निरप्रीत कौर तब महज 16 साल की थी जब 1984 के दंगों में दंगाईयों ने उनके पिता को मौत के घाट उतार दिया। भीड़ ने उनके पिता को पकड़ा और पूरे शरीर पर मिट्टी का तेल डाल दिया मगर उनके पास माचिस नहीं थी। तब एक पुलिस इंस्पेक्टर दंगाईयों के पास पहुंचा। निरप्रीत उसी पुलिस इंस्पेक्टर की बात करते हुए कहती हैं कि मुझे आज भी याद है जब उसने दंगाईयों से कहा, ‘डूब मरो, तुमसे एक सरदार भी नहीं जलता।’

अब पचास साल की हो चुकी निरप्रीत उन तीन मुख्य गवाहों में से एक हैं जिनकी गवाही से दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार (17 दिसंबर, 2018) को 1984 के सिख विरोधी दंगे में सज्जन कुमार को दोषी ठहराया और उम्र कैद की सजा सुनाई। अपने फैसले में, हाई कोर्ट ने कहा कि आरोपी को ‘मुख्य रूप से तीन गवाहों के साहस और दृढ़ता के कारण’ न्याय के कठघरे में लाया जा सका है।

जगदीश कौर जिनके पति, बेटा और तीन चचेरे भाई-बहन सहित पांच लोगों की हत्या कर दी गई। जगदीश कौर के चचेरे भाई जगशेर सिंह और निरप्रीत कौर ने दंगे के दौरान खुद देखा कि गुरुद्वारा जला दिया गया। उनके पिता को भी भीड़ ने जिंदा जला दिया। ये बात कोर्ट ने अपने फैसले के दौरान कही।

निरप्रीत के पिता एक गुरुद्वारे के अध्यक्ष थे और वह 31 अक्टूबर और 1 नवंबर 1984 के बीच उस वक्त अपने पिता के साथ थीं जब हर तरफ से भीड़ आई। उनके हाथ में हथियार थे, लाठिया थीं, लोहे की रोड थीं। वो लोग सिख विरोधी नारेबाजी कर रहे थे। निरप्रीत कहती हैं, ‘दिन में पुलिस ने सभी सिखों से उनके कृपाण ले लिए और कहा कि समझौता हुआ है। मेरे पिता बलवान खोखर और महेंदर यादव (एक और आरोपी जिसे कोर्ट ने पहले ही दोषी ठहरा दिया है।) के साथ स्कूटर पर गए। उन्हें भीड़ ने पकड़ लिया था।’

79 साल की जदीश कौर सोमवार को कोर्ट का फैसला आने के बाद बहुत अभिभूत हैं। सिख विरोधी दंगे में उनके पति, एक बेटे और तीन चचेरे भाई बहनों को भी मार दिया गया था। जदीश कौर कहती हैं, ‘कोर्ट के इस फैसले से मुझे कुछ राहत मिलेगी। मगर सज्जन कुमार इतने लंबे समय तक न्याय से बच गए। सज्जन कुमार राजनगर में पुलिस वाहन में थे। उन्होंने कहा था कि सिख सांप के बच्चे हैं। हमें उन्हें मार देना चाहिए और जिंदा जला देना चाहिए।’

जदीश कौर के मुताबिक ‘एक नवंबर को भीड़ ने मेरे पति का सिर कुचल दिया और बेटा सड़क पर पड़ा रहा। कोई पानी लाया और मेरे बेटे और मुझे दो घूंट पानी दिया जब बेटे ने अपनी आखिरी सांस ले ली।’ वहीं निरप्रीत कहती हैं कि 1984 उनके लिए कभ ना भरने वाला नुकसान था। वो कहती हैं, ’34 साल हो गए काश हमें इंसाफ पहले मिला होता।’