राजधानी के ऐतिहासिक जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने पर रोक लगाने के राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेश के खिलाफ आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सालों से यहां डेरा डाले प्रदर्शनकारी लौटने की जुगत में हैं। हालांकि इस मामले में आखिरी दिशानिर्देश आना अभी बाकी है, लेकिन आदेश के तकनीकी बिंदुओं से अनभिज्ञ प्रदर्शनकारी संगठनों ने इसे पहले वाली आजादी ही मान लिया है। वहीं अभियोजन पक्ष इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है और पुलिस सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर बीच का रास्ता निकालने के पक्ष में है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हालांकि अभी तक जंतर-मंतर पर तंबुओं का डेरा नहीं दिख रहा है, लेकिन आंदोलनकारी संगठनों के लोग यहां पहुंचकर अपनी जमीन जरूर तलाशने लगे हैं। मौके की ताक में बैठे प्रदर्शनकारी पुलिस के उस जवाब पर भी नजरें गड़ाए हुए हैं, जिसे उसे 14 दिन के भीतर अदालत में दाखिल करना है।

रुके आंदोलन शुरू करने की तैयारी

वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) की कथित विसंगतियों के खिलाफ जंतर-मंतर पर करीब तीन साल से डटे पूर्व फौजियों के संगठन (एएसएम परिवार) के अगुआ मेजर जेनरल (सेवानिवृत्त) सतबीर सिंह ने कहा कि उनका प्रदर्शन रुका नहीं है और वे अक्सर जंतर-मंतर आते हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लोकतंत्र की जीत बताते हुए उन्होंने कहा कि हम पुलिस के जवाब और अदालत के अंतिम फैसले के इंतजार में हैं। विभिन्न आरोपों को लेकर जेल में बंद कथित संत रामपाल और आसाराम के अनुयायियों ने भी जंतर-मंतर पहुंचकर दोबारा आंदोलन शुरू करने की बात कही।

बरसों तक जुटे रहे कई संगठन

ऐसे कई संगठन हैं जो पिछले साल जंतर-मंतर से हटाए जाने से पहले सालों तक स्थायी तौर पर यहां जुटे रहे। मसलन वन रैंक वन पेंशन को लेकर पूर्व फौजियों का आंदोलन 870 दिन चला था। वहीं आसाराम के समर्थकों का आंदोलन 800 दिन तक और कथित संत रामपाल के मामले की सीबीआइ जांच की मांग को लेकर उनके अनुयायियों का आंदोलन 771 दिन तक चल चुका है। इसके अलावा अंग्रेजी की जगह भारतीय भाषाओं को तरजीह देने की मांग को लेकर यहां करीब साढ़े चार साल तक आंदोलन हुआ, गोरखालैंड संयुक्त संघर्ष समिति का आंदोलन 136 दिन व शराबबंदी आंदोलन करीब 178 दिनों तक हुआ था। इनमें से ज्यादातर प्रदर्शनकारी संगठनों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने उनके प्रदर्शन को सही ठहराया है और वे दोबारा इसे शुरू कर सकते हैं।

सिफारिश का खाका तैयार करने में जुटी पुलिस

इस मामले में दिल्ली पुलिस को अगले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करना है, लिहाजा अधिकारियों में चुप्पी है। जानकारी के मुताबिक, पुलिस प्रदर्शन के प्रारूप पर सिफारिश का खाका तैयार करने में जुटी है। दिल्ली पुलिस बोट क्लब पर किसी भी प्रदर्शन में प्रदर्शनकारियों की संख्या 20 से 50 तक सीमित करने की सिफारिश की योजना बना रही है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि चूंकि बोट क्लब संसद, नॉर्थ और साउथ ब्लॉक और राष्ट्रपति भवन जैसे संवेदनशील इलाकों का हिस्सा है, इसलिए यहां कैंडल मार्च की इजाजत दिए जाने के सुझाव पर विचार हो रहा है।

वहीं जंतर-मंतर की सिफारिश राजनीतिक स्वरूप वाले प्रदर्शनों के लिए की जा सकती है। एक वरिष्ठ अधिकारी की मानें तो दिल्ली पुलिस यहां अधिकतम एक दिन और 5000 की संख्या तक के प्रदर्शनकारियों को अनुमति देने की सिफारिश कर सकती है। इसके अलावा यहां रात्रि विश्राम और अस्थायी शिविरों पर ‘पूर्ण प्रतिबंध’ की सिफारिश की भी योजना है।