स्मार्ट पुलिस का तमगा पहनने वाली दिल्ली पुलिस को अभी तक पूरी तरह अपने थाने के लिए बिल्डिंग भी मयस्सर नहीं हो पाई है। आपराधिक वारदातों को देखकर थानों का निर्माण तो कर दिया गया है, पर सालों से कई थाने या तो पोटा केबिन में चल रहे हैं या फिर किराए की बिल्डिंग में। कुछ थाने अस्थायी रूप से बने हैं तो कुछ दूसरे थानों की बिल्डिंग में उधारी पर चलाए जा रहे हैं। यही नहीं जिस पुलिस पोस्ट पर पहले एक-दो जवान तैनात होते थे उसे भी थाने में तब्दील कर दर्जन भर पुलिसकर्मियों को बैठा दिया गया है। दिल्ली पुलिस भी मेट्रो और इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की तैनाती के लोभ से उबर नहीं पा रही है।

इस बाबत दिल्ली पुलिस के मुख्य प्रवक्ता व विशेष आयुक्त दीपेंद्र पाठक का कहना है कि राजधानी की बेतरतीब बढ़ती जनसंख्या, आपराधिक वारदातों पर रोक लगाने का प्रयास, थाने का निर्माण, ढांचे के लिए जमीन और पैसे के आबंटन की प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। अस्थायी ढांचे में पुलिस की मुस्तैदी मजबूरी है और जनता की सुरक्षा के बाबत हमें ऐसा करना होता है। पाठक का कहना है कि रोटी, कपड़ा और मकान के साथ सुरक्षा व्यवस्था मूलभूत सुविधाओं में शामिल है।
चौकियों में चल रहे संभ्रांत इलाकों के थाने
दिल्ली के कई महत्त्वपूर्ण थाने पुलिस चौकियों में चलाए जा रहे हैं। ये वही चौकियां हैं जहां पहले दो-तीन पुलिस वाले आसपास की वारदातों पर नजर रखते थे। अब वहां पूरा का पूरा थाना चलाया जा रहा है। इलाके के लोगों को भी कई बार बदमाशों की धड़पकड़ और पुलिस की गाड़ियां लगाने के लिए हाय-तौबा करनी पड़ती है। इस प्रकार की पुलिस चौकियों में चलने वाले थानों में संभ्रांत और भीड़भाड़ वाला इलाका साकेत, पालम गांव, सागरपुर, उत्तमनगर, मियांवाली नगर, पांडवनगर, हर्ष विहार, रंजीतनगर, रानीबाग, महेंद्र पार्क, रोहिणी उत्तर और अपराध शाखा के थाने शामिल हैं। वहीं किराए की बिल्डिंग में चलने वाले थानों में फतेहपुरबेरी, छावला, बाबा हरिदास नगर, निहाल विहार, रणहोला, जाफराबाद, सोनिया विहार, करावलनगर, भारतनगर, स्वरूपनगर, भलस्वा डेयरी, अमन विहार, शाहाबाद डेयरी और घरेलू हवाईअड्डा थाना आदि शामिल हैं।

यह है थानों का हाल
दिल्ली पुलिस को छह क्षेत्रों और 16 इकाइयों में बांटा गया है। इनमें 13 जिले और तीन अन्य इकाई हैं। इन जिलों में कुल 192 थाने बनाए गए हैं। एक थाने में अमूमन तीन इंस्पेक्टर और उनके समकक्ष व अधीनस्थ अधिकारी तैनात किए गए हैं। इन 192 थानों में कुल 127 थाने ऐसे हैं जिन्हें अपनी इमारत नसीब है। बाकी दस थानों का निर्माण चल रहा है। 16 थाने पुलिस चौकियों में, 22 थाने पोटा केबिन, अस्थाई और अर्धनिर्मित जगहों पर, 14 थाने किराए की बिल्डिंग में और चार थाने पास के दूसरे थानों की बिल्डिंग में उधार पर चलाए जा रहे हैं। थानों को अपनी इमारत कब तक नसीब होगी, इस बारे में पुलिस के आला अधिकारी कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं है।
कहीं जमीन का अड़ंगा तो कहीं मूलभूत सुविधाएं नदारद
पीडब्लूडी, सीपीडब्लूडी और अन्य पीएसयू के भरोसे बन रहे भवनों के लिए कहीं जमीन का विवाद चल रहा है तो कहीं ग्रामीणों ने विरोध शुरू कर दिया है। फतेहपुरी बेरी के लिए ग्राम पंचायत से मिली पांच बीघा, 16 बिसवा जमीन पर ग्रामीणों ने ही आपत्ति जताई, जिसके बाद थाना मीलों दूर चल रहा है। बाबा मोहनदास मंदिर असोला, शनिधाम मंदिर के पास की जमीन का पिछले दिनों ग्रामीणों ने विरोध शुरू कर दिया। लिहाजा उसे अन्य जगहों पर ले जाने की व्यवस्था की जाने लगी। इसी प्रकार अन्य जगहों को लेकर भी विवाद हैं, लिहाजा अभी नया निर्माण होना दूर की कौड़ी है। पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, पोटा केबिन में चलने वाले थानों में कोटला मुबारकपुर, नेबसराय, जामियानगर, बदरपुर, जैतपुर, संगम विहार, पुल प्रह्वादपुर, कापसहेड़ा, प्रीत विहार, मौरिसनगर, बुराड़ी, आइपी एस्टेट, देशबंधु गुप्ता रोड, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन व सराय रोहिल्ला जैसे दर्जनों थानों में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। कई बार देर रात अदालत के खुलने के इंतजार में कैदियों को रात भर के लिए यहां रखना खतरे से खाली नहीं होता है।