मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के एक रिटायर्ड स्कूल टीचर ने अनूठी मिसाल पेश करते हुए राधा-कृष्णा का एक भव्य मंदिर बनवाया है। इस मंदिर के निर्माण में उन्होंने अपनी पूरी जमा पूंजी लगा दी है। जिस दिन उनकी पत्नी की मृत्यु हुई, उसी दिन उन्होंने मंदिर बनवाने का संकल्प लिया था। उनका मानना है कि राधा-कृष्ण प्रेम के प्रतीक हैं। उन्होंने कहा कि मैं युवाओं को यह संदेश देना चाहता हूं कि शादी के बाद प्रेम ही सबकुछ है।

रिटायर्ड स्कूल टीचर बीपी चनसोरिया ने अपनी पत्नी की मृत्यु के दिन छतपुर में मंदिर बनवाने का संकल्प लिया था। यह उनकी पत्नी की इच्छा थी, जिसे पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी जीवनभर की जमापूंजी लगा दी। मंदिर के निर्माण में 6 साल से भी ज्यादा का समय लगा है और इसमें संगमरमर पर विशेष कलाकारी की गई है, जिससे इसकी सुंदरता को उभारा गया है। कुछ मुस्लिम कारीगरों ने तीन सालों का समय लगाकर ये कलाकृतियां बनाई हैं। मंदिर के बारे में बात करते हुए चनसोरिया ने न्यूज एजेंसी एएनआई को बताया कि उनकी पत्नी छतरपुर में राधा-रानी का मंदिर बनवाना चाहती थीं।

उन्होंने कहा, “साल 2016 में मेरी पत्नी का निधन हो गया था। मैंने मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया था। इसके निर्माण में 6 साल और सात दिन का समय लगा और डेढ़ करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। राधा-कृष्ण प्रेम के प्रतीक हैं और उन्हें लोगों को सदियों तक याद रखना चाहिए। राधा-कृष्ण के साथ राधा की सहेलियों ललिता और विशाखा को भी यहां स्थापित किया जाएगा।”

उन्होंने कहा कि 29 मई को मंदिर का उद्घाटन किया जाएगा और इसे समाज को समर्पित कर दिया जाएगा। इसके साथ ही मैं युवाओं को यह संदेश देना चाहता हूं कि प्रेम शादी के बाद सबकुछ है इसलिए कभी किसी को छोटी-छोटी बातों पर अपने प्यार या पत्नी के त्याग की बातें नहीं करनी चाहिए।” मंदिर के पुजारी रमेश चंद्र दीक्षित ने कहा कि यह मंदिर एक उदाहरण पेश करेगा कि कैसे जीवनसाथी के जाने के बाद भी प्याद जिंदा रहता है।

मंदिर के एक कारीगर ने एएनआई से कहा कि यह मंदिर आज की जेनरेशन के लिए ताजमहल जैसा उदाहरण है। उन्होंने कहा, एक समय पर शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज की याद में ताजमहल बनवाया था और आज उन्होंने (बीपी चनसोरिया) अपनी पत्नी की याद में मंदिर बनवाया है। मंदिर में राधा-कृष्ण की मूर्ति स्थापित की जाएगी। मंदिर का काम लगभग पूरा हो चुका है और यह काफी खूबसूरत लग रहा है। मंदिर के निर्माण से स्थानीय लोग काफी खुश और उत्साहित हैं। उन्होंने कहा कि मंदिर का निर्माण डेढ़ करोड़ रुपये में किया गया है। यह प्रेम और सांप्रदायिकता, सद्भाव दोनों का प्रतीक है और यह छतरपुर का केंद्रीय बिंदू बन गया है।