सोशल मीडिया की निगरानी की योजना को केन्द्र ने फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया है। केंद्र सरकार ने शुक्रवार (अगस्त) उच्चतम न्यायालय को बताया है कि वह सोशल मीडिया हब बनाने वाली प्रस्तावित अधिसूचना वापस ले रहा है। केन्द्र सरकार सोशल मीडिया कंटेट की निगरानी के लिए एक व्यापक सोशल मीडिया हब बनाने की तैयारी कर रहा था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र की मंशा पर सवाल उठाए थे, कोर्ट ने यहां तक कहा था कि क्या आप लोगों के व्हाट्सअप मैसेज टेप करना चाहते हैं। इसके बाद केन्द्र अपने कदम पीछे खींच लिये हैं। आज एक सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि सरकार सोशल मीडिया हब नीति की समीक्षा करेगी।

इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा की एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र को नोटिस जारी किया था। इससे पहले इस मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार पर कड़ी टिप्पणी की थी। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानवलिकर, और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड की खंडपीठ ने टिप्पणी की थी, “सरकार नागरिकों की व्हाट्सएप मैसेज को टेप करना चाहती है, ये ऐसा है जैसे कि एक ‘निगरानी राज्य’ बनाया जा रहा हो।” तब अदालत ने मामले की सुनवाई के लिए  3 अगस्त का समय दिया था। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद जन मानस में ये संदेश गया था कि सरकार की मंशा लोगों की जासूसी करने की है। टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा ने कहा था कि सोशल मीडिया हब के कार्यान्वित होने के साथ ही सरकार की पहुंच ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म में मौजूद लोगों के निजी डाटा तक हो जाएगी, और ये निजता के अधिकार का उल्लंघन है। टीएमसी नेता के मुताबिक सरकार इसके जरिये किसी भी शख्स की निगरानी और जासूसी कर सकती है।

बता दें कि जनवरी महीने में सरकारी संस्था ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग कंसल्टेंट इंडिया लिमिटेड (BECIL) ने टेंडर जारी कर निजी कंपनियों से एक सरकारी प्रोजेक्ट स्थापित करने को कहा था। इस फ्लेटफॉर्म के जरिये सोशल मीडिया, ब्लॉग्स, और न्यूज से डाटा संग्रह किया जाना था। इस संस्था ने कहा था कि इस प्रोजेक्ट के तहत संविदा के तहत मीडियाकर्मियों की नियुक्ति की जानी थी जो ऑनलाइन कंटेट की निगरानी करते।