गिरधारी लाल जोशी

दिल्ली के विधायक और पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर की कथित एलएलबी की डिग्री रद्द करने की प्रक्रिया को और आगे बढ़ाने के लिए दो अक्तूबर को अनुशासन समिति की बैठक कुलपति ने बुलाई है। उधर, अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद के रजिस्ट्रार एएम अंसारी ने फैक्स भेज कर तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय को साफ शब्दों में तोमर की स्नातक विज्ञान की डिग्री को भी जाली बताया है। भागलपुर विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक डा. अरुण कुमार सिंह ने बताया कि डिग्री रद्द करने के सिलसिले में तोमर से जवाब तलब किया है। तमाम तथ्यों का समावेश कर इस आशय का एक पत्र विश्वविद्यालय ने तोमर को भेजा है। दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री की स्नातक डिग्री की असलियत के बारे में विश्वविद्यालय ने अवध विश्वविद्यालय को पत्र भेज पूछा था। तोमर ने कानून की डिग्री लेने के लिए मुंगेर के विश्वनाथ सिंह इंस्टीट्यूट आफ लीगल स्टडीज में 1994-1998 सत्र में लिया दाखिला ही अब गलत साबित हो रहा है। क्योंकि स्नातक की डिग्री ही फर्जी साबित हो रही है। यानी दाखिले के वक्त दिया गया मूल प्रमाणपत्र ही गलत है, तो कानून की डिग्री तो स्वत: गलत है। बताते हैं कि अनुशासन समिति को तोमर की डिग्री रद्द करने की प्रक्रिया को सिंडिकेट तक भेजने में शायद कोई हिचक नहीं होगी।

[jwplayer IeqfiHUz]

बीते 21 सितंबर को इस मुद्दे पर भागलपुर विश्वविद्यालय परीक्षा समिति की बैठक कुलपति डा. रमाशंकर दुबे की अध्यक्षता में हुई थी। जिसमें तोमर की एलएलबी की डिग्री रद्द करने की प्रक्रिया शुरू करने का फैसला किया गया था। साथ ही प्रतिकुलपति डा. अवधेश कुमार राय की अध्यक्षता वाली आंतरिक जांच समिति ने जिन नौ कर्मचारियों और अधिकारियों को दोषी पाया था, उन पर भी अनुशासन समिति को कार्रवाई के मुद्दे पर फैसला करना है। इनमें दिनेश श्रीवास्तव, शंभुनाथ सिंह और अनिरुद्ध दास अब भी विश्वविद्यालय के परीक्षा विभाग और सामान्य शाखा में तैनात हैं।

जितेंद्र तोमर की एलएलबी की डिग्री पर दस्तखत करने वाले तत्कालीन कुलपति विमल कुमार भी सांसत में है। दिल्ली पुलिस उनसे जल्द पूछताछ कर सकती है। हालांकि विश्वविद्यालय के अधिकारी तत्कालीन कुलपति विमल कुमार का बचाव कर रहे हैं। वे कहते हैं कि एक-एक डिग्री पर दस्तखत करते समय जांच करना कुलपति स्तर के उच्च पद पर बैठे व्यक्ति के लिए आसान नही है।बात फिर वहीं आकर अटकती है कि प्रतिकुलपति वाली आंतरिक जांच समिति की रपट फरवरी में सौंप दिए जाने के बावजूद कार्रवाई सात महीने तक कहां फंसी रही, इस सवाल का आज भी जवाब नहीं मिला है।

[jwplayer xFSjMxPn]