालत की थी, हालांकि तब माहौल दूसरा था। यह भी कहा जा रहा था कि बीमारी के कारण प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ने की अजय माकन की पेशकश के बाद नए प्रदेश अध्यक्ष के दावेदारों में शीला दीक्षित का नाम प्रमुख था, लेकिन मौजूदा हालात देखकर लगता नहीं कि तुरंत कोई बदलाव होगा और अगर हुआ भी तो शीला दीक्षित प्रबल दावेदार नहीं हैं। अजय माकन को 2015 के चुनाव में कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया और चुनाव के बाद अरविंदर सिंह लवली को हटाकर प्रदेश अध्यक्ष बनाया।
तीन महीने पहले उन्होंने बीमारी के कारण पद से हटने की पेशकश की थी, लेकिन अभी तक उसे स्वीकार किए जाने के कोई संकेत पार्टी नेतृत्व ने नहीं दिए हैं। वहीं पार्टी के अनेक नेता यही दोहरा रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में छह महीने से भी कम समय रह गया है, ऐसे में यह बदलाव करने का समय नहीं है। माकन की पार्टी नेतृत्व में अच्छी पैठ है, इसी के कारण कुछ बड़े नेताओं के चाहने के बावजूद माकन ने लोकसभा चुनाव में ‘आप’ किसी भी तरह के समझौते का विरोध किया। इतना ही नहीं, उन्होंने ‘आप’ के बजाय बसपा से तालमेल करने का सुझाव दिया। फिलहाल कांग्रेस दिल्ली में सीलिंग के खिलाफ जोरदार अभियान चला रही है। हाल ही में तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने से उत्साहित माकन ने घोषणा भी कर दी है कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनने पर दस दिनों में सीलिंग पर रोक लगा दी जाएगी।
