हर मुद्दे पर केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार अब राजधानी में यह माहौल बनाने में जुट गई है कि प्रधानमंत्री और उपराज्यपाल दिल्ली के विकास में रोड़ा बन रहे हैं। शुक्रवार को खत्म हुए विधानसभा के चार दिवसीय सत्र में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार और उनके ज्यादातर विधायक राजधानी के विकास कार्यों पर चर्चा करने के बजाए आरोपों की राजनीति तक ही सिमटकर रह गए। केजरीवाल को भी पता है कि चुनाव आयोग के पास लंबित 21 आप विधायकों का मामला उनके खिलाफ गया, तो उन्हें सत्ता में आने के लगभग दो साल बाद फिर से 21 सीटों के लिए चुनाव लड़ना पड़ सकता है।
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आप के कुछ विधायक मौजूदा वक्त में सरकार के पक्ष में नहीं हैं। दिल्ली में विकास कार्य लगभग ठप पड़ गए हैं। सरकार ने जो योजनाएं शुरू भी की हैं, उसका लाभ लोगों को नहीं मिल पा रहा है। मौजूदा स्थिति को देखते हुए लगता नहीं कि आप के पास इससे निकलने का कोई रास्ता है। लिहाजा वह अपनी काहिली का ठीकरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराज्यपाल और भाजपा पर फोड़ खुद को बचाने की कोशिश कर रही है। शुक्रवार को खत्म हुए विधानसभा के विशेष सत्र के पहले दिन आप ने राजधानी में चीनी मांझे से हुई मौतों के लिए उपराज्यपाल और अधिकारियों को जिम्मेदार ठहरा दिया। दूसरे दिन सदन में शराब पर चर्चा हुई, लेकिन आप ने शराब की नई दुकानें खोलने से साफ इनकार कर दिया और यह कहते हुए मामले से पल्ला झाड़ किया कि राजधानी में शराब की कई दुकानें नेताओं की हैं। उसने यह भी आरोप लगाया कि दिल्ली पुलिस के लोग ही शराब माफिया के जरिए अवैध शराब बिकवाते हैं। सदन के तीसरे दिन आप ने नीति आयोग पर चर्चा करवाई। आप के ज्यादातर विधायकों ने आरोप लगाया कि नीति आयोग दिल्ली सरकार की योजनाओं में रोड़े अटका रहा है। उन्होंने नीति आयोग को लोकतंत्र का सबसे बड़ा दुश्मन बताया। सदन के चौथे दिन केजरीवाल सरकार ने सीएजी मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा और उपराज्यपाल पर जमकर आरोप लगाए।
आप सरकार को राजधानी में विरोध की राजनीति करने के कारण लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसका असर दिल्ली में जारी विकास योजनाओं पर भी पड़ रहा है। हाल ही में अधिकारों पर आए हाई कोर्ट के फैसले से आप को यह बात समझ में आ गई होगी कि दिल्ली में अब वो अपनी मनमर्जी नहीं चला सकती। उसे ज्यादातर फैसलों पर अमल के लिए उपराज्यपाल की मंजूरी की जरूरत होगी। कभी केंद्र, कभी उपराज्यपाल तो कभी नगर निगम से उलझ चुकी आप सरकार अब सीएजी की रिपोर्ट लीक होने के मामले में फंस गई है। सरकार की ओर से शुरू किए गए विकास कार्यों पर भी करीब-करीब रोक लग गई है।
आप की चुनावी घोषणाओं को लागू कराने के लिए बनाए गए दिल्ली डायलॉग आयोग की विकास को लेकर अधिकारियों के साथ चल रही बैठकों पर भी विराम सा लग गया है, जिसके कारण यह आयोग भी विवादों में आ गया है। वहीं पिछले दिनों पंजाब चुनाव को लेकर आप ने जो विवादास्पद घोषणा पत्र जारी किया, उससे सिख भी काफी आहत हैं और वे केजरीवाल के निवास पर प्रदर्शन भी कर चुके हैं। केजरीवाल सरकार का मुख्य एजंडा राजधानी से भ्रष्टाचार खत्म करना, महिलाओं को सुरक्षा देना और दिल्लीवासियों को आधे दाम पर बिजली व मुफ्त पानी उपलब्ध कराना था। इसके लिए केजरीवाल सरकार ने गद्दी संभालते ही बिजली-पानी को लेकर दो बड़ी घोषणाएं कर दीं। उसके बाद सरकार ने अपनी चुनावी घोषणाएं लागू करवाने के लिए दिल्ली डायलॉग आयोग का गठन करके अपना ध्यान विकास कार्यों में लगा दिया। सरकार की एक अहम प्राथमिकता दिल्ली में वाई-फाई मुहैया कराना था, लेकिन ये घोषणाएं महज कागजों में ही सिमटकर रह गई हैं।
इतना ही नहीं, आप सरकार के विधायक व मंत्री भी आए दिन किसी न किसी विवाद में फंसते ही रहते हैं।दिल्ली सरकार के मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर फर्जी डिग्री विवाद में गिरफ्तार हुए। यह मामला चल ही रहा था कि दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री सोमनाथ भारती की पत्नी अपने पति की शिकायत लेकर दिल्ली महिला आयोग की शरण में पहुंच गर्इं। असीम खान पर तो सीधे मुख्यमंत्री केजरीवाल ने ही भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उन्हें पद से हटा दिया। आप के 9 विधायकों पर लगातार आरोप लगते ही रहे हैं और उनसे जुड़े मामले अदालतों में विचाराधीन हैं। इन सब उलझनों के बाद आप सरकार मुख्यमंत्री केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार के मामले में उलझ गई। सीबीआइ ने राजेंद्र कुमार सहित चार लोगों को भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार कर लिया। इस मामले को लेकर भाजपा और केंद्र सरकार लगातार आप पर हावी होती रही। केजरीवाल सरकार को इन दिनों पंजाब और गोवा के चुनाव की चिंता भी खाए जा रही है। इसे देखते हुए लग रहा है कि फिलहाल उसके पास प्रधानमंत्री मोदी, दिल्ली के उपराज्यपाल और भाजपा पर आरोप लगाने के सिवा कोई और चारा नहीं है।
