बंबई उच्च न्यायालय ने नरेंद्र दाभोलकर हत्या मामले में जांच का ब्योरा मीडिया को बताए जाने पर गुरुवार (23 जून) को सीबीआई की खिंचाई करते हुए उसे चेतावनी दी कि वह इस तरह का काम कर रहे अधिकारियों के खिलाफ सीधी अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का निर्देश देने और उन्हें जेल भेजने से नहीं हिचकेगा। अदालत ने कहा, ‘आपकी (सीबीआई) प्रगति रिपोर्ट खबरों के सिवाय कुछ भी नहीं है। यह सब पहले से ही सबको पता है। मीडिया को मामले में गवाह की पहचान और इस बारे में कैसे पता लग गया कि एजेंसी कहां छापे मारने जा रही है। हर चीज का खुलासा मीडिया को कर दिया गया है।’ देश की प्रमुख जांच एजेंसी के खिलाफ कठोर टिप्पणी न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति शालिनी फंसालकर जोशी की पीठ ने तब की जब वह तर्कवादी दाभोलकर और मारे गए कम्युनिस्ट नेता एवं कार्यकर्ता गोविन्द पानसरे के परिजनों द्वारा दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनमें दोनों जांच में उच्च न्यायालय की निगरानी का आग्रह किया गया है ।

उच्च न्यायालय ने तंज कसते हुए कहा, ‘यदि आप इस तरह जांच करेंगे तो आप समूची जांच को बर्बाद कर देंगे। फरार ओरापियों को भी मीडिया से जांच से संबंधित ब्योरा मिल रहा होगा। सीबीआई को सलाम।’ अदालत ने कहा, ‘अभी यह सब छोटी बात लग सकती है, लेकिन वे महत्वपूर्ण खामियां हैं जब मुकदमा चल रहा है। कल गवाहों और परिवार के सदस्यों को कौन बचाएगा जो इन दिनों मीडिया से खुलकर बात कर रहे हैं। परिवार के सदस्यों को कुछ संयम और धैर्य बरतना चाहिए । हर चीज के लिए यह सस्ती लोकप्रियता घृणित है और यह निष्पक्ष जांच तथा मुकदमे को प्रभावित करती है।’

अदालत ने चेतावनी दी कि वह मीडिया को जांच के ब्योरे का खुलासा कर रहे संबंधित अधिकारियों के खिलाफ सीधी अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का निर्देश देने और उन्हें जेल भेजने में नहीं हिचकेगी। पीठ ने गुरुवार (23 जून) महाराष्ट्र सरकार से जानना चाहा कि क्या उसने गोविन्द पानसरे हत्याकांड की जांच सीबीआई से कराने का फैसला किया है जैसा कि मारे गए कार्यकर्ता के परिवार के वकील ने दावा किया है । वहीं, लोक अभियोजक ने कहा कि उन्हें अब तक इस तरह की कोई जानकारी नहीं मिली है। उच्च न्यायालय ने पानसरे और तर्कवादी दाभोलकर की हत्याओं की जांच में धीमी प्रगति पर क्रमश: सीआईडी और सीबीआई की जबर्दस्त खिंचाई की।

मारे गए कम्युनिस्ट नेता के परिवार की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता अभय नेवगी ने उच्च न्यायालय को सूचित किया कि पानसरे के परिवार ने मामले में सीबीआई जांच के लिए महाराष्ट्र सरकार से संपर्क किया था और बुधवार (22 जून) राज्य सरकार इस पर सहमत हो गई। हालांकि, लोक अभियोजक संदीप शिन्दे ने अदालत को बताया कि उन्हें इस संबंध में सरकार की ओर से कोई जानकारी नहीं मिली है । इस पर, उच्च न्यायालय ने शिन्दे को निर्देश दिया कि वह पता लगाएं कि क्या सरकार ने जांच सीबीआई को सौंपने का फैसला किया है, और यदि उसने ऐसा किया है तो अदालत को इसके पीछे का कारण बताया जाए ।

दाभोलकर की हत्या अगस्त 2013 में हुई थी और पानसरे की हत्या 16 फरवरी 2015 को कोल्हापुर में गोली मारकर कर दी गई थी । सीबीआई और सीआईडी उच्च न्यायालय में समय…समय पर प्रगति रिपोर्ट सौंप रही हैं । सीबीआई ने पूर्व में कहा था कि वह हत्या के मामले में दक्षिणपंथी संगठन सनातन संस्था की भूमिका की जांच कर रही है। अदालत ने कहा, ‘हम इन रिपोर्टों से प्रभावित नहीं हैं। एजेंसियों को सचेत और संवेदनशील रहना चाहिए क्योंकि हत्या के मामलों की जांच यह ध्यान में रखकर की जानी चाहिए कि यह समाज के विरुद्ध अपराध है।’

इसने कहा, ‘दो जाने-माने लोगों की जान उनके काम और विचारधारा की वजह से चली गई, इसलिए यहां अभिव्यक्ति और विचारों की स्वतंत्रता का व्यापक हित दांव पर हैं ।’ मामले को छह सप्ताह के लिए स्थगित करते हुए उच्च न्यायालय ने सीबीआई से कहा कि वह स्कॉटलैंड की फॉरेंसिक साइंस लैब से तत्काल रिपोर्ट हासिल करने के लिए हरसंभव कदम उठाए, जहां एजेंसी ने मारे गए एक अन्य तर्कवादी एम एम कलबुर्गी के शरीर से बरामद गोलियों और खाली कारतूसों को जांच के लिए भेजा है। पीठ ने कहा, ‘कार्यवाही को तेज करें और रिपोर्ट तत्काल हासिल करने की कोशिश करें।’

अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि एक महीने से दोनों एजेंसियां जांच में ढिलाई बरत रही, जिसे इसने बहुत ही ‘बचकाना’ बताया। लोक अभियोजक शिन्दे ने अदालत को सूचित किया कि सीआईडी ने दाभोलकर हत्या मामले में सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए गए एक व्यक्ति की हिरासत मांगी है। इस पर अदालत ने कहा, ‘क्या आप इस व्यक्ति के बारे में पहले नहीं जानते थे और उस संगठन को नहीं जानते थे जिससे वह जुड़ा है। यह बहुत ही शर्मनाक है कि अधिकारी जांच के बजाय परिजनों से पूछते हैं कि उन्हें किस पर शक है।’ सुनवाई की अगली तारीख पर दोनों एजेंसियों को अदालत को आगे की प्रगति रिपोर्ट सौंपनी होगी ।