दिल्ली में फरवरी में हुए सांप्रदायिक दंगों को भड़काने के मामले में दिल्ली पुलिस की ओर से आरोपी बनाए गए आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन की जमानत याचिका कोर्ट ने खारिज कर दी है। ताहिर पर दंगों में अहम भूमिका निभाने के लिए तीन एफआईआर दर्ज हैं। एडिशनल सेशन जज विनोद यादव ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि ताहिर हुसैन का घर दंगाइयों और हंगामा करने वालों का केंद्र बन गया था, जहां से बंटवारे (1947) के बाद के सबसे बुरे दंगों की शुरुआत हुई।

जज ने यह भी कहा कि यह दंगे उस देश के विवेक पर बड़ा अघात है, जो आने वाले समय में बड़ी वैश्विक ताकत बनने की सोच रखता है। जज यादव ने कहा कि सांप्रदायिक दंगों के दौरान हुसैन के पास पार्षद का ताकतवर पद था। प्रथम दृष्टया में यह भी साफ है कि हुसैन ने अपनी इसी ताकत और राजनीतिक बल का इस्तेमाल दंगों की साजिश रचने और संप्रदायों के बीच आग भड़काने में किया।

जज ने कहा कि अब तक रिकॉर्ड पर कई ऐसी चीजें रखी जा चुकी हैं, जिनसे माना जा सकता है कि ताहिर हुसैन दंगों के वक्त घटनास्थल पर मौजूद थे और एक संप्रदाय के दंगाइयों को भड़काने का काम कर रहे थे। यानी वे खुद तो दंगों में हाथों या घूंसों का इस्तेमाल नहीं कर रहे थे, पर इसकी जगह दंगाइयों को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे थे, जो कि उनके इशारे पर किसी की भी हत्या कर सकते थे।

दिल्ली कोर्ट के जज ने कहा कि अगर आरोपी सीधे तौर पर कथित हिंसा की घटनाओं में शामिल नहीं था, तब भी वह अपने खिलाफ लगाई गई धाराओं पर जिम्मेदारी से नहीं बच सकता, खासकर तब जब उसका घर दंगाइयों और हुड़दंगियों का घर बन चुका था। जज ने आगे कहा कि कम समय में इतने बड़े स्तर पर हिंसा बिना किसी साजिश के मुमकिन ही नहीं थी।