दिल्ली नगर निगमों के नतीजों ने सवा दो साल पहले प्रचंड बहुमत से दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने वाली आम आदमी पार्टी (आप) के वजूद पर ही सवाल उठा दिया है। पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सामने पार्टी को बचाने की भारी चुनौती है। अगर ईवीएम में गड़बड़ी के उनके आरोप को दिल्ली की जनता स्वीकार लेती तो उनका औसत विधानसभा चुनाव से आधा न होता। दूसरे उनमें संघर्ष का माद्दा होता तो न तो योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण जैसे नेता आप से बाहर न होते और न ही 2014 के लोकसभा चुनाव की हार के बाद केजरीवाल जबरन जेल जाकर अपनों से बचने की कोशिश नहीं करते। भाजपा तो लगातार तीसरी बार निगम जीत कर नया रेकार्ड ही बना दिया है। उसकी जीत की भविष्यवाणी तो कई दिनों से हो रही थी, केजरीवाल को इसे स्वीकारने में काफी समय लगेगा। आप विधायक अलका लांबा के इस्तीफे की पेशकश और सांसद भगवंत मान के ईवीएम को हार को जिम्मेदार बताने को गलत बताने के बयानों ने आप में बड़े बिखराव के संकेत दे दिए हैं। जाहिर है कि आप जैसा ही सदमा कांग्रेस को लगा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन और दिल्ली के प्रभारी महासचिव पीसी चाको ने इस्तीफे की पेशकश उसी की कड़ी है। कांग्रेस को हारने से ज्यादा गम आप के मुकाबले तीसरे नंबर पर आने का है। वैसे उनके और आप के वोट औसत में ज्यादा अंतर नहीं है। दिल्ली में आप के राजनीति में सक्रिय होने के बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करीब 24 फीसद वोट मिले, उतने ही वोट इस बार कांग्रेस को मिले हैं। 2014 के लोकसभा में चुनाव में तो उसे 15 फीसद और 2015 के विधानसभा चुनाव में नौ फीसद वोट मिले थे। उस हिसाब से तो सबसे ज्यादा नुकसान आप को हुआ। उसे 2013 के विधानसभा चुनाव में करीब 30 फीसद, 2014 के लोकसभा में करीब 33 फीसद और 2015 के विधानसभा चुनाव में 54 फीसद वोट मिले थे, उसके वोट तो इस चुनाव में आधे ही रह गए। नगर निगम के लिए दिल्ली की करीब 87 फीसद आबादी वोट करती है। इस लिहाज से सालों से दिल्ली में भाजपा के औसत 36-37 फीसद में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई है। 1993 के विधानसभा चुनाव में जब भाजपा सत्ता में आई थी तब उसे 43 फीसद वोट आए थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे 46 फीसद वोट आए। इस चुनाव में करीब 42 फीसद वोट आए हैं। सीटें 138 से बढ़कर 181 हो गई हैं। पिछली बार उसे 272 सीटों में 138 मिली थीं।
पिछली बार दिल्ली ने पहली बार एक की बजाए तीन निगमों को वोट दिया था। तब भाजपा ही जीती थी लेकिन उसे दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में बहुमत नहीं मिला था और निर्दलियों की सहायता से पांच साल अपना महापौर जिताते रहे। निगमों में दलबदल विरोधी कानून लागू नहीं है। इस बार तीनों निगमों-दक्षिणी दिल्ली नगर निगम, उत्तरी दिल्ली नगर निगम और पूर्वी दिल्ली नगर निगम में भाजपा पूर्ण बहुमत से चुनाव जीती है। उनकी यह जीत केवल सभी मौजूदा निगम पार्षदों के टिकट काटने से नहीं हुई। भाजपा ने चुनाव राष्ट्रीय चुनाव की तरह लड़ी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांग गया। कांग्रेस के अजय माकन की सारी कोशिश चुनाव को स्थानीय मुद्दे पर लड़ने की थी लेकिन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भाजपा की राह आसान कर दी और चुनाव राष्ट्रीय बन गया। बाद में केजरीवाल ने विजेंद्र गुप्ता का नाम अपने साथ पोस्टर पर देकर चुनाव को स्थानीय बनाने की कोशिश की लेकिन वे असफल रहे। आप की कमर तोड़ने के लिए सरकारी खर्चे पर आम आदमी पार्टी (आप) का विज्ञापन होने के मामले में दिल्ली के उप राज्यपाल ने आप से 97 करोड़ रुपए वसूल करने के आदेश दिए हैं। शुंगलू समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक करके आप शासन के अनेक कुशासन के मामले सार्वजनिक कर दिए। संयोग से इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से पहले अरविंद केजरीवाल ने अपने व्यक्तिगत मानहानि के मुकदमें को लड़ने के लिए करीब चार करोड़ रुपए वकील राम जेठमलानी को मुकदमा लड़ने की फीस के रूप में देने के लिए आदेश जारी करवाए। भुगतान में अडंगा लगा लेकिन इससे उनकी भारी किरकिरी हुई। इसी दौरान आप सरकार के एक आयोजन में खाने की एक थाली का भुगतान 13 हजार रुपए करने के मामले ने उसकी ज्यादा किरकिरी करा दी। इसी दौरान 13 अप्रैल को राजौरी गार्डन विधानसभा चुनाव के नतीजों में दो साल पहले इस सीट को जीतने वाली आप की जमानत जब्त हो गई।
भाजपा के अनेक नेता मान रहे थे कि वे दस साल निगम में रहने के बाद चुनाव नहीं जीत सकते हैं। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों के आने से पहले भाजपा नेतृत्व भी दिल्ली नगर निगमों के चुनाव मुकाबले में बने रहने के लिए लड़ने की तैयारी कर रहा था। यह मान लिया गया था कि अगर पंजाब विधानसभा चुनाव आप जीत लेगी तो उसे निगम जीतने से कोई रोक नहीं पाएगा। मई 2016 के निगमों के 13 सीटों के उप चुनाव ने कांग्रेस को जिंदा किया। उस चुनाव में उसे पांच सीटें मिली। संयोग से पंजाब विधानसभा चुनाव कांग्रेस भारी बहुमत से जीत गई। पंजाब की जीत ने दिल्ली कांग्रेस के हौसले को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया। यह माना जाता है कि जो वोट आप को पिछले दो विधानसभा और एक लोकसभा चुनाव में मिले उनमें ज्यादातर कांग्रेस के परंपरागत वोट थे। हालात सुधरते देख कांग्रेसी नेता आपस में लड़ने लगे। टिकट बंटवारे के झगड़े सार्वजनिक तो पहले ही हो गए थे। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली, प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष बरखा सिंह, प्रदेश युवक कांग्रेस अध्यक्ष अमित मलिक समेत अनेक नेता पार्टी अध्यक्ष पर सीधा आरोप लगा कर भाजपा में शामिल हो गए। अनेक दिग्गज नेताओं की नाराजगी सार्वजनिक होेने लगी। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने चुनाव नतीजों के बाद आज भी पार्टी के प्रदेश नेतृत्व की कार्य शैली पर सवाल उठाया। वे अपने अहम की लड़ाई लड़ कर निगम चुनाव के मुख्य मुकाबले से बाहर हो गए।कांग्रेस के प्रयासों से कांग्रेस का कुछ तो परंपरागत मतदाता उसके पास लौटा और उससे उनका मतदान औसत बढ़ा लेकिन नतीजों में उसको ज्यादा लाभ नहीं मिला। पिछले निगम चुनाव में उसे 77 सीटें मिली था इस बार उसे 30 सीटें मिली है। आप 48 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर है लेकिन सबसे बड़ा झटका उसे ही लगा है। फरवरी 2015 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के हिसाब से तो उसे तीन चौथाई सीटें मिलनी चाहिए थी।

